"फतेहपुर जिला": अवतरणों में अंतर

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'''खजुहा'''
<br /> आदि काल मे खजुहा को खजुआ गढ के नाम से जाना जाता था। इस स्थान का [[मुगल काल]] मे बहुत ही महत्त्व था। [[औरन्गजेब]] के समय पर यह [[इलाहाबाद]] मण्डल की मुख्य छावनी थी। खजुहा को [[भगवान]] [[शिव]] की नगरी के तौर पर भी जाना जाता है। इसखजुहा छोटेमुगल सेरोड [[शहर]]पर मेंस्थित 118है। यह अद्भुतस्थान [[शिव]]काफी [[मंदिर]]प्राचीन है|है। खजुहाइसका कस्बावर्णन ऐतिहासिकप्राचीन घटनाओंहिन्दू औरधर्मग्रन्थ स्थानोंब्रह्मा कोपुराण समेटेमें हुएभी है।हुआ कस्बेहै, केजो मुगलकि रोड5000 वर्ष पुराना था। 5 जनवरी 1659 ई. में विशालकायमुगल फाटकशासक औरऔरगंजेब सरांयका स्थितअपने है।भाई जोशाहशुजा कस्बेके कीसाथ पहचानभीषण बनायुद्ध हुआ है।था। वहींऔरंगजेब कस्बेने केशाहशुजा स्वर्णिमको इस अतीतजगह के वैभवसमीप ही मारा था। अपनी जीत की दास्तांखुशी बयांमें करउन्होंने रहायहां है।एक मुगलविशाल रोडऔर केखूबसूरत उत्तरउद्यान मेंऔर रामजानकीसराय मंदिर,का तीननिर्माण विशालकायकरवाया तालाब,था। बनारसइस कीउद्यान नगरीको बादशाही बाग के समाननाम प्रत्येकसे गलीजाना औरजाता कुँएहै। इसके अपनीअतिरिक्त भव्यताइस कीसराय कहानीमें कह130 रहीकमरें है। आज की स्थिति में यह अत्यन्त जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है ।
 
इस छोटे से [[शहर]] में 118 अद्भुत [[शिव]] [[मंदिर]] है| खजुहा कस्बा ऐतिहासिक घटनाओं और स्थानों को समेटे हुए है। कस्बे के मुगल रोड में विशालकाय फाटक और सरांय स्थित है। जो कस्बे की पहचान बना हुआ है। वहीं कस्बे के स्वर्णिम अतीत के वैभव की दास्तां बयां कर रहा है। मुगल रोड के उत्तर में रामजानकी मंदिर, तीन विशालकाय तालाब, बनारस की नगरी के समान प्रत्येक गली और कुँए अपनी भव्यता की कहानी कह रही है। यहाँ दशहरा मेले में होने वाली रामलीला के आयोजन में [[रावण]] [[पूजा]] भी अलौकिक और अनोखी मानी जाती है। यहां की [[रामलीला]] को देखने के लिए प्रदेश के कोने-कोने से श्रृद्धालु एकत्रित होते हैं। खजुहा कस्बे की [[रामलीला]] जिले में ही नहीं पूरे प्रदेश में ख्याति प्राप्त है। यहां पर [[दशहरा]] मेले पर अन्य स्थानों की तरह [[रावण]] को जलाया नहीं जाता, बल्कि [[रावण]] को पूजनीय मानकर हजारों दीपों की रोशनी के साथ [[पूजा]] अर्चना की जाती है। कस्बे के महिलाएं और बच्चे भी इस सामूहिक आरती और पूजन कार्य में हिस्सा लेते हैं। इस अजीब उत्सव को देखने के लिए दूरदराज से लोगों जमावड़ा लगता है। वहीं [[रावण]] के साथ अन्य पुतलों को नगर के मुख्य मार्गों में भ्रमण कराया जाता है। इस ऐतिहासिक मेले का शुभारम्भ भादो मास के [[शुक्ल पक्ष]] की तृतीया ([[तीजा]]) के दिन तालाब से लाई गई [[मिट्टी]] एवं कांस से कुंभ निर्माण कर [[गणेश]] की [[प्रतिमा]] निर्माण कर [[दशहरा]] के दिन पूजा अर्चना की जाती है। [[खजुहा]] मेले में निर्मित होने वाले सभी स्वरूप नरई, पुआल आदि समान से बनाए जाते हैं। इन स्वरूपों के चेहरों की रंगाई का कार्य [[खजुहा]] के कुशल पेंटरों द्वारा किया जाता है। जबकि [[रावण]] का शीश तांबे से बनाया जाता है। [[दशमी]] के दिन से [[गणेश]] पूजन से शुरू होने वाली [[रामलीला]] परेवा द्वितीया के दिन [[राम]] [[रावण]] युद्ध के बाद इस ऐतिहासिक [[रामलीला]] की समाप्त हो जाती है।
इस छोटे से कस्बे में करीब एक सौ अठारह [[शिवालय]] हैं। इसी क्रम में दशहरा मेले में होने वाली रामलीला के आयोजन में [[रावण]] [[पूजा]] भी अलौकिक और अनोखी मानी जाती है। यहां की [[रामलीला]] को देखने के लिए प्रदेश के कोने-कोने से श्रृद्धालु एकत्रित होते हैं। खजुहा कस्बे की [[रामलीला]] जिले में ही नहीं पूरे प्रदेश में ख्याति प्राप्त है।
 
यहां पर [[दशहरा]] मेले पर अन्य स्थानों की तरह [[रावण]] को जलाया नहीं जाता, बल्कि [[रावण]] को पूजनीय मानकर हजारों दीपों की रोशनी के साथ [[पूजा]] अर्चना की जाती है। कस्बे के महिलाएं और बच्चे भी इस सामूहिक आरती और पूजन कार्य में हिस्सा लेते हैं। इस अजीब उत्सव को देखने के लिए दूरदराज से लोगों जमावड़ा लगता है। वहीं [[रावण]] के साथ अन्य पुतलों को नगर के मुख्य मार्गों में भ्रमण कराया जाता है।
 
इस ऐतिहासिक मेले का शुभारम्भ भादो मास के [[शुक्ल पक्ष]] की तृतीया ([[तीजा]]) के दिन तालाब से लाई गई [[मिट्टी]] एवं कांस से कुंभ निर्माण कर [[गणेश]] की [[प्रतिमा]] निर्माण कर [[दशहरा]] के दिन पूजा अर्चना की जाती है। [[खजुहा]] मेले में निर्मित होने वाले सभी स्वरूप नरई, पुआल आदि समान से बनाए जाते हैं। इन स्वरूपों के चेहरों की रंगाई का कार्य [[खजुहा]] के कुशल पेंटरों द्वारा किया जाता है। जबकि [[रावण]] का शीश तांबे से बनाया जाता है। [[दशमी]] के दिन से [[गणेश]] पूजन से शुरू होने वाली [[रामलीला]] परेवा द्वितीया के दिन [[राम]] [[रावण]] युद्ध के बाद इस ऐतिहासिक [[रामलीला]] की समाप्त हो जाती है।
 
[[खजुहा]] की [[रामलीला]] का विशेष महत्व है। जहां [[रावण]] को जलाने के स्थान पर इस की पूजा की जाने की परंपरा है। तांबे के शीश वाले [[रावण]] के पुतले को हजारों दीपों की रोशनी प्रज्वलित करके सजाया जाता है। इसके बाद ठाकुर जी के पुजारी द्वारा [[श्रीराम]] के पहले [[रावण]] की पूजा की जाती है। जहां [[मेघनाथ]] का 25 फिट ऊंचा लकड़ी के पुतले की सवारी कस्बे के मुख्य मार्गों में निकाली जाती है। वहीं 40 फुट लंबा [[कुंभकरण]] व अन्य के पुतले तैयार किए जाते हैं।