"घनानन्द": अवतरणों में अंतर

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बनता है |
घनानंद को भाषा में चित्रात्मकता और वर्गावदाग्धता का गुण भी आ गया है |
 
 
==कवित्त व सवैया==
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घनानंद नायिका सुजान का वर्णन अत्यंत रूचिपूर्वक करतें हैं | वे उस पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर देतें हैं
 
"रावरे रूप की रीति अनूप नयो नयो लगत ज्यों ज्यों निहारिये |
 
त्यों इन आँखिन बानि अनोखी अघानि कहू नहिं आनि तिहारिये ||
 
घनानंद प्रेम के मार्ग को अत्यंत सरल बतातें हैं, इन में कहीं भी वक्रता नहीं है |
 
अति सूधो सनेह को मारग है, जहाँ नेकु सयानप बांक नहीं |
 
कवि अपनी प्रिया को अत्यधिक चतुराई दिखाने के लिए उलाहना भी देता है |
 
तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ कहौ मन लेहूं पै देहूं छटांक नहीं |
 
कवि अपनी प्रिया को प्रेम पत्र भी भिजवाता है पर उस निष्ठुर ने उसे पढ़कर देखा तक नहीं |
 
जान अजान लौं टूक कियौ पर बाँचि न देख्यो|
रूप सौंदर्य का वर्णन करने में कवि घनानंद का कोई सानी नहीं है | वह काली साड़ी में अपनी नायिका को देखकर
उन्मत्त सा हो जातें हैं |
 
सावँरी साड़ी ने सुजान के गोरे सरीर को कितना कांतिमान बना दिया हैं |
 
स्याम घटा लिपटी थिर बीज की सौहैं अमावस-अंक उजयारी |
 
धूम के पुंज में ज्वाल की माल पै द्विग-शीतलता-सुख-कारी ||
 
कै छबि छायौ सिंगार निहारी सुजान-तिया-तन-दीपति-त्यारी |
 
कैसी फबी घनानन्द चोपनि सों पहिरी चुनी सावँरी सारी ||
घनानंद के काव्य की एक प्रमुख विशेषता है-भाव प्रवणता के अनुरूप अभिव्यक्ति की स्वाभाविक वक्रता |
घनानंद का प्रेम लौकिक प्रेम की भाव भूमि से उपर उठकर आलौकिक प्रेम की बुलंदियों को छुता हुआ