"अली अक़बर ख़ाँ": अवतरणों में अंतर

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अली अक़बर ख़ाँ का जन्म [[14 अप्रैल]] [[1922]] को वर्तमान [[बांग्लादेश]] में स्थित कोमिला ज़िले के शिबपुर गाँव में "बाबा" अलाउद्दीन खाँ और मदीना बेगम के घर हुआ । इन्होंने अपनी गायन तथा वादन की शिक्षा अपने पिता से दो वर्ष की आयु में प्रारम्भ की । इन्होंने अपने चाचा, फ़कीर अफ़्ताबुद्दीन से [[तबला]] भी सीखा । उस्ताद अल्लाउद्दीन खाँ ने इन्हें कई अन्य वाद्यों मे भी पारंगत किया, पर अन्तत: निश्चय किया कि इन्हें सरोद पर ही ध्यान देना चाहिए । कई वर्षों के कठिन प्रशिक्षण के बाद इन्होने अपनी पहली प्रस्तुति लगभग 13 वर्ष की आयु में दी । <ref>{{cite web |url= http://www.ammp.com/bio.html|title= Ali Akbar Khan Biography |accessmonthday=[[11 जुलाई]]|accessyear=[[2007]]|format= एचटीएमएल|publisher= अली अक़बर ख़ाँ|language=अंग्रेज़ी}}</ref>२२ वर्ष की आयु में वे जोधपुर राज्य के दरबारी संगीतकार बन गए ।
 
आपने पूरे भारत मे प्रस्तुतियां दीं, सराहे गये और भारतीय शास्त्रीय संगीत को व्यापक बनाने के लिये कई विश्व यात्रायें कीं । यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि आप अमेरिका में (अलीस्टेर कूक के "ऒमनीबस" में, १९५५) टेलीविजन प्रस्तुति देने वाले पहले भारतीय शास्त्रीय संगीतज्ञ थे । भारतीय शास्त्रीय संगीत के अध्यापन और प्रसार के लिये, १९५६ मे इन्होने कोलकाता में अली अकबर संगीत महाविद्यालय की स्थापना की । दो साल बाद, [[बर्कले, कैलीफोर्निया|बर्कले]], [[कैलीफोर्निया]] (अमरीका), में इसी नाम से एक और विद्यालय की नींव रखी, १९६८ में यह विद्यालय अपने वर्तमान स्थान [[सान रफ़ेल, कैलीफोर्निया]], [[कैलीफोर्निया]] आ गए। सान रफ़ेल स्कूल की स्थापना के साथ ही अली अकबर खां, संयुक्त राष्ट् अमेरिका में ही बस गये, यद्यपि यात्रायें करते रहे । फिर भी अस्वस्थता के कारण आज कल यह कम हुआ हैं । १९८५ में, इन्होने अली अकबर महाविद्यालय की एक और शाखा [[बेसिल, स्विट्ज़रलैंड|बेसिल]], [[स्विट्ज़रलैंड]] में स्थापित की है ।
 
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His long concert performances progress from the meditative (alap, jod) to the exhilarating (gat, jhala) in a highly structured build-up in the Senia beenkar style. He is also possibly the best living exponent of "sawal-jawab", a dialogue between two instruments (usually one melodic and one percussion). Of late, ill health has reduced the frequency of his concerts and affected his physical dexterity on his instrument, but his musical depth is still very much extant.
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खाँ साहब ने कई शास्त्रीय [[जुगलबंदी|जुगलबंदियों]] में भाग लिया। उसमें सबसे प्रसिद्ध जुगलबंदी उनके समकालीन विद्यार्थी एवं बहनोई [[सितार वादक]] [[रवि शंकर]] एवं [[निखिल बैनर्जी]] के साथ तथा वायलन वादक [[एल सुब्रमनियम]] जी के साथ है। [[विलायत ख़ान]] के साथ भी उनकी कुछ रिकार्डिंग उपलब्ध हैं। साथ ही उन्होंने कई पाश्चात्य संगीतकारों के साथ भी काम किया।
 
खाँ साहब को [[1988]] में भारत के सर्वोच्च पुरस्कारों में से एक [[पद्म विभूषण]] से सम्मानित किया गया। उनको इसके अलावा भी कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। [[1997]] में [[संयुक्त राज्य अमेरिका]] का कला के क्षेत्र में सबसे ऊँचा सम्मान नेशनल हैरिटेज फ़ेलोशिप दी गई। [1991]] में उन्हें मैकआर्थर जीनियस ग्रांट से सम्मानित किया गया। खाँ साहब को कई [[ग्रामी पुरस्कार|ग्रामी पुरस्कारों]] के लिये नामांकित भी किया गया। फिर भी, खाँ साहब अपने पिता द्वारा दी गई "स्वर सम्राट" की पदवी को बाकी सभी सम्मानों से ऊँचा दर्ज़ा देते हैं।