"राजस्थान": अवतरणों में अंतर

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[[जयपुर]] राज्य की [[राजधानी]] है। भौगोलिक विशेषताओं में पश्चिम में [[थार]] मरूस्थल और [[घग्गर]] नदी का अंतिम छोर है। विश्व की पुरातन श्रेणियों में प्रमुख अरावली श्रेणी राजस्थान का एकमात्र पहाडी, जो कि पर्यटन का केन्द्र है, [[माउंट आबू]] और विश्वविख्यात [[दिलवाडा का मन्दिर]] सम्मिलित करती है। पूर्वी राजस्थान में दो बाघ अभयारण्य, [[रणथम्भौर]] एवम् [[सरिस्का]] हैं और [[भरतपुर]] के समीप [[केवलादेव राष्ट्रीय उध्यान]] है, जो पक्षियों की रक्षार्थ निर्मित किया गया है।
 
==राजस्थान के एकीकरण का सफर==
भारत के संवैधानिक इतिहास में राजस्थान का निर्माण् एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी । ब्रिटिश शासको ने भारत को आजाद करने की घोषणा करने के बाद जब सत्ता हस्तांतरण की कार्यवाही शुरू कीतभी लग गया था कि आजाद भारत का राजस्थान प्रांत और राजपूताना का तत्कालीन हिस्सा भारत में एक दूभर कार्य साबित हो सकता है। आजादी की घोषणा के साथ ही राजपूताना के देशी रियासतों के मुखियाओं में स्वतंत्र राज्य में भी अपनी सत्ता बरकरार रखने की होड सी मच गयीथी , उस समय वर्तमान राजस्थान की भौगालिक स्थिति के नजरिये से देखे तो राजपूताना के इस भूभाग में कुल बाइस रियासते थी। इनमें एक रियासत अजमेर मेरवाडा प्रांत को छोड शेष पर देशी राजा महाराजाओं का ही राज था। अजमेर मेरवाडा पर ब्रिटिश शासको का कब्जा था इस कारण यह तो सीघे ही स्वतंत्र भारत में आ जाती मगर शेष इक्कीस रियासतो का विलय होना था। सत्ता की होड के चलते यह बडा ही दूभर लग रहा था क्योंकि इनके शासक भारत अपनी रियासतों का स्वतंत्र भारत में विलय दूसरी प्राथमिकता के रूप में देख रहे थे। उनकी मांग थी कि वे सालों से शासन चलाते आ रहे है। उन्हें शासन करने का अनुभव है । इस कारण उनकी रियासत को स्वतंत्र राज्य का दर्जा दे दिया जाए । करीब एक दशक की उहापोह के बीच 18 मार्च 1948 को शुरू हुयी राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया कुल सात चरण में एक नवंबर 1956 को पूरी हुयी । इसमें भारत सरकार के तत्कालीन रियासती मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनके सचिव वी पी मेनन की भूमिका महत्ती साबित हुयी । इनकी सूझबूझ से ही राजस्थान का निर्माण हो सका।
'''पहला चरण18 मार्च1948 '''
सबसे पहले अलवर , भतरपुर, धौलपुर, व करौली नामक देशी रियासतो का विलय कर तत्कालीन भारत सरकार ने फरवरी 1948 मे अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर मत्स्य यूनियन के नाम से पहला संध बनाया। यह राजस्थान के निर्माण की दिशा में पहला कदम था। इनमें अलवर व भरतपुर पर आरोप था कि उनके शासक राष्टृविरोधी गतिविधियों में लिप्त थे।इस कारण सबसे पहले उनके राज करने के अधिकार छीन लिए गए व उनकी रियासत का कामकाज देखने के लिए प्रशासक नियुक्त कर दिया गया। इसी की वजह से राजस्थान के एकीकरण की दिशा में पहला संघ बन पाया । यदि प्रशासक न होते और राजकाज का काम पहले की तरह राजा ही देखते तो इनका विलय असंभव था क्योंकि इन राज्यों के राजा विलय का विरोध कर रहे थे।18 मार्च 1948 को मत्स्य संघ का उद़घाटन हुआ और धौलपुर के तत्कालीन महाराजा उदय सिंह को इसका राजप्रमुख् मनाया गया। इसकी राजधानी अलवर रखी गयी थी। मत्स्य संध नामक इस नए राज्य का क्षेत्रफल करीब तीस हजार किलोमीटर था। जनसंख्या लगभग 19 लाख और आय एक करोड 83 लाख रूपए सालाना थी। जब मत्स्य संघ बनाया गया तभी विलय पत्र में लिख दिया गया कि बाद में इस संघ का राजस्थान में विलय कर दिया जाएगा।
''' दूसरा चरण 25 मार्च 1948'''
राजस्थान के एकीकरण का दूसरा चरण पच्चीस मार्च 1948 को स्वतंत्र देशी रियासतों कोटा, बूंदी, झालावाड, टौंक, डूंगरपुर, बांसवाडा, प्रतापगढ , किशनगढ और शाहपुरा को मिलाकर बने राजस्थान संघ के बाद पूरा हुआ। राजस्थान संध में विलय हुई रियासतों में कोटा बडी रियासत थी इस कारण इसके तत्कालीन महाराजा महाराव भीमसिंह को राजप्रमुख बनाया गया। के तत्कालीन महाराव बहादुर सिंह राजस्थान संघ के राजप्रमुख भीमसिंह के बडे भाई थें इस कारण उन्हे यह बात अखरी की छोटे भाई की राजप्रमुखता में वे काम कर रहे है। इस ईर्ष्या की परिणति तीसरे चरण के रूप में सामने आयी।
'''तीसरा चरण 18 अप्रैल 1948'''
बूंदी के महाराव बहादुर सिंह नहीं चाहते थें कि उन्हें अपने छोटे भाई महाराव भीमसिंह की राजप्रमुखता में काम करना पडें, मगर बडे राज्य की वजह से भीमसिंह को राजप्रमुख बनाना तत्कालीन भारत सरकार की मजबूरी थी। जब बात नहीं बनी तो बूंदी के महाराव बहादुर सिंह ने उदयपुर रियासत को पटाया और राजस्थान संघ में विलय के लिए राजी कर लिया। इसके पीछे मंशा यह थी कि बडी रियासत होने के कारण उदयपुर के महाराणा को राजप्रमुख बनाया जाएगा और बूंदी के महाराव बहादुर सिंह अपने छोटे भाई महाराव भीम सिंह के अधीन रहने की मजबूरी से बच जाएगे और इतिहास के पन्नों में यह दर्जहोने से बच जाएगा कि छोटे भाई के राज में बडे भाई ने काम किया। अठारह अप्रेल 1948 को राजस्थान के एकीकरण के तीसरे चरण में उदयपुर रियासत का राजस्थान संध में विलय हुआ और इसका नया नाम हुआ संयुक्त राजस्थान संघ।
'''चौथा चरण तीस मार्च 1949'''
इससे पहले बने संयुक्त राजस्थान संघ के निर्माण के बाद तत्कालीन भारत सरकार ने अपना ध्यान देशीरियासतों जोधपुर , जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर पर केन्द्रित किया और इसमें सफलता भी हाथ लगी और इन चारों रियासतो का विलय करवाकर तत्कालीन भारत सरकार ने तीस मार्च 1949 को ग्रेटर राजस्थान संघ का निर्माण किया, जिसका उदघाटन भारत सरकार के तत्कालीन रियासती मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया।
यहीं आज के राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है। इस कारण इस दिन को हर साल राजस्थान दिवस के रूप में मनाया जाता है। हांलांकि अभी तक चार देशी रियासतो का विलय होना बाकी था, मगर इस विलय को इतना महत्व नहीं दिया जाता है , क्योंकि जो रियासते बची थी वे पहले चरण में ही मत्स्य संघ के नाम से स्वतंत्र भारत में विलय हो चुकी थी। अलवर , भतरपुर, धौलपुर व करौली नामक इन रियासतो पर भारत सरकार का ही आधिपत्य था इस कारण इनके राजस्थान में विलय की तो मात्र औपचारिकता ही होनी थी।
'''पांचवा चरण 15 अप्रेल 1949'''
पन्द्रह अप्रेल 1949 को मत्स्य संध का विलय ग्रेटर राजस्थान में करने की औपचारिकता भी भारत सरकार ने निभा दी। भारत सरकार ने 18 मार्च 1948 को जब मत्स्य संघ बनाया था तभी विलय पत्र में लिख दिया गया था कि बाद में इस संघ का राजस्थान में विलय कर दिया जाएगा। इस कारण भी यह चरण औपचारिकता मात्र माना गया।
'''छठा चरण 26 जनवरी 1950'''
भारत का संविधान लागू होने के दिन 26 जनवरी 1950 को सिरोही रियासत का भी विलय ग्रेटर राजस्थान में कर दिया गया। इस विलय को भी औपचारिकता माना जाता है क्योंकि यहां भी भारत सरकार का नियंत्रण पहले से ही था। दरअसल जब राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया चल रही थी, तब सिरोही रियासत के शासक नाबालिग थे। इस कारण सिरोही रियासत का कामकाज दोवागढ की महारानी की अध्यक्षता में एजेंसी कौंसिल ही देख रही थी जिसका गठन भारत की सत्ता हस्तांतरण के लिए किया गया था। सिरोही रियासत के एक हिस्से आबू देलवाडा को लेकर विवाद के कारण इस चरण में आबू देलवाडा तहसील को बंबई और शेष रियासत विलय राजस्थान में किया गया।
'''सांतवा चरण एक नवंबर 1956'''
अब तक अलग चल रहे आबू देलवाडा तहसील को राजस्थान के लोग खोना नही चाहते थे, क्योंकि इसी तहसील में राजस्थान का कश्मीर कहा जाने वाला आबूपर्वत भी आता था , दूसरे राजस्थानी बच चुके सिरोही वासियों के रिश्तेदार और कईयों की तो जमीन भी दूसरे राज्य में जा चुकी थी। आंदोलन हो रहे थे, आंदोलन कारियों के जायज कारण को भारत सरकार को मानना पडा और आबू देलवाडा तहसील का भी राजस्थान में विलय कर दिया गया। इस चरण में कुछ भाग इधर उधर कर भौगोलिक और सामाजिक त्रुटि भी सुधारी गया। इसके तहत मध्यप्रदेश में शामिल हो चुके सुनेल थापा क्षेत्र को राजस्थान में मिलाया गया और झालावाड जिले के उप जिला सिरनौज को मध्यप्रदेश को दे दिया गया।
इसी के साथ आज से राजस्थान का निर्माण या एकीकरण पूरा हुआ। जो राजस्‍थान के
इतिहास का एक अति महत्ती कार्य था।
 
==भूगोल==