विष्णु धर्मसूत्र को 'विष्णु स्मृति' अथवा 'वैष्णव धर्मशास्त्र' भी कहते है। इसमें 100 अध्याय हैं जिनमें से कुछ अध्याय अत्यंत संक्षिप्त हैं। उनमें एक–एक पद्य और एक–एक सूत्र मात्र ही हैं। प्रथम और अन्तिम अध्याय पूर्णतया पद्यात्मक हैं।

विष्णु धर्मसूत्र

वर्णित विषय

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इसमें वर्णित विषयों का विवरण इस प्रकार हैः–

उपक्रम–पृथ्वी का विष्णु के समीप वर्णाश्रम धर्म के उपदेश–हेतु गमन, चारों वर्णों और आश्रमों का निरूपण, राजधर्म, कार्षापण आदि, अपराध और उनके लिए दण्ड, ऋण लेने वाले तथा देने वाले, ब्याज दर, बन्धक, त्रिविध व्यवहार–पत्र, साक्षी, दिव्य परीक्षाएँ–तुला, अग्नि, जल, विष और कोष, 12 प्रकार के पुत्र, असवर्ण विवाह, सन्तति का जन्म तथा उसकी स्थिति, वर्णसंकर, सम्पत्ति–विभाजन, संयुक्त परिवार, पुत्रहीन की स्थिति, स्त्रीधन, विभिन्न वर्णीय पत्नियों से उत्पन्न सन्तानों में सम्पत्ति–विभाजन, अन्त्येष्टि तथा शुद्धि, विवाह के प्रकार, नारी धर्म, विभिन्न वर्गों की स्त्रियों में परस्पर ऊँच–नीच की स्थिति, संस्कार, ब्रह्मचारी व्रत, आचार्य प्रशंसा, वेदारम्भकाल, अनध्याय, माता–पिता और आचार्य का सम्मान, अन्य सम्मान योग्य व्यक्ति, पाप, विविध पातक, नरक, पापों से साध्य रोगादि, कृच्छ्र, चान्द्रायणादि, वासुदेव भक्त का आचरण, बहुविध अपराध और उनके प्रायश्चित्त, अघमर्षणादि, व्रात्यादि के साहचर्य का निषेध, त्रिविध धन, गृहस्थ के कर्त्तव्य, आचार, पंचमहायज्ञ आदि, स्नातक के व्रत, आत्म संयम की प्ररोचना, श्राद्ध, गोदानादि, कार्त्तिक स्नान, दान प्रशंसा, कूप, तडागादि के निर्माण की प्रशंसा, वानप्रस्थ, सन्यास, शरीर विज्ञान, एकाग्रता, पृथ्वी और लक्ष्मी के द्वारा वासुदेव प्रशंसा, विष्णु धर्मसूत्र का महात्म्य।

विष्णु के गौरव से परिपूर्ण इस धर्मसूत्र पर पौराणिक आचार–विचारों का पुष्कल प्रभाव है। प्रतापरूद्रदेवविरचितसरस्वतीविलास’ से ज्ञात होता है कि इस पर भारूचि की प्राचीन व्याख्या कदाचित् थी, जो सम्प्रति अनुपलब्ध है। सम्प्रति केवल नन्द पण्डित प्रणीत ‘वैजयन्ती’ व्याख्या ही प्राप्त होती है।

इसके चार–पाँच संस्करण इस समय उपलब्ध हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है–

  • सन् 1881 में कलकत्ता से प्रकाशित जुलियस जॉली के द्वारा संपादित और अंग्रेज़ी में अनूदित तथा ‘वैजयन्ती’ सहित संस्करण। सैक्रेड बुक्स ऑफ दि ईस्ट के सप्तम भाग में भी यही अनुवाद प्रकाशित है।
  • जीवानन्द के द्वारा सम्पादित ‘धर्मशास्त्र संग्रह’ के अन्तर्गत प्रकाशित।
  • 'विष्णुसंहिता' के रूप में पंचानन तर्करत्न के द्वारा संपादित ‘ऊनविंशति संहिता’ के अन्तर्गत प्रकाशित।
  • मनसुखराय मोर के द्वारा प्रकाशित ‘स्मृतिसन्दर्भ’ में विष्णुस्मृति के रूप में उपलब्ध संस्करण।