विहंगम योग, योग एवं ध्यान का एक विद्यालय है। विश्व के ५० से अधिक देशों में इसकी शाखाएँ हैं। इनका कहना है कि ये एक प्राचीन योग पद्धति की शिक्षा देते हैं। इस विद्यलय की स्थापना सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज ने १९२४ में किया था। कोई ६ करोड़ लोग इसके सदस्य हैं। विहंगम योग ध्यान की एक प्राचीन पद्धति है जिसे सद्गुरु सदाफल देव ने पुनर्जीवित किया था।

विहंगमयोग का प्रतीक चिह्न

संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (ECOSOC) ने सन २०१३ में अन्य १६० संस्थानों के साथ प्रयागराज स्थित "गुरु सदाफल देव विहंगम योग संस्थान" को भी विहंगम योग को "विशेष परामर्शदात्री" के रूप में स्वीकृति दी थी।

सद्गुरु द्वारा रचित ग्रन्थ संपादित करें

सद्गुरु सदाफल देव महाराज ने अपने १७ वर्ष के हिमालय एवं अन्य गुफओं के प्रवास में अनेक ग्रन्थों की रचना की। उनमें से स्वर्वेद सबसे विलक्षण और पवित्र है। स्वर्वेद न केवल चेतना की तत्वमीमांसा का विज्ञान है बल्कि उसमें बताये गये चरणबद्ध आध्यात्मिक पद्धति को किसी सद्गुरु के सानिध्य में करके ज्ञान की प्राप्ति की जा सकती है और सर्वशक्तिमान ईश्वर की सत्ता का अनुभव किया जा सकता है।

स्वर्वेद की रचना गुरुदेव नेण १९३८ में अपने हिमालय की गुफा में की थी। इसमें उन्होनें अपनी चैतन्य योग समाधि के समय के अनुभव का वर्णन किया है। इसमें सरल भाषा में ३९०६ दोहे हैं। इसके साथ ही उन दोहों का अभिप्राय भी दिया है। स्वर्वेद को पढ़ने से हमारी आन्तरिक आध्यात्मिक ऊर्जा जागृत हो जाती है, इससे हमारे सारे आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का समाधान मिल जाता है।

स्वामीजी ने विहंगम योग सन्देश नामक मासिक पत्रिका भी आरम्भ की जिसका प्रकाशन १९५० से होता आ रहा है। इस पत्रिका में ब्रह्मविद्या की जानकारी दी जाती है जिसके द्वारा हम अपने जीवन में सुख, शान्ति और समृद्धि की प्राप्ति कर सकते हैं।

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