वी आर कृष्ण अय्यर
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न्यायमूर्ति वी आर कृष्ण अय्यर (15 नवम्बर 1915 – 4 दिसम्बर 2014) भारत के एक न्यायधीश थे। 1970 के दशक में वो लगभग सात वर्ष तक वे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश रहे। सर्वोच्च न्यायालय में अपने कार्यकाल में उन्होने देश के सबसे बड़े न्यायालय तक आम आदमी की पहुँच को सुलभ बनाया। उन्होने भारतीय दण्ड विधान में बहुत से सुधार किए तथा जेल एवं पुलिस में साहसिक परिवर्तन किए। उन्होंने विचाराधीन क़ैदियों के हित में 'जेल नहीं ज़मानत ही नियम है' का निर्णय दिया था।
न्यायमूर्ति वी आर कृष्ण अय्यर | |
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जन्म | 15 नवम्बर 1915 पलक्कड, मालाबार जिला, मद्रास प्रेसिडेन्सी |
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मृत्यु | 4 दिसम्बर 2014 कोच्चि, केरल | (उम्र 99 वर्ष)
राष्ट्रीयता | भारतीय |
आवास | एर्नाकुलम, केरल |
धर्म | हिन्दू |
आत्मकथा | Wandering in Many Worlds |
उन्होंने अपने समय में सर्वोच्च न्यायालय के इतिहास के सबसे ऐतिहासिक निर्णय दिये थे। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अपील तक ठुकरा दी थी, जो इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध की गई थी।
वे केरल की ईएमएस नम्बूदरीपाद के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार में कानून मंत्री रहे थे। मंत्री के रूप में उन्होंने केरल में 1950 के दशक में भूमि सुधार क़ानून लागू किए थे।
जीवन परिचय
संपादित करेंअय्यर का जन्म 1914 में केरल में हुआ था।
वह केरल में 1952 में मद्रास विधानसभा के भी सदस्य बने तथा 1957 में नब्बूरिपाद मंत्रिमंडल में कानून मंत्री भी बने। 1959 से दोबारा वकालत शुरू करने के बाद वह 1968 में केरल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने तथा 17 जुलाई 1973 को उच्चतम न्यायालय में न्यायमूर्ति बने। वह 14 नवंबर 1980 को सेवानिवृत्त हुए। वह 1971 में 19 75 तक विधि आयोग के सदस्य भी बने। 1987 में वह राष्ट्रपति के चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी आर वेकटरामन के विरुद्ध प्रत्याशी भी थे। उन्होंने 70 पुस्तकें भी लिखी थी। उन्होंने अपनी आत्मकथा वांडरिंग इन मेनी वर्ल्ड्स भी लिखी थी।