वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति
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वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति ये भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा रचित एक नाटक है। इस प्रहसन में भारतेंदु ने परंपरागत नाट्य शैली को अपनाकर मांसाहार के कारण की जाने वाली हिंसा पर व्यंग्य किया गया है। नाटक का आरम्भ नांदी के दोहा गायन के साथ हुआ है -
- बहु बकरा बलि हित कटैं, जाके बिना प्रमान।
- सो हरि की माया करै, सब जग को कल्यान॥
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संपादित करें- वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति ('हिन्दी समय' पर)
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