दक्षिणी अक्षांश ( 23½°- 35°N & S) के क्षेत्रों अर्थात उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबन्धों( इस क्षेत्र में उष्ण क्षेत्र की उठी हुई वायु नीचे गिरती है अतः यहां उच्च वायु दाब उत्पन्न हो जाता है)से भूमध्यरेखिय निम्न वायुदाब कटिबन्ध की ओर दोनों गोलाद्धों में वर्ष भर निरन्तर प्रवाहित होने वाले पवन को व्यापारिक पवन (trade winds) कहा जाता हैं। ये पवन वर्ष भर एक ही दिशा में निरन्तर बहती हैं। सामान्यतः इस पवन को उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर से दक्षिण दिशा में तथा दक्षिण गोलार्द्ध में दक्षिण से उत्तरी दिशा में प्रवाहित होना चाहिए, किन्तु फेरेल के नियम एवं कोरोऑलिस बल के कारण ये उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दायीं ओर तथा दक्षिण गोलार्द्ध में अपनी बायीं ओर विक्षेपित हो जाती हैं। व्यापारिक पवन को पुरवाई पवन भी कहा जाता है।

अटलांटिक महासागर के उपर पवनों का मानचित्र

पृथ्वी की भौगोलिक स्थिति में लगभग 5° से 30° डिग्री उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांश के क्षेत्रों अर्थात उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबंधों से भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब कटिबंधों की ओर पृथ्वी के दोनों गोलाद्र्धे में वर्षभर निरंतर प्रवाहित होने वाली हवाओं को व्यापारिक पवन कहा जाता है। इन्हें अंग्रेजी में ‘ट्रेड विंड्स’ कहते हैं। यहां ‘ट्रेड’ शब्द जर्मन भाषा से लिया गया है, जिसका तात्पर्य निर्दिष्ट पथ या मार्ग से है। इससे स्पष्ट है कि ये हवाएं एक निर्दिष्ट पथ पर वषर्भर एक ही दिशा में बहती रहती हैं।

उत्तरी गोलार्ध में ये हवाएं उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर बहती हैं, वहीं दक्षिणी गोलार्ध में इनकी दिशा दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर होती है। नियमित दिशा में निरंतर प्रवाह के कारण प्राचीन काल में व्यापारियों को पालयुक्त जलयानों के संचालन में इन हवाओं से काफी मदद मिलती थी, जिस कारण इन्हें व्यापारिक पवन कहा जाने लगा। भूमध्यरेखा के समीप दोनों व्यापारिक पवन आपस में मिलकर अत्यधिक तापमान के कारण ऊपर उठ जाती हैं तथा घनघोर वर्षा करती हैं क्योंकि वहां पहुंचते-पहुंचते ये जलवाष्प से पूर्णत: संतृप्त हो जाती हैं। इन हवाओं का वैश्विक मौसम पर भी व्यापक असर होता है।