१. व्याप्त होने की क्रिया या भाव । चारों ओर या सब जगह फैला हुआ होना ।

२. न्याय के अनुसार किसी एक पदार्थ में दूसरे पदार्थ का पूर्ण रूप से मिला या फैला हुआ होना । एक पदार्थ का दूसरे पदार्थ मे अथवा उसके साथ सदा पाया जाना । जैसे—आग में धूँए की या तिल में तेल की व्याप्ति है । यौ॰—व्याप्तिज्ञान ।

३. आठ प्रकार के ऐश्वर्यों में से एक प्रकार का ऐश्वर्य । विशेष—शेष सात ऐश्वर्यों के नाम ये हैं—अणिमा, लघिमा, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, वशित्व और कामावसायिता ।

४. सार्वजनिक नियम । सर्वव्यापक नियम (को॰) ।

५. पूणता (को॰) ।

६. प्राप्ति (को॰) ।