व्युत्पत्ति (काव्यशास्त्र)
व्युत्पत्ति :-
विपत्ति का शाब्दिक अर्थ है- निपुणता, पांडित्य। ज्ञान के उपलब्धि को भी विरोध भी कहा गया है रूद्रट ने अपने काव्यालंकार में व्युत्पत्ति के विषय में कहते हैं-
" छन्दों व्याकरण कला लोकस्थिति पद पदार्थ विज्ञानत।
युक्तायुक्त व्युत्पत्तिरियम समोसेन।"
अर्थात, "छंद, व्याकरण, कला, पदार्थों के विशिष्ट ज्ञान से उत्पन्न उचित विवेक, ज्ञान की प्राप्ति की व्युत्पत्ति हैं।"
संस्कृत आचार्य ने व्युत्पत्ति को काव्य हेतु में महत्वपूर्ण स्थान दिया है। इसके द्वारा कविताओं में उचित शब्दों का चुनाव की क्षमता उत्पन्न होती है।
उत्पत्ति दो प्रकार की होती है- (१)शास्त्रीय (२)लौकीक