शङ्खधर संस्कृत कवि थे जिन्होने 'लटकमेलकम्' नामक एक प्रहसन की रचना की है।

ये गहड़वाल नरेश गोविन्द चन्द्र के सभाकवि थे। लटमेलकम् में शाक्त एवं जैन साधुओं पर तीव्र व्यङ्ग्य किया गया है, साथ ही मूर्ख, वैद्य, शुष्क पंडित, असफल प्रेमी, सनकी दार्शनिक, बौद्ध भिक्षु (व्यसनकर) की अवान्तर कथाएं भी अत्यन्त कटाक्षपूर्ण ढंग से उल्लिखित है। चमरसेन विहार का निवासी बौद्ध भिक्षु व्यसनकार रजकी स्त्री से अपने संसर्ग को अनात्मवाद और क्षणिकवाद के सिद्धान्त द्वारा सिद्ध करता है। इस प्रकार यह मिथ्याविहारी दार्शनिक अल्पज्ञता का प्रमाण है। देवी उपासना के नाम पर पञ्चमकारों में संलग्न शाक्तों के भ्रष्टाचार के भी अनेक उदाहरण इसमें ज्ञात होते हैं।

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