शक्ति प्रणाली का संरक्षण

शक्ति तंत्र का संरक्षण (Power system protection) विद्युत शक्ति प्रणाली की शाखा है जिसके अन्तर्गत विभिन्न वैद्युत दोषों (फाल्ट्स) की स्थिति में विद्युत उपकरणों की सुरक्षा एवं विद्युत प्रदाय का सातत्य (कांटिन्युइटी) सुनिश्चित करने से समब्धित विषय आते हैं। रक्षी प्रणाली का उद्देश्य यह होता है कि दोष की स्थिति में, कम से कम समय में, केवल उन अवयवों को शेष नेटवर्क से अलग किया जाय जिनमें दोष उत्पन्न हुआ है। इससे नेटवर्क का 'स्वस्थ' भाग नेटवर्क में बना रहता है और अपना काम करता रहता है। जो युक्तियाँ विद्युत प्रणाली को दोषों से रक्षा करने के उद्देश्य से लगायी जातीं हैं उन्हें रक्षी युक्तियाँ' (प्रोटेक्टिव डिवाइसेस) कहते हैं।

जर्मनी के एक शक्ति संयंत्र का नियंत्रण-कक्ष
एक आधुनिक संरक्षा रिले ; यह वितरण प्रणाली में प्रयुक्त अनेकों कार्य करने वाली एक अंकीय रिले है। यह अकेले ही कई विद्युत-यांत्रिक रिले का काम कर सकती है। इसके अलावा इसमें स्व-परीक्षण की सुविधा तथा सूचना को दूर तक पहुँचने/लेने की भी सुविधा है।

बड़े बड़े जनित्रों, लाइनों तथा मीनारों के सिवाय विद्युत् संभरण (पॉवर सप्लाई) के महत्वपूर्ण अंग बहुत से छोटे छोटे संघटक भी होते हैं, जो नियंत्रण (control) तथा संरक्षण (protection) के काम आते हैं। वस्तुत:, इन्हीं के द्वारा विश्वसनीय संभरण (सप्लाई) संभव होता है और इसलिए ये किसी भी बड़े संघटक से कम महत्व के नहीं होते।

वोल्टता को स्थिर रखने के लिए स्वचालित वोल्टता नियंत्रक (automatic voltage regulator) प्रयुक्त किए जाते हैं। इसी प्रकार भार, शक्ति गुणांक (power factor) तथा आवृत्ति के नियंत्रण के लिए दूरस्थ नियंत्रित (remote controlled) नियंत्रकों की व्यवस्था होती है, जिनकी सहायता से नियंत्रण इंजीनियर (control engineer), नियंत्रण कक्ष (control room) में बैठा तंत्र का नियंत्रण कर सकता है। रक्षण के लिए विविध प्रकार के रिले होते हैं, जो दोष (फॉल्ट) की स्थिति में परिपथ को स्वयं खोल देते हैं और मूल्यवान सज्जा को क्षति से बचाते हैं। अतिभार की दशा में अतिभार रिले (overload relay), भूमिदोष (अर्थ फॉल्ट) की स्थिति में भूमि लीक रिले (earth leakage relay) तथा इसी प्रकार दूसरे प्रकार के दाषों में विभिन्न प्रकार के रिले की व्यवस्था होती है। ये रिले परिपथ विच्छेदक (circuit breaker) को प्रचालित कर, परिपथ को खोल देने में समर्थ होते हैं। ये साधारणतया बहुत ही कम समय में काम करते हैं। इनका व्यवस्थापन इस प्रकार किया जाता है कि ये केवल दोषी परिपथ को ही खोलें और, जिन प्रभावों में दोष न हो, उन्हें यथासंभव चालू रहने दें। इस प्रकार इनके चालन में विश्वसनीयता के साथ उपयुक्त वरणात्मक (selective) गुण भी रखा जाता है, जिससे दोषी परिपथों के साथ साथ निर्दोष परिपथों को भी बंद न होना पड़े।

परिपथ विच्छेदक भी विभिन्न प्रकार के होते हैं। अल्प वोल्टता लाइनों के लिए बहुधा वायु विच्छेदक (air break) स्विच ही प्रयुक्त किए जाते हैं, क्योंकि ये सस्ते तथा सरल होते हैं। इनमें एक स्थिर अंशक (स्टेशनरी पार्ट) तथा एक चलन अंशक होता है, जिनके संस्पर्श (मिलने) से परिपथ बंद किया जा सकता है और हटाने से खोला जा सकता है। इनका मुख्य अलाभ (disadvatage) यह है कि खोलते अथवा बंद करते समय दोनों संस्पर्शकों के बीच जो आर्क (arc) बन जाता है, उसके हानिकारक प्रभावों से बचने की कोई व्यवस्था नहीं होती। स्पष्टतया ऐसे स्विच उच्च वोल्टता लाइनों के लिए नहीं प्रयुक्त किए जा सकते। उनमें प्रयुक्त होनेवाले परिपथ विच्छेदक सामान्यत: तेल प्ररूप (आयल टाइप) के होते हैं, जिनमें परिपथ को तेल के अंदर ही खोला अथवा बंद किया जाता है। इस प्ररूप के परिपथ विच्छेदक में स्थिर और चलन अंशक दोनों ही तेल की टंकी के अंदर होते हैं। तेल अच्छे विद्युतरोधी माध्यम की व्यवस्था करने के साथ साथ, उत्पन्न होनेवाले चाप को भी बुझाने में सहायक होता है और उसके हानिकारक प्रभावों से बचाता है। ऐसा करने के लिए बहुत से परिपथ विच्छेदकों में विशेष व्यवधान भी किए जाते हैं। साथ ही अल्प वोल्टता तथा अतिभार (overload) संरक्षण युक्तियों (protective devices) की भी इन्हीं में ही व्यवस्था कर दी जाती हैं।

रक्षी प्रणाली के घटक

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  • रक्षी रिले जो दोष को समझकर समुचित परिपथ को विच्छेदित करने की प्रक्रिया आरम्भ करते हैं।
  • परिपथ विच्छेदक जो अन्ततः परिपथ को खोलता/बन्द करता है। इसके लिए यह रिले और आटोरिक्लोजर से प्राप्त निर्देशों का पालन करता है।
  • बैटरी - जब सामान्य विद्युत प्रणाली से विद्युत नहीं उपलब्ध होती, उस समय रक्षी प्रणाली के लिए विद्युत प्रदान करती है।
  • संचार के चैनेल -- जो किसी लाइन के दूरस्त सिरों तक संकेत भेजते हैं ताकि आवश्यक होने पर वहाँ से लाइन को भंग किया जा सके।

वितरण प्रणाली में फ्यूज लगे होते हैं जो अतिभार (ओवरलोड) की स्थिति में परिपथ को भंग कर देते हैं। अतः फ्यूज स्वयं धारा (अतिभार) को सेन्सा भी करता है और परिपथ को तोड़ता भी है।

इन्हें भी देखें

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फ्यूज