शरभंग दक्षिण भारत के गौतम कुलोत्पन्न एक प्रसिद्ध महर्षि थे जिनका उल्लेख रामायण में है। इनकी गणना उन महर्षियों में है जिन्होंने दंडकारण्य में गोदावरीतट पर अपना आश्रम बनाया, उत्तर की आर्य सभ्यता का प्रचार तथा विस्तार दक्षिण के जंगली प्रांत में किया और अंत में अपनी योगाग्नि मे खुद को जलाकर ब्रम्हत्व (मोक्ष) प्राप्त किया था। वनवास के समय रामचंद्र इनका दर्शन करने गए थे। जब राम जी इनके दर्शन के लिए गये थे तब उनसे पहले इंद्र देव भी स्वर्ग से अपने विमान उनको लेने के लिए आये थे परंतु शरभंग ऋषि ने उनके साथ जाने से ये कह कर मना कर दिया की जब उनकी इछा होगी तब वो खुद आयेंगे और बोला की अभी उनके आश्रम मे एक विशेष अतिथि(रामजी, सीता माता और लक्ष्मण जी)का आगमन हो गया है। उनका अतिथि सत्कार करने के बाद वो अनंत के पथ पर अग्रशर होंगे।