शलाका परीक्षा

प्राचीन मिथिला में परीक्षा प्रणाली

शलाका परीक्षा प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली की अत्यन्त वैज्ञानिक एवं परिष्कृत मूल्यांकन विधि है। प्राचीन भारतीय शास्त्रीय विषयों को यथावत् स्मरण रखने के साथ ही सम्पूर्ण शास्त्र के सांगोपांग अधिगम को प्रदर्शित करने के लिए यह विधि शास्त्र संरक्षण की मुख्य वाहिका थी। प्राचीन गुरुकुलीय शिक्षा व्यवस्था में छात्र जब किसी शास्त्र को सम्यग् रूप से जान लेता था तब उसके मूल्यांकन के लिए आचार्यगण शलाका परीक्षा का आयोजन करते थे। शास्त्रार्थ विधि से समतुल्य यह विधि शास्त्र की अनुपम निधि को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तान्तरित करने हेतु अत्यन्त परिमार्जि एवं बौद्धिक समृद्धि हेतु प्रयुक्त प्रणाली थी।

शलाका का अर्थ है एक प्रकार की पतली छोटी सी छड़ी। प्राचीन काल में इस परीक्षा के लिए मूल्यांकनकर्ता आचार्य के पास एक स्वर्ण निर्मित शलाका होती थी। जिस ग्रन्थ की परीक्षा ली जानी होती थी उसे छात्र के सम्मुख रख कर वह स्वर्ण शलाका उस ग्रन्थ के बीच रख दी जाती थी, जिस पृष्ठ पर वह शलाका रखी जीती थी वहीं से ही छात्र को ग्रन्थ में लिखी विषयवस्तु यथावत् स्मृति के आधार पर सुनानी प्रारम्भ करते हुए तब तक निरन्तर उच्चारण जारी रखनी होती है जबतक कि आचार्य उसे रोक न दे। इस प्रकार शलाका ग्रन्थ के विविध हिस्सों में रखी जाती है और तब तक यह क्रम चलता रहता है जबतक कि आचार्य गण एवं अन्य समुपस्थित परीक्षक गण सन्तुष्ट न हो जाएं। शलाका परीक्षा का स्मृति का मूल्यांकन करने वाला यह सोपान पूरा होने के बाद दूसरा चरण प्रश्नोत्तर का प्रारम्भ होता है फिर अन्तिम चरण में होता है शास्त्रार्थ। जहां शलाका के आधार पर छात्र को आचार्य से शास्त्रार्थ करना होता है और आचार्य के सन्तुष्ट हो जाने तक शास्त्रार्थ करना होता है। ऐसे लोगों के लिए ही प्रायः कहा जाता है शलाका पुरुष।

वर्तमान समय में शास्त्र संरक्षण की यह परम्परा शिक्षा पद्धति में आये बदलाव के कारण लुप्तप्राय हो गयी है। इ्सके परिणामस्वरूप वर्तमान में प्राचीन शास्त्रसंरक्षण परम्परा भी समाप्तप्राय होती जा रही है। वर्तमान समय में प्राचीन शास्त्रों के ज्ञाता, व्याख्याता और जानकार लोग निरन्तर घटते जा रहे हैं और भारतीय शास्त्रों का संरक्षण करना भी चुनौती बन गया है।

शलाका परीक्षा की प्राचीन प्रणाली को पुनर्जीवित करते हुए शास्त्रों के संरक्षण के लीए कतिपय संस्थाएं कार्य कर रही हैं जिनमें प्रमुखतः संस्कृतभारती का प्रयास प्रशंसनीय है। संस्कृतभारती विगत अनेक वर्षों से शलाका परीक्षा का आयोजन अखिलभारतीय स्तर पर कर रही है जिसमें सम्पूर्ण भारत से प्रतिभागी प्रतिभाग करते हैं।