शांडिल्य

बाह्मण गोत्र

शाण्डिल्य नाम गोत्रसूची में है, अत: पुराणादि में शाण्डिल्य नाम से जो कथाएँ मिलती हैं, वे सब एक व्यक्ति की नहीं हो सकतीं। छांदोग्य और बृहदारण्यक उपनिषद् में शाण्डिल्य का प्रसंग है। पंचरात्र की परंपरा में शाण्डिल्य आचार्य प्रामाणिक पुरुष माने जाते हैं। शाण्डिल्यसंहिता प्रचलित है; शाण्डिल्य भक्तिसूत्र भी प्रचलित है। इसी प्रकार शाण्डिल्योपनिषद नाम का एक ग्रंथ भी है, जो बहुत प्राचीन ज्ञात नहीं होता।

युधिष्ठिर की सभा में विद्यमान ऋषियों में शाण्डिल्य का नाम है। राजा सुमंतु ने इनको प्रचुर दान दिया था, यह अनुश पर्व (137। 22) से जाना जाता है। अनुशासन 65.19 से जाना जाता है कि इसी ऋषि ने बैलगाड़ी के दान को श्रेष्ठ दान कहा था।

महर्षि कश्यप के पुत्र महर्षि असित इनके पुत्र महर्षि देवल जिन्होंने ने अग्नि से एक पुत्र को उत्पन्न किया अग्नि से उत्पन्न होने के कारण इनको शांडिल्य कहा गया इनके दो पुत्र थे श्रीमुख एवं गर्दभ मुख आज भारत के सभी राज्यों में इनके वंशज मौजूद हैं श्रीमुख शांडिल्य गोत्र के चार घराने हैं राम, मणि, कृष्ण और नाथ

शाण्डिल्य नामक आचार्य अन्य शास्त्रों में भी स्मृत हुए हैं। हेमाद्रि के लक्षणप्रकाश में शाण्डिल्य को आयुर्वेदाचार्य कहा गया है। विभिन्न व्याख्यान ग्रंथों से पता चलता है कि इनके नाम से एक गृह्यसूत्र एवं एक स्मृतिग्रंथ भी था। शांडिल्य ऋषी की समाधी मंदिर भारत मे महाराष्ट्र राज्य मे पुणे नजदीक चाकण शहर मे चक्रेश्वर मंदीर के पास है रामायण कालखंड के समय बडा आश्रम यहा था