शान्त रस
जब मनुष्य मोह-माया को त्याग कर सांसारिक कार्यों से मुक्त हो जाता है और वैराग्य धारण कर परमात्मा के वास्तविक रूप का ज्ञान होता है तो मनुष्य के मन को जो शान्ति मिलती है, उसे शांत रस कहते हैं। शांत रस का स्थायी भाव निर्वेद होता है, जिसका आशय उदासीनता से है।
शांत रस की परिभाषा
संपादित करेंअगर आपसे शांत रस की परिभाषा जाये तो आप ये भी बता सकते हैं कि, “ज्ञान की प्राप्ति अथवा संसार से वैराग्य होने के पश्चात जब मनुष्य को न सुख-दुःख और न किसी से द्वेष-राग होता है, तो ऐसी मनोस्थिति में मन में उठा विभाव शांत रस कहलाता है।” पहले इसे रस नहीं माना जाता था, बाद में ऋषियो और मुनियों ने इस भाव को शांत रस की संज्ञा दी।
शांत रस का स्थायी भाव निर्वेद होता है, जब यह स्थायी होकर विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों से संयुक्त होकर रस रूप में परिणत हो जाता है, तब शान्त रस कहलाता है।
शांत रस का स्थायी भाव क्या है? शान्त रस का स्थायी भाव शम / निर्वेद या वीतराग / वैराग्य है, जिसका आशय उदासीनता है।]
शांत रस का उदाहरण
संपादित करेंउदाहरण १ मन रे तन कागद का पुतला। लागै बूँद बिनसि जाए छिन में, गरब करे क्या इतना॥
उदाहरण २ कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगौ| श्री रघुनाथ-कृपालु-कृपा तें सन्त सुभाव गहौंगो|| जथालाभ सन्तोष सदा काहू सों कछु न चहौंगो| परहित-निरत-निरंतर, मन क्रम-वचन नेम निबहौंगो||
उदाहरण ३ मन पछितैहै अवसर बीते। दुरलभ देह पाइ हरिपद भजु, करम वचन भरु हीते सहसबाहु दस बदन आदि नृप, बचे न काल बलीते॥
उदाहरण ४ तपस्वी! क्यों इतने हो क्लांत, वेदना का यह कैसा वेग? आह! तुम कितने अधिक हताश बताओ यह कैसा उद्वेग?
उदाहरण ५ मन रे ! परस हरि के चरण, सुलभ सीतल कमल कोमल, त्रिविधा ज्वाला हरण
उदाहरण ७ जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहिं। सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि॥[1]
उदाहरण ८ देखी मैंने आज जरा हो जावेगी क्या ऐसी मेरी ही यशोधरा हाय! मिलेगा मिट्टी में वह वर्ण सुवर्ण खरा सुख जावेगा मेरा उपवन जो है आज हरा
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "शांत रस का उदहारण (shant ras ka udaharan)". 19 जनवरी 2023.
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