सर शाह मुहम्मद सुलेमान(Shah Muhammad Sulaiman)(3 फरवरी 1886-12 मार्च 1941) 16 मार्च 1932 से 30 सितंबर 1937 तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पहले भारतीय मुख्य न्यायाधीश थे ।

जीवनी  

सर शाह मुहम्मद सुलेमान का जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर ज़िले के वलीदपुर गाँव में वकीलों और वैज्ञानिकों के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उनके एक पूर्वज मुल्ला महमूद जौनपुरी (डी.1652) शाहजहाँ के समय के सबसे प्रमुख दार्शनिक और भौतिक विज्ञानी थे । उनके पिता मुहम्मद उस्मान जौनपुर बार के प्रमुख सदस्य थे।

सुलेमान ने 1906 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शीर्ष स्थान प्राप्त करते हुए स्नातक की उपाधि प्राप्त की । उन्हें विदेश में अध्ययन करने के लिए प्रांतीय सरकार की छात्रवृत्ति से सम्मानित किया गया था। उन्होंने कैम्ब्रिज के क्राइस्ट कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की और 1909 में गणित ट्राइपोस(Tripos) और 1910 में लॉ ट्राइपोस  प्राप्त किया। उन्हें 1910 में डबलिन विश्वविद्यालय(आयरलैंड) द्वारा एलएलडी से भी सम्मानित किया गया ।

1911 में सुलेमान भारत लौट आए और उन्होंने जौनपुर में अपने पिता के जूनियर के रूप में वकालत शुरू कर दी । 1912 से वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत करने लगे । शेरकोर्ट की रानी के केस, ​​बमरौली केस, धरमपुर केस और भीलवाल केस में उन्हें शुरुआती सफलता प्राप्त हुई ।

उनकी योग्यता से प्रभावित होकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने उन्हें उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद को स्वीकार करने का प्रस्ताव दिया । तब वह केवल 34 वर्ष के थे । उन्हें 1929 में नाइट की उपाधि से सम्मानित किया गया । उन्हें 16 मार्च 1932 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय का स्थायी मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया । वह उक्त पद पर  30 सितंबर 1937 तक रहे । बाद में  उन्हें संघीय न्यायालय(Federal Court) में पदोन्नत किया गया।

उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य किया । वह 1938 से 1941 तक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति रहे।

उनकी मृत्यु के बाद उन्हें निज़ामुद्दीन दरगाह में अमीर खुसरो की कब्र के नज़दीक दफ़नाया गया ।