शिकारा
शिकारा एक प्रकार की लकड़ी की नाव है जो मुख्यत: भारतीय केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के श्रीनगर शहर की डल झील में प्रयोग में लाई जाती है। जम्मू कश्मीर के अलावा शिकारे जैसी नावें भारत के राज्य केरल में भी प्रयोग की जाती है। शिकारे विभिन्न आकारों में बनाये जाते हैं और लोगों के परिवहन सहित अन्य कई उद्देश्यों के लिए उपयोग में आते हैं। एक सामान्य शिकारे में लगभग छ लोग बैठ सकते हैं, और नाविक इसे पीछे की तरफ से खेता है। वेनिस के गोंडोला नाव की तरह, ये शिकारे जम्मू और कश्मीर के एक सांस्कृतिक प्रतीक माने जाते हैं।[1] पर्यटनीय परिवहन के अतिरिक्त कुछ शिकारों का उपयोग अभी भी मछली पकड़ने, जलीय वनस्पति (आमतौर पर चारे के लिए) और सामान्य परिवहन के लिए किया जाता है। अधिकांश शिकारे तिरपाल से ढके होते हैं और पर्यटकों द्वारा उपयोग किए जाते हैं हालाँकि कुछ का उपयोग गरीब लोगों द्वारा अस्थायी घरों के रूप में किया जाता है।[2] [3] केरल में भी शिकारा के समान नाव प्रयोग में आती हैं जिसे स्थानीय लोग शिक्करा कहते हैं। अल्लेप्पी के शिकारे आकार में छोटे होते हैं और इनमें ४ से २० लोग तक बैठ सकते हैं। गर्मियों के मौसम के दौरान, डल झील में शिकारा महोत्सव भी आयोजित किया जाता है।[4]
कश्मीर में इस्तेमाल की जाने वाली हल्की, सपाट तली वाली नाव ![]() | |
स्थान | Kashmir division, जम्मू और कश्मीर, हिंद |
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Street address | |
Original publication | |
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निर्माण
संपादित करेंशिकारे को प्राय: देवदार की लकड़ी से बनाया जाता है, क्योंकि यह लकड़ी पानी में विघटित नहीं होती है। इस लकड़ी की लंबाई २५ से ४१ फीट तक होती है। इसमें नुकीले अगले छोर के बाद एक केंद्रीय खंड होता है जो लकड़ी के ८ तख्तों से बनता है और यह नाव आम तौर पर अंत में एक सपाट खंड में समाप्त होती है। लकड़ी की दो पट्टियाँ दोनो तरफ से १.५ फीट की ऊँचाई देती हैं। यह एक विशिष्ट कुदाल आकार का आधार है। [3]
जुड़ने के लिए उपयोग किए जाने वाले किल और लोहे के क्लैंप लकड़ी में तिरछे लगाए जाते हैं। इससे मजबूत जोड सुनिश्चित होता हैं। नाव का सौंदर्य जताए रखने के लिए तथा उन्हें छिपाए रखने के लिए देखभाल की जाती है। पोपलर के बीज की पेस्ट के उपयोग से छेद सील कर दिए जाते हैं। यह नाव १० से १२ दिनों में बनाई जाती है। [3]
बैठने की व्यवस्था नाव के मध्य खंड में स्थित तकिये, गद्दे, बिस्तर द्वारा निर्मित की जाती है जिसके निचे सामान रखने की भी व्यवस्था भी होती है। एक शामियाना चार खंभों पर समर्थित होता है। जिसमें केंद्र और छोर लोहे के लंगर और लकड़ी के खूंटे से सुसज्जित होते हैं, जो झील के किनारे शिकारे को बांधने के लिए उपयोग होते हैं। शिकारों को अंततः चमकदार रंगों से चित्रित किया जाता है और पॉलिश और अन्य से अलंकृत किया जाता है। [3]
चित्र दिर्घा
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डल झील में शिकारे
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अपने शिकारे के साथ एक आदमी
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सूर्यास्त के समय शिकारा
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शिकारे का दृश्य
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डल झील का शिकारा
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डल झील का शिकारा
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डल झील के किनारे
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डल झील के किनारे
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डल झील का शिकारा
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डल झील पर तैरती हुई सब्जी मंडी
संदर्भ
संपादित करें- ↑ "Dal lake and the Shikara:the cultural symbols of Kashmir". Retrieved 12 मई 2020.
- ↑ Kevin Sites (2006). "Boat People, Unable to afford homes on land, the poorest of Kashmir's poor live on open fishing boats, where life is always unsteady". Yahoo! News. Archived from the original on 20 July 2006. Retrieved 2006-06-06.
- ↑ अ आ इ ई "Shikaras: The Floating versus on sounds of water". Gaatha. Archived from the original on 26 जनवरी 2014. Retrieved 3 February 2014. सन्दर्भ त्रुटि:
<ref>
अमान्य टैग है; "gaath" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है - ↑ "Shikara festival adds colour to Dal Lake". Tribune India. Retrieved १२ मई २०२०.