पुरूवंशी नरेश शिबि उशीनर देश के राजा थे। वे बड़े परोपकारी धर्मात्मा राजा थे। उनके यहां से कोई याचक खाली हाथ नहीं लौटता था। इनकी संपति परोपकार के लिए थी और शक्ति आर्त की रक्षा के लिए। वे अजातशत्रु थे। इनकी प्रजा सुखी संतुष्ट थी। राजा सदैव भगवद अराधना में लीन रहते थे। शिबि अपनी त्याग बुद्धि के लिए बहुत प्रसिद्ध थे।

चित्र:Kindness of Shibi.jpg
शिबि की दयालुता

इनकी कथा मूलतः महाभारत में है। तेरहवीं सदी के जैन कवि बालचंद्र सूरि ने करुणावज्रायुध में यह कहानी राजा वज्रायुध के नाम से कही है। कथा का प्रारूप जातक कथा के बोधिसत्व के समान है।

शिबि की कथा

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शिबि की त्याग की भावना तात्कालिक और अस्थायी है या उनके स्वभाव का स्थायी गुण, इसकी परीक्षा करने के लिए इंद्र और अग्नि ने एक योजना बनायी। अग्नि ने एक कबूतर का रूप धारण किया और इन्द्र ने एक बाज का। कबूतर को अपना आहार बनाने के लिए बाज ने उसका शिकार करने के लिए पीछा किया। कबूतर तेजी से उड़ता हुआ राजा शिबि के चरणों में जा पड़ा और बोला- मेरी रक्षा कीजिए। शिबि ने उसे रक्षा का आश्वासन दिया। पीछे-पीछे बाज भी आ पहुंचा। उसने शिबि से कहा, महाराज! मैं इस कबूतर का पीछा करता आ रहा हूं और इसे अपना आहार बना कर अपनी भूख मिटाना चाहता हूं, यह मेरा भक्ष्य है। आप इसकी रक्षा न करें।

शिबि ने बाज से कहा, इस पक्षी को अभय प्रदान किया है। इसे कोई मारे यह मैं कभी सह नहीं सकता। तुम्हें अपनी भूख मिटाने के लिए मांस चाहिए, सो मैं तुम्हें अपने शरीर से इस कबूतर के वजन के बराबर मांस काटकर देता हूं। उन्होंने एक तराजू मंगवाई और उसके एक पलड़े में कबूतर को रख दिया। दूसरे पलड़े में महाराज शिबि अपने शरीर से मांस काटकर डालने लगे। काफी मांस काट डाला किंतु कबूतर वाला पलड़ा तनिक भी नहीं हिला और अंत में महाराज शिबि स्वयं उस पलड़े पर जा बैठे और बाज से बोले, मेरा पूरा शरीर तुम्हारे सामने है, आओ भोजन करो।

महाराज शिबि की त्याग बुद्धि को स्वीकार करते हुए अग्नि और इंद्र अपने स्वाभाविक रूप में प्रकट हुए और महाराज शिबि को भी उठा कर खड़ा कर दिया। उन्होंने शिबि की त्याग भावना की बड़ी प्रशंसा की, आशीर्वाद दिया और फिर चले गए।

उशीनरों का प्रदेश मध्यदेश था। कौषीतकि उपनिषद् में उशीनर, मत्स्यों, कुरु, पांचालों एवं वंशों की श्रेणी में परिगणित हुए हैं। महाभारत के अनुसार उशीनरों ने यमुना की पार्श्ववर्ती नदियों के किनारे यज्ञ किया था (महाभारत, ३,१३०,२१)। पाणिनि ने अपने कई सूत्रों में उशीनर देश का उल्लेख किया है (अष्टाध्यायी, २, ४, २०; ४, २, ११८)। उसकी राजधानी भोजनगर थी (महाभारत ४, ११८, २)। महाभारत तथा जातक कथाओं में उशीनर और उनके पुत्र शिवि का उल्लेख मिलता है।

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