शिलप्पादिकारम को 'तमिल साहित्य' के प्रथम महाकाव्य के रूप में जाना जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ है- नूपुर (पायल)की कहानी"। इस महाकाव्य की रचना चोल वंश के शासक सेन गुट्टुवन के भाई इलांगो आदिगल ने लगभग ईसा की दूसरी-तीसरी शताब्दी में की थी। 'शिलप्पादिकारम' की सम्पूर्ण कथा नुपूर के चारों ओर घूमती है। इस महाकाव्य के नायक और नायिका 'कोवलन' और 'कण्णगी' हैं।

                    👉 राजा कोवलन अपनी पत्नी कंनगी छोड़कर माधवी नामक डांसर 💃के  प्रेम में फंस जाता है और अपनी धन दौलत उसके पीछे लुटाने के पश्चाताप होता है। उसके बाद अपनी पत्नी के पास लौटता है। उसकी पत्नी कंनगी ने उसे अपना एक पायल दिया जिसे बेचकर वे मदुरै में व्यापार प्रारंभ किया। किन्तु कोवलन पर मदुरई की रानी के द्वारा पायल चुराने का आरोप लगा दिया गया। इस जुर्म के खिलाफ उसे फांसी दे दिया गया। इस घटना से आहत होकर कोवलनकी पत्नी कनगी ने श्राप दिया, जिससे मदुरै शहर नष्ट हो गया। 

यह महाकाव्य ‘पुहारक्कांडम’, 'मदरैक्कांडम' और 'वंजिक्कांडम' तीन भागों में विभाजित है। इन तीनों भागों में क्रमशः चोल, पाण्ड्य, और चेर राज्यों का वर्णन है। महाकाव्य में कवि ने तत्कालीन तमिल समाज का सजीव चित्र प्रस्तुत करने के साथ-साथ समाज में प्रचलित नृत्यों, व्यवसायों आदि का भी परिचय दिया है।

इन्हें भी देखें

संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ

संपादित करें