ठाकुर शिवकुमार सिंह
ठाकुर शिवकुमार सिंह (1870-1968) काशी नागरीप्रचारिणी सभा के संस्थापकों में से एक थे। आपने चंदौली के मिडिल स्कूल में शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात् स्वर्गीय पं॰ श्री रामनारायण मिश्र और बाबू श्यामसुंदर दास जी तथा अन्य सहयोगियों को साथ लेकर ये सभा की उन्नति में लग गए।
अध्ययन के समय तत्कालीन विद्वान् श्री सुधाकर द्विवेदी तथा हिंदी के सर्वप्रथम उपन्यासकार श्री देवकीनंदन खत्री आदि विद्वानों के संपर्क का इनपर पर्याप्त प्रभाव पड़ा। दसवीं श्रेणी में उत्तीर्ण होने पर आपने लखनऊ के सी.टी. (C.T.) ट्रेनिंग कालेज में शिक्षण कला का अध्ययन किया।
ट्रेनिंग के पश्चात् आपने चुनार के एक विद्यालय में एक वर्ष तक प्रधानाध्यापक का कार्य किया। वहाँ लोगों के साथ प्रेमव्यवहार तथा अनुशासनशीलता के कारण आप लोकप्रिय हो गए। फलस्वरूप वहाँ के तत्कालीन अंग्रेज निरीक्षक ने आपकी प्रशंसा इलाहाबाद में शिक्षा संचालक से की, जिसके परिणामस्वरूप आप राजकीय सेवा में ले लिए गए और डिप्टी इंस्पपेक्टर के पद पर नियुक्त हुए। इसके पश्चात् आप इलाहाबाद की नगरपालिका की शिक्षा संस्था में सुपरिटेंडेंट बनाए गए। आपने जहाँ-जहाँ कार्य किया, सभी स्थानों में अपनी कर्तव्यनिष्ठा, अदम्य साहस तथा उत्साह का परिचय दिया।
भारतीय संस्कृति की रक्षा तथा हिंदी शिक्षा का प्रचार आपके ये दो मुख्य उद्देश्य थे। आपको ब्रिटिश सरकार से राय साहब की पदवी प्राप्त हुई थी। आपने वायसराय से मिलकर डिप्टी इंस्पेक्टरों के वेतनक्रम की वृद्धि करवाई थी। उतने वेतन तक आप नहीं पहुँच सके थे, परंतु अन्य पदाधिकारियों को बड़ा लाभ हुआ। सरकारी नौकरी में व्यस्त रहते हुए भी आपका अध्ययन, लेखन तथा नागरीप्रचारिणी सभा की उन्नति के प्रयास जारी रहे। आपकी लिखी पुस्तकें "कालबोध", "हिंदी सरल व्याकरण" "आदर्श माताएँ", आदर्श पतिव्रताएँ, "पंचम जार्ज की जीवनी" आदि विशेष प्रसिद्ध हैं।