शिवानंद आश्रम, मुनि की रेती
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श्री शिवानंद आश्रम की स्थापना वर्ष 1932 में स्वामी शिवानंद सरस्वती द्वारा की गई। एक स्थानीय इतिहासकार श्री बदोला के अनुसार मुनि की रेती स्वामी शिवानंद की तपोभूमि थी, जो एक मेडिकल डॉक्टर थे एवं मन की आन्तरिक शांति के लिए इस क्षेत्र में आए। वर्ष 1972 में जब श्री शिवानंद आश्रम में नारायण कुटीर के अग्रभाग की खुदाई हुई तो पुरातात्विक महत्व की चीजें पाई गई जिसने इस आश्रम को अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति मिली।
आश्रम का अन्दर
संपादित करेंजो भी लोग उनके पास उपचार के लिए आए स्वामी शिवानंद ने उनका इलाज किया और आज यह आश्रम केवल स्थानीय रोगियों का ही इलाज नहीं करता हैं वरन पश्चिम उत्तर प्रदेश तथा सम्पूर्ण उत्तराखंड के रोगियों का भी इलाज करता है। इसके अलावा इलाज के लिए अन्यत्र भेजे जाने वाले रोगियों का खर्च भी उठाता है। यह आश्रम गरीब छात्रों के पुस्तकों का मूल्य तथा खर्चे भी उठाता है तथा उन्हें छात्रवृति के अलावा निराश्रितों को रहने की सुविधा तथा लोगों के बीच सामान्य चिकित्सा एवं आंख के अस्पतालों द्वारा पहुँचता है। यह आश्रम कुष्ठ रोग से ग्रसित लोगों को भीख मांगने से बचाने के उद्देश्य से उन रोगियों की चिकित्सा तथा ब्रहृमपुरी के पास बसाये इन रोगियों की कॉलोनी की देख भी करता है।
शहर के बीचोबीच स्थित शिवानंद आश्रम आध्यात्मिक ज्ञान का श्रोत एवं वेदांत तथा योग के केन्द्र के रूप में जाना जाता है।