महास्थविर शीलभद्र (५२९-६५४) एक बौद्ध विद्वान तथा दार्शनिक थे। वे नालन्दा महाविहार के अध्यक्ष थे। वे प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग के गुरु रहे थे। जनश्रुतियों में सिलाव डीह आचार्य शीलभद्र का निवास स्थान माना जाता है। आज भी चीन से आने वाले बौद्ध धर्मावलम्बी यहां आकर शीश नवाते हैं। इस स्थान का उल्लेख ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत से लेकर प्राचीन नालंदा विवि के आख्यानों में मिलता है।

शीलभद्र योग के प्रसिद्ध विद्वान थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार उस समय विश्वविद्यालय में अनेक आचार्य थे लेकिन बहुत कम ही आचार्य सभी विषयों के विद्वान थे। आचार्य शीलभद्र सभी विषयों के महान विद्वान थे। योग उनका प्रिय विषय था।शीलभद्र एक अच्छे मनुष्य भी थे। ह्वेनसांग बताते हैं कि जब उनकी प्रतिष्ठा चारों ओर से फैलने लगी तो हर कोई नालंदा विश्वविद्यालय के विद्वान के नाते मिलना चाहते थे। इसी कारण कामाख्या के महाराजा उन्हें निमंत्रण भेजा और मैंने जाने से इंकार कर दिया।[1]

ह्वेनसांग को नालंदा में 'मोक्ष देव' के नाम से जाना जाता था एवं उनका प्रिय स्थल राजगीर का वेणुवन था। राजगीर से नालंदा जाने के क्रम में शीलभद्र के जन्म स्थल सिलाव रास्ते में होने के कारण अक्सर जाया करते थे। कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि शील का उपदेश भगवान बुद्ध सिलाव में ही दिए थे, इसलिए इस शहर का नाम सिलाव पड़ा। यहां जो खण्डहर है वह शीलभद्र का निवास स्थान है। कुछ विद्वान इसे महा कश्यप का जन्म स्थान मानते हैं। डा० रवीन्द्र पन्त के अनुसार 1920 में पुरातत्व विभाग ने इस क्षेत्र को महाकश्यप से संबंधित बताया।

बाहरी कड़ियाँ

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