खेल सिद्धांत और अर्थशास्त्र में शून्य-संचय खेल (zero-sum game) या शून्य-जोड़ खेल ऐसी व्यवहारिक परिस्थिति को कहा जाता है जिसमें एक व्यक्ति को जितना लाभ होता है ठीक उतनी ही हानि किसी अन्य व्यक्ति (या व्यक्तियों) को होती है।[1] मसलन दो लोगों के पास सौ-सौ रुपये हों और वे आपस में पैसों की लेन-देन कर रहे हों तो यह एक 'शून्य-संचय खेल' है क्योंकि जितना अधिक एक को मिलेगा उतना ही कम दूसरे को मिलेगा। अगर दोनों की लाभ और हानि का कुल संचय करके देखा जाए तो शुन्य होगा। इसके विपरीत अशून्य-संचय खेल में अगर नफ़े-नुकसान को मिलाकर देखा जाए तो शून्य से ज़्यादा या कम हो सकता है। शुन्य-संचय खेल हमेशा प्रतियोगी (competitive, कम्पॅटटिव) ही होता है जबकि अशून्य-संचय खेल प्रतियोगी या ग़ैर-प्रतियोगी हो सकता है।

एक शून्य-संचय खेल
लाल पीला हरा
३०, -३० -१०, १० २०, -२०
१०, -१० २०, -२० -२०, २०

एक खेल का उदाहरण लीजिये जिसमें 'क' और 'ख' नामक दो खिलाड़ी हैं। खिलाड़ी 'क' को दो में से एक अंक का चुनाव करना है - १ या २। खिलाड़ी 'ख' को तीन रंगों में से एक चुनना है - लाल, पीला या हरा। इन दोनों के चुनावों को देखकर इनमें से एक को एक राशि ईनाम में दी जाती है और दूसरे से उतनी ही राशि जुर्माने में ली जाती है। साथ की तालिका में दर्शाया गया है की चुनावों के हिसाब यह राशियाँ क्या हैं (लाल राशि खिलाड़ी 'क' की और नीली राशि खिलाड़ी 'ख' की है)। देखा जा सकता है कि यह एक शून्य-संचय खेल है क्योंकि इसमें जितना लाभ एक को होगा उतना ही नुकसान दूसरे को होगा। खेल सिद्धांत में ऐसी ही परिस्थितियों का अध्ययन किया जाता है। इस खेल में यह हो सकता है -

  • खिलाड़ी 'क' सोचता है कि 'अगर मैंने २ चुना तो मैं २० हार सकता हूँ या २० जीत सकता हूँ। अगर मैंने १ चुना तो ३० जीत सकता हूँ लेकिन सिर्फ १० ही हार सकता हूँ। इसलिए मुझे १ चुनना चाहिए।'
  • खिलाड़ी 'ख' सोच सकता है कि 'ज़रूर खिलाड़ी क १ ही चुनेगा, इसलिए मुझे पीला रंग चुनना चाहिए जिस से मैं १० जीतूंगा और वह १० हारेगा।'
  • खिलाड़ी 'क' सोच सकता है कि 'ज़रूर खिलाड़ी ख सोचेगा कि मैं १ चुनने वाला हूँ, इसलिए वह मुझे हराने के लिए पीला चुनेगा। इसलिए मुझे उसकी अपेक्षाओं के विपरीत २ चुन लेना चाहिए। फिर मैं २० जीतूंगा और वह २० हारेगा।'
  • खिलाड़ी 'ख' सोच सकता है कि 'ज़रूर खिलाड़ी क सोचेगा कि मैं उसके १ चुनने की उम्मीद में पीला चुनुँगा इसलिए वह वास्तव में २ चुनेगा। इसलिए मुझे हरा चुनना चाहिए जिस से वह २० हारे और मैं २० जीतूँ।'

देखा जा सकता है कि इसमें दोनों खिलाड़ी एक दूसरे के विचारों को समझने की अत्यधिक कोशिश करते हैं क्योंकि उनके लिए अच्छा चुनाव क्या है यह दूसरे के चुनाव पर निर्भर है। इस प्रकार के 'शुन्य-संचय खेल' का हल इमेल बोरेल (Émile Borel) और जॉन वाॅन न्यूमन (John von Neumann) नामक गणितज्ञों ने प्रायिकता (प्रॉबाबिलिटी) के प्रयोग से दिया था।

मनोविज्ञान

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अक्सर दो प्रतिद्वंदियों में ऐसी स्थिति बन जाती है जिसमें द्वेष की आदत पड़ने से वह यह समझने लगते हैं की अगर एक का कुछ लाभ होता है तो इसका मतलब है कि दूसरे का उतना ही नुकसान हो रहा है। अर्थात वह यह समझने लगते हैं कि उनकी आपसी समबन्ध एक शुन्य-संचय खेल है। शुन्य-संचय खेलों में अगर एक पक्ष दूसरे को कोई भी हानि पहुँचा सके तो अवश्य पहुँचाने की कोशिश करता है।[2] लेकिन ऐसा भी होता है कि कुछ स्थितियों में वास्तव में आपसी सम्बन्धों का सिलसिला एक अशून्य-संचय खेल होता है जिसमें किसी घटना से दोनों का लाभ या दोनों की हानि भी हो सकती है। मसलन व्यापार को लेकर देशों में अक्सर आपसी झड़पें हो जाती हैं लेकिन यह ऐसी चीज़ है जिस से दोनों पक्षों का लाभ हो सकता है।[3]

इन्हें भी देखें

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  1. Gaming the Market: Applying Game Theory to Create Winning Trading Strategies, Ronald B. Shelton, pp. 24, John Wiley and Sons, 1997, ISBN 978-0-471-16813-3, ... A zero sum game is defined as a game where the payoff to player 1 is the exact opposite of the payoff to player 2 ...
  2. The Psychology of Conflict and Combat, Ben Shalit, pp. 43, Greenwood Publishing Group, 1988, ISBN 978-0-275-92753-0, ... For Baron, the conflict is always a zero-sum game: One player's gain must always mean the other player's loss. Rappaport (1964) describes the essence of a zero-sum game as that game in which, if one player can do something to hurt another, he will do so ...
  3. Making Globalization Work, Joseph E. Stiglitz, pp. 99, W. W. Norton & Company, 2007, ISBN 978-0-393-33028-1, ... Trade is not a zero-sum game, in which those who win do so at the cost of others; it is, or least it can be, a positive-sum game, in which everyone can be a winner ...