राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार
राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार भारत में हर वर्ष 26 जनवरी की पूर्व संध्या पर बहादुर बच्चों को दिए जाते हैं। भारतीय बाल कल्याण परिषद ने 1957 में ये पुरस्कार शुरु किये थे। पुरस्कार के रूप में एक पदक, प्रमाण पत्र और नकद राशि दी जाती है। सभी बच्चों को विद्यालय की पढ़ाई पूरी करने तक वित्तीय सहायता भी दी जाती है। 26 जनवरी के दिन ये बहादुर बच्चे हाथी पर सवारी करते हुए गणतंत्र दिवस परेड में सम्मिलित होते हैं।
rastrapati dwara puraskarit bacche | ||
पुरस्कार संबंधी सूचना | ||
---|---|---|
प्रकार | सिविलियन | |
वर्ग | 6 से 18 वर्ष तक की आयु के बच्चे | |
स्थापित | 1957 | |
पिछला अलंकरण | 2014 (वर्ष 2013 के लिए) | |
कुल प्राप्तकर्ता | 871 बच्चे (618 लड़के व 253 लड़कियाँ)[1] | |
प्रदाता | भारत सरकार; भारतीय बाल कल्याण परिषद (Indian Council for Child Welfare-ICCW) |
पुरस्कार
संपादित करेंइन पुरस्कारों में निम्न पाँच पुरस्कार सम्मिलित हैं :.[2]
- भारत पुरस्कार, (1987 से)
- गीता चोपड़ा पुरस्कार, (1978 से)
- संजय चोपड़ा पुरस्कार, (1978 से)
- बापू गायधनी पुरस्कार, (1988 से)
- सामान्य राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार, (1957 से)
भारतीय बाल कल्याण परिषद के प्रायोजित कार्यक्रम के अंतर्गत विजेताओं को तब तक वित्तीय सहायता दी जाती है जब तक उनकी स्कूल की पढ़ाई पूरी नहीं होती। कुछ राज्य सरकारें भी वित्तीय सहायता देती हैं। इंदिरा गांधी छात्रवृत्ति योजना के अंतर्गत आईसीसीडब्ल्यू उन बच्चों को वित्तीय सहायता देती है जो इंजीनियरिंग और मेडिकल जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रम की पढ़ाई करते हैं। अन्य बच्चों को यह सहायता उनकी स्नातक शिक्षा पूरी होने तक दी जाती है। भारत सरकार ने विजेता बच्चों के लिए मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज तथा पोलीटेक्नीक में कुछ सीटें आरक्षित कर रखी हैं। वीरता पुरस्कारों के लिए चयन उच्च अधिकार प्राप्त समिति करती है जिसमें विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के प्रतिनिधि, गैर सरकारी संगठन और भारतीय बाल कल्याण परिषद के वरिष्ठ सदस्य शामिल होते हैं।[1]
पृष्ठभूमि
संपादित करें2 अक्टूबर,1957 में 14 साल की उम्र के बालक हरीश मेहरा ने अपनी जान की परवाह किए बगैर पंडित नेहरू और तमाम दूसरे गणमान्य नागरिकों को एक बड़े हादसे से बचाया था।
उस दिन पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी, जगजीवन राम आदि रामलीला मैदान में चल रही रामलीला देख रहे थे कि अचानक उस शामियाने के ऊपर आग की लपटें फैलने लगीं, जहां ये हस्तिय़ां बैठी थीं। हरीश वहाँ पर वॉलंटियर की ड्यूटी निभा रहे थे। वे फौरन 20 फीट ऊंचे खंभे के सहारे वहां चढे तथा अपने स्काउट के चाकू से उस बिजली की तार को काट डाला, जिधर से आग फैल रही थी। यह कार्य करने में हरीश के दोनों हाथ बुरी तरह झुलस गए थे।[3]
एक बालक के इस साहस से नेहरु अत्यधिक प्रभावित हुए और उन्होंने अखिल भारतीय स्तर पर एसे बहादुर बच्चों को सम्मानित करने का निर्णय लिया। सबसे पहला पुरस्कार हरीश चंद्र मेहरा को प्रदान किया गया।[3]
1957 में पुरस्कार शुरू होने के बाद से भारतीय बाल कल्याण परिषद 871 बहादुर बच्चों को पुरस्कार प्रदान कर चुकी हैं, जिनमें 618 लड़के और 253 लड़कियां शामिल हैं।[4]
राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार, 2013
संपादित करेंवर्ष 2012 के दौरान किए गए साहसिक कृत्यों के लिए 2013 के गणतंत्र दिवस पर 22 बच्चो (18 लड़के, 4 लड़कियां) को पुरस्कृत किया गया। इनमें से कुछ ने बच्चों और बुजर्गों को डूबने से बचाया जबकि कुछ ने अपने साथियों और परिवार के सदस्यों को अग्नि, डकैती और चोरों के हाथों मारे जाने से बचाया है। एक लड़की ने अपनी छोटी बहन की चीते के पंजों से रक्षा की और दूसरी ने बाल विवाह से बचने के लिए अधिकारियों को इसकी जानकारी दी। एक बहादुर बच्चे की कुछ अन्य बच्चों को डूबने से बचाने के दौरान मृत्यु हो गयी।[5]
राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार, 2014
संपादित करें2014 में बहादुरी पुरस्कार के लिए 25 बच्चों को दिए गए, जिनमें 9 लड़कियां शामिल हैं। पांच पुरस्कार मरणोपरांत दिए गए।
- भारत पुरस्कार साढ़े आठ वर्षीय दिल्ली की कुमारी महिका को दिया जाएगा, जिसने केदारनाथ (उत्तराखंड) की बाढ़ में अपने भाई की जान बचाई थी।
- गीता चोपड़ा पुरस्कार राजस्थान की 16 वर्षीय कुमारी मलिका सिंह को दिया जाएगा, जिसने अपने साथ छेड़छाड़ कर रहे लोगों से मुकाबला करते समय बहादुरी का परिचय दिया।
- संजय चोपड़ा पुरस्कार महाराष्ट्र के 17 वर्षीय शुभम संतोष चौधरी को दिया जाएगा, जिसने स्कूल वैन में आग लगने पर दो बच्चों की जान बचाई।
- बापू गैधानी पुरस्कार महाराष्ट्र के साढ़े 17 वर्षीय मास्टर संजय नवासू सुतार, महाराष्ट्र के 13 वर्षीय अक्षय जयराम रोज, उत्तर प्रदेश की 11 वर्षीय स्वर्गीय कुमारी मौसमी कश्यप और 14 वर्षीय स्वर्गीय मास्टर आर्यन राज शुक्ला को प्रदान किया जाएगा।
- अन्य पुरस्कृत बच्चों में कुमारी शिल्पा शर्मा (हिमाचल प्रदेश), मास्टर सागर कश्यप (नई दिल्ली), मास्टर अभिषेक एक्का (छत्तीसगढ़), मास्टर एस. एस. मनोज (कर्नाटक), मास्टर सुबीन मैथ्यू, मास्टर अखिल बीजू और मास्टर यदूकृष्णन वी.एस. (सभी केरल), मास्टर सौरभ चंदेल (मध्यप्रदेश) कुमारी तनवी नन्द कुमार ओवहल और मास्टर रोहित रवि जनमांची (महाराष्ट्र), मास्टर कंजलिंगगनबा क्षेत्रीमयूम, कुमारी खरीबाम गुणीचंद देवी और स्व. मास्टर एम. खइंगथेई (सभी मणिपुर), मास्टर वनलालरूआइया, कुमारी रेमलालरूआइलुआंगी, स्व. कुमारी मालसोमथुआंगी और कुमारी हनी गुरथिनथारी (सभी मिजोरम) और स्व. मास्टर एल. मानियो चाचेई (नागालैंड) शामिल हैं।[4]
राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार, 2015
संपादित करेंराष्ट्रीय वीरता पुरस्कार-2015 तीन लड़कियों और 22 लड़कों सहित कुल 25 बहादुर बच्चों को दिए गए।[6]
- भारत पुरस्कार महाराष्ट्र के 15 वर्षीय स्वर्गीय मास्टर गौरव कवडूजी सहस्रबुद्धि को प्रदान किया जाएगा, जिसने अपने चार मित्रों को बचाने के प्रयास में अपना जीवन बलिदान कर दिया।
- गीता चोपड़ा पुरस्कार तेलंगाना की 8 वर्षीय कुमारी शिवमपेट रूचिता को दिया जाएगा, जिसने अपनी स्कूल बस की एक ट्रेन से टक्क्र होने के बाद दो बहुमूल्य जान बचाते हुए अदम्य साहस का परिचय दिया।
- संजय चोपड़ा पुरस्कार उत्तराखंड के 16 वर्षीय मास्टर अर्जुन सिंह को प्रदान किया जाएगा, जिसने अपनी मां के जीवन को एक चीते से बचाते हुए अदम्य साहस का परिचय दिया।
- बापू गैधानी पुरस्कार मिजोरम के 15 वर्षीय मास्टर रामदीनथारा, गुजरात के 13 वर्षीय मास्टर राकेशभाई शानाभाई पटेल और केरल के 12 वर्षीय मास्टर अरोमल एस.एम. को प्रदान किया जाएगा। मास्टर रामदीनथारा ने बिजली से दो व्यक्तियों की जान बचाई। मास्टर राकेशभाई ने एक गहरे कुंए में गिर गए एक लड़के की जान बचाई, जबकि मास्टर अरोमल ने दो महिलाओं को डूबने से बचाया।
पुरस्कार प्राप्त करने वाले अन्य विजेताओं में मास्टर कशिश धनानी (गुजरात), मास्टर मॉरिस येंगखोम और मास्टर चोंगथेम कुबेर मेइती (मणिपुर), कुमारी एंजिलिका तेंनसोंन (मेघालय), मास्टर सांईकृष्ण, अखिल कायेलंबी (तेलंगाना), कुमारी जोयना चक्रवती और मास्टर सर्वानंद साहा (छत्तीसगढ़़), मास्टर दिशांत मेहंदीरत्ता (हरियाणा), मास्टर बीधोवन, मास्टर नीतिन फिलिप मैथ्यू, मास्टर अभिजीत के.वी., मास्टर अनन्दू दलिफ और मास्टर मोहम्मद शमनाद (केरल), मास्टर मोहित महेन्द्र दलवी, मास्टर निलेश रिवाराम भिल, मास्टर वैभव रमेश घनगरे (महाराष्ट्र), मास्टर अभिनाष मिश्र (ओडिशा), मास्टर भीमसेन उर्फ सोनू और स्वर्गीय मास्टर शिवांश सिंह (उत्तर प्रदेश)।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ अ आ "राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार- 2012, विजेता बच्चों ने उपराष्ट्रपति से भेंट की". पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार. 22 जनवरी 2013. मूल से 1 फ़रवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 जनवरी 2014.
- ↑ "National Awards for Bravery". ICCW official website. मूल से 13 जनवरी 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि March 5, 2013.
- ↑ अ आ "बालवीर, जिन्हें भुला दिया गया". नवभारत टाईम्स. 26 जनवरी 2014. मूल से 2 फ़रवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 जनवरी 2014.
- ↑ अ आ "25 बच्चे राष्ट्रीय बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित". पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार. 19 जनवरी 2014. मूल से 1 फ़रवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 जनवरी 2014.
- ↑ "बच्चे देश के लिये भविष्य के प्रकाशपुंज हैं- श्रीमती कृष्णा तीरथ". पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार. 23 जनवरी 2013. मूल से 1 फ़रवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 जनवरी 2014.
- ↑ "25 बहादुर बच्चों का राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार -2015 के लिए चयन". पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार. 18 जनवरी 2016. अभिगमन तिथि 19 जनवरी 2016.