श्री सिध्देश्वर महादेव मंदिर
छत्तीसगढ के रायपुर जिला मुख्यालय से 70 किमी की दूरी पर बलौदा बाजार तहसील मुख्यालय से 15 किमी की दूरी पर ग्राम पलारी मे एक प्राचीन शिव मंदिर स्थित है इसे ही सिध्देश्चर मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंदिर की स्थापना बाल समुंद तालाब के निकट की गई है। मंदिर के निर्माण का समय 8-9वीं शताब्दी के मध्य माना जाता है। मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया एक उत्कृष्ट वास्तुकला का उदाहरण है। मंदिर निर्माण की प्रक्रिया मे स्थानीय एवं पूरी तरह से देशी शैली का उपयोग किया गया है जो अपने आप मे एक आश्चर्यजनक तथ्य है।
इस स्थानीय शैली मे मंदिर का निर्माण विशिष्ट प्रकार से किया गया है जिसके अंतर्गत सबसे पहले मंदिर के स्थान का चयन कर उस स्थान पर गुंबद के आकार के छेनो (गोबर के कंडो) को व्यवस्थित कर उसके ऊपर चिकनी मिट्टी की मोटी तहो को चढाया गया तथा इस मिट्टी मे विभिन्न प्रकार की आकृतिया बनाई गई एवं ईटो की कटिंग की गई। तत्पश्चात अंदर की ओर रखे गए छेनो मे आग लगा दी गई। इस प्रकार पूरे मंदिर के ढांचे को पकाया गया और छेनो की राख को मंदिर मे गर्भगृह के पत्थर के द्वार से बाहर निकाला गया। जिस प्रकार कुम्हार अपने मिट्टी के बर्तनो एवं अन्य मिट्टी की सामग्रियो को पकाकर तैयार करता है ठीक उसी प्रकार यह मंदिर भी तैयार किया गया। इस प्रकार की मंदिर निर्माण की प्रक्रिया और कही भी सुनने या देखने को नही मिलती है। अत: यह छत्तीसगढ के साथ साथभारत का भी एक अनोखा मंदिर है जो अपनी विशिष्ट निर्माण शैली के लिये जाना जाता है।
मंदिर का गर्भगृह पत्थरो से निर्मित है तथा गर्भगृह के दोनो ओर गंगा-जमुना देवी की कलात्मक मुर्तियो का अंकन है। मंदिर का शिखर ध्वस्त हो गया था जिसका जीर्णोध्दार किया गया है। मंदिर के मंडप का निर्माण भी बाद मे किया गया है। नदी देवी गंगा एवं जमुना के पास छत्रधारिणी परिचायिकाओ का भी सुंदर अंकन है। मंडप मे एक नदी की मुर्ति की स्थापना है। गर्भगृह के द्वार पर विभिन्न प्रकार की मुर्तियो का कलात्मक अंकन है। गर्भगृह बाह्य भित्तियो पर विभिन्न प्रकार की अलंकृत मुर्तियो का अंकन किया गया है। जिनमे से प्रमुख थे गणेश, सिंह, हाथी एवं कीर्ति मुखो की अधिकता है। इन सभी प्रकार की मुर्तियो एवं आकृतियो को मिट्टी को काटकर बनाया गया है जो अपने आप मे विशिष्टता लिये हुए है।
पलारी का उक्त सिध्देश्वर महादेव मंदिर अपनी स्थानीय मंदिर निर्माण शैली एवं स्थापत्य की दृष्टि से देखा जाए तो छत्तीसगढ मे पलारी का यह मंदिर पर्यटको को अपनी ओर आकर्षित करने की सभी विशेषताए अपने मे समेटे हुए है। आवश्यकता केवल इस बात की है कि इस स्थान का प्रचार प्रसार हो ताकि लोगो को यह पता लग सके कि इस प्रकार का विशिष्ट मंदिर भई है जो प्रकृति के झंझावातो को भी सहते हुए 1100 वर्षो से अडिग खडा है।