श्वसन
श्वसन आन्तरिक वातावरण के साथ गैस विनिमय को सुविधाजनक बनाने हेतु फुप्फुसों से वायु को भीतर और बाहर ले जाने की प्रक्रिया है।
सभी वायवीय जीव को कोशिकीय श्वसन हेतु ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, जो भोजन से प्राप्त अण्वों के साथ ऑक्सीजन की प्रतिक्रिया से ऊर्जा निकालती है और अपशिष्ट उत्पाद के रूप में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन करती है। श्वसन, फुफ्फुसों में वायु लाता है जहाँ विसरण के माध्यम से वायुकोश में गैस का आदान-प्रदान होता है।
शरीर की परिसंचरण तंत्र इन गैसों को कोशिकाओं तक पहुंचाती है, जहां कोशिकीय श्वसन होता है। [1] [2]
सभी कशेरुकों की फुफ्फुसों से श्वसन में नलियों या श्वसन पथ की अत्यधिक शाखाओं वाली तन्त्र के माध्यम से अन्तःश्वसन और निःश्वसन के पुनरावृत्त चक्र होते हैं जो नाक से वायुकोश तक जाते हैं। [3] प्रति मिनट श्वसन चक्रों की संख्या श्वास या श्वसन दर है, और यह जीवन के चार प्राथमिक महत्वपूर्ण लक्षणों में से एक है। [4] सामान्य परिस्थितियों में श्वसन की गहराई और दर स्वचालित रूप से और अनजाने में, कई समस्थापन द्वारा नियंत्रित होती है जो धमनी रक्त में कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन के आंशिक दाब को स्थिर रखते हैं। विभिन्न प्रकार की शारीरिक परिस्थितियों में धमनी रक्त में कार्बन डाइऑक्साइड के आंशिक दाब को अपरिवर्तित रखना, बाह्यकोशिकीय द्रव के पीएच के शक्त नियंत्रण में महत्वपूर्ण योगदान देता है। अतिश्वसन (अतिवातायन) और न्यूनश्वसन (अल्पवातायन), जो क्रमशः कार्बन डाइऑक्साइड के धमनी आंशिक दाब को कम और बढ़ाते हैं, पहले मामले में बाह्यकोशिकीय द्रव के पीएच में वृद्धि का कारण बनते हैं, और दूसरे में पीएच में कमी का कारण बनते हैं। दोनों ही पीड़ाजनक लक्षण उत्पन्न करते हैं।
श्वसन के अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य हैं। यह भाषण, हास्य और भावनाओं की समान अभिव्यक्ति हेतु एक तंत्र प्रदान करता है। इसका प्रयोग उबासी, काश और छींक जैसी प्रतिक्रिया हेतु भी किया जाता है। जो जानवर स्वेद से प्राणिऊष्मा नहीं कर सकते, क्योंकि उनमें पर्याप्त स्वेद-ग्रन्थि नहीं होती हैं, वे ऊर्ध्वश्वसन के माध्यम से वाष्पन द्वारा ताप खो सकते हैं।
श्वसनांग
संपादित करेंप्राणियों के विभिन्न वर्गों के बीच श्वसन की क्रियाविधि उनके निवास और संगठन के अनुसार बदलती है। निम्न अकशेरुकी जैसे स्पंज, आन्तर्गुही, पट्टकृमि आदि और ऑक्सीजन-कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान अपने सारे शरीर की सतह से सरल विसरण द्वारा करते हैं। भूकृमि अपनी नेत्र उपत्वचा को श्वसन हेतु उपयोग करते हैं। कीटों के शरीर में नलिकाओं का एक जाल (श्वसन नलिकाएँ) होता है; जिनसे वातावरण की वायु का उनके शरीर में विभिन्न स्थान पर पहुँचती है; ताकि कोशिकाएँ सीधे गैसों का आदान-प्रदान कर सकें। जलीय सन्धिपाद तथा मृदुकवची में श्वसन विशेष संवहनीय संरचना क्लोम द्वारा होता है, जबकि स्थलचर प्राणियों में श्वसन विशेष संवहनीय थैली फुप्फुस द्वारा होता है। कशेरुकों में मछलियाँ क्लोम द्वारा श्वसन करती हैं जबकि उभयचर सरीसृप, पक्षी और स्तनधारी फुप्फुसों द्वारा श्वसन करते हैं। मण्डूक अपनी आर्द्र त्वचा द्वारा भी श्वास ले सकते हैं। स्तनधारियों में एक पूर्ण विकसित श्वसन तन्त्र होती है।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Hall, John (2011). Guyton and Hall Textbook of Medical Physiology (12th ed.). Philadelphia, Pennsylvania: Saunders/Elsevier. p. 5. ISBN 978-1-4160-4574-8.
- ↑ Pocock, Gillian; Richards, Christopher D. (2006). Human physiology: the basis of medicine (3rd ed.). Oxford: Oxford University Press. p. 311. ISBN 978-0-19-856878-0.
- ↑ Pocock, Gillian; Richards, Christopher D. (2006). Human physiology: the basis of medicine (3rd ed.). Oxford: Oxford University Press. p. 320. ISBN 978-0-19-856878-0.
- ↑ "Vital Signs 101". Johns Hopkins Medicine (in अंग्रेज़ी). 14 June 2022.