19 वर्ष की अवस्था में चरनदासजी ने शुकदेव जी से गुरु-मंत्र लिया, और उसके बाद यह स्थायी रूप से दिल्ली में रहने लगे। इनके 52 मुख्य शिष्य थे। सुप्रसिद्ध सहजोबाई और दयाबाई इन्हीं की शिष्या थीं। चरनदासजी के विचारों पर कबीरदास की स्पष्ट छाया पड़ी है। ढोंग, पाखण्ड और विभिन्न मतों की इन्होंने, कबीरदास की ही तरह, कड़ी आलोचना की है। चरनदासजी एक पहुँचे हुए संत और योगी थे।

संत चरनदास
जन्म सन 1760 ई ०
डेहरा गाँव (अलवर राज्य)
मौत सन 1839 ई ०