संसद भवन
संसद भवन नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन से 750 मीटर की दूरी पर, संसद मार्ग पर स्थित है जो सेंट्रल विस्टा को पार करता है और इंडिया गेट, युद्ध स्मारक, प्रधानमन्त्री कार्यालय और निवास, मंत्री भवन और भारत सरकार की अन्य प्रशासनिक इकाइयों से घिरा हुआ है। इसके सदन लोक सभा और राज्य सभा हैं जो भारत की द्विसदनीय संसद में क्रमशः निचले और उच्च सदनों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
संसद भवन | |
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राजपथ से संसद भवन का दृश्य | |
सामान्य विवरण | |
अवस्था | सक्रीय |
प्रकार | राष्ट्रीय विधायिका |
वास्तुकला शैली | दिल्ली श्रृंखला |
पता | संसद मार्ग, नई दिल्ली |
शहर | नई दिल्ली |
राष्ट्र | भारत |
निर्देशांक | 28°37′02″N 77°12′29″E / 28.617189°N 77.208084°E |
निर्माणकार्य शुरू | 2021 |
शुरुवात | 2023 |
स्वामित्व | भारत सरकार |
ऊँचाई | |
वास्तुकला |
वृत्ताकार अभिन्यास (भारत के चौंसठ योगिणीं मंदिर की अकृती से प्रेरित) |
छत | ११८ फुट(केंद्रीय कक्ष) |
प्राविधिक विवरण | |
संरचनात्मक प्रणाली |
वृत्ताकार अभिन्यास (भारत के चौंसठ योगिणीं मंदिर की अकृती से प्रेरित) |
अन्य आयाम |
व्यास: ५६० फुट ५३३ मीटर |
योजना एवं निर्माण | |
वास्तुकार | एडविन लटियन्स और हर्बर्ट बेकर |
बैठक क्षमता | 790 |
इसका निर्माण 2021 और 2023 के बीच किया गया था। भारत सरकार की सेंट्रल विस्टा जीर्णोद्धार परियोजना के हिस्से के रूप में वर्तमान भवन के ठीक सामने संसद के लिए एक नया भवन निर्माणाधीन है।
निर्माण
संसद भवन का निर्माण १९२१-१९२७ के दौरान किया गया था। संसद भवन नई दिल्ली की बहुत ही शानदार भवनों में से एक है। यह विश्व के किसी भी देश में विद्यमान वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। इसकी तुलना विश्व के सर्वोत्तम विधान-भवनों के साथ की जा सकती है। यह एक विशाल वृत्ताकार भवन है। जिसका व्यास ५६० फुट तथा जिसका घेरा ५३३ मीटर है। यह लगभग छह एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। भवन के १२ दरवाजे हैं, जिनमें से पाँच के सामने द्वार मंडप बने हुए हैं। पहली मंजिल पर खुला बरामदा हल्के पीले रंग के १४४ चित्ताकर्षक खंभों की कतार से सुसज्जित हैं। जिनकी प्रत्येक की ऊँचाई २७ फुट है।
भले ही इसका डिजाइन विदेशी वास्तुकारों ने बनाया था किंतु इस भवन का निर्माण भारतीय सामग्री से तथा भारतीय श्रमिकों द्वारा किया गया था। तभी इसकी वास्तुकला पर भारतीय परंपराओं की गहरी छाप है।
इस भवन का केंद्र बिंदु केंद्रीय कक्ष (सेंट्रल हाल) का विशाल वृत्ताकार ढांचा है। केंद्रीय कक्ष के गुबंद का व्यास ९८ फुट तथा इसकी ऊँचाई ११८ फुट है। विश्वास किया जाता है कि यह विश्व के बहुत शानदार गुबंदों में से एक है। भारत की संविधान सभा की बैठक (१९४६-४९) इसी कक्ष में हुई थी। १९४७ में अंग्रेजों से भारतीयों के हाथों में सत्ता का ऐतिहासिक हस्तांतरण भी इसी कक्ष में हुआ था। इस कक्ष का प्रयोग अब दोनों सदनों की संयुक्क्त बैठक के लिए तथा राष्ट्रपति और विशिष्ट अतिथियों-राज्य या शासनाध्यक्ष आदि के अभिभाषण के लिए किया जाता है। कक्ष राष्ट्रीय नेताओं के चित्रों से सज़ा हुआ है। केंद्रीय कक्ष के तीन ओर लोक सभा, राज्य सभा और ग्रंथालय के तीन कक्ष हैं। उनके बीच सुंदर बग़ीचा है जिसमें घनी हरी घास के लान तथा फव्वारे हैं। इन तीनों कक्षों के चारों ओर एक चार मंजिला वृत्ताकार इमारत बनी हुई है। इसमें मंत्रियों, संसदीय समितियों के सभापतियों और पार्टी के कार्यालय हैं। लोक सभा तथा राज्य सभा सचिवालयों के महत्वपूर्ण कार्यालय और संसदीय कार्य मंत्रालय के कार्यालय भी यहीं हैं।
पहली मंजिल पर चार समिति कक्षों का प्रयोग संसदीय समितियों की बैठकों के लिए किया जाता है। इसी मंजिल पर तीन अन्य कक्षों का प्रयोग संवाददाताओं द्वारा किया जाता है। संसद भवन के भूमि-तल पर गलियारे की बाहरी दीवार को अनेक भित्ति-चित्रों से सजाया गया है। जिनमें प्राचीन काल से भारत के इतिहास तथा पड़ोसी देशों के साथ भारत के सांस्कृतिक संबंधों को प्रदर्शित किया गया है।
लोक सभा कक्ष में, आधुनिक ध्वनि व्यवस्था है। दीर्घाओं में छोटे छोटे लाउडस्पीकर लगे हुए हैं। सदस्य माईक्रोफोन के पास आए बिना ही अपनी सीटों से बोल सकते हैं। लोक सभा कक्षा में स्वचालितमत-अभिलेखन उपकरण लगाए गए हैं। जिनके द्वारा सदस्य मतविभाजन होने की स्थिति में शीघ्रता के साथ अपने मत अभिलिखित कर सकते हैं।
राज्य सभा कक्ष लोक सभा कक्ष की भांति ही है। यह आकार में छोटा है। इसमें 250 सदस्यों के बैठने के लिए स्थान हैं।
केंद्रीय कक्ष के दरवाजे के ऊपर हमें पंचतंत्र से संस्कृत का एक पद्यांश देखने को मिलता है :-
“ |
अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम।। अर्थात्: “यह मेरा है तथा वह पराया है, इस तरह की धारणा संकीर्ण मन वालों की होती है। किंतु विशाल हृदय वालों के लिए सारा विश्व ही उनका कुटुंब होता है।” |
” |
स्वागत कार्यालय
स्वागत कार्यालय 1975 में निर्मित एक वृत्ताकार इमारत है। यह आकार में अधिक बड़ी नहीं है। यह बड़ी संख्या में आने वाले मुलाकातियां/दर्शकों के लिए, जो सदस्यों, मंत्रियों आदि से मिलने के लिए या संसद की कार्यवाही को देखने के लिए आते हैं, एक मैत्रीपूर्ण प्रतीक्षा स्थल है। इमारत, पूरी तरह से वातानुकूलित है।
संसदीय सौध
संसदीय सौध की इमारत 9.8 एकड़ भूखंड पर बनी हुई है। इसका फर्शी क्षेत्रफल 35,000 वर्ग मीटर है। इसका निर्माण 1970-75 के दौरान हुआ। आगे तथा पीछे के ब्लाक तीन मंजिला तथा बीच का ब्लाक 6 मंजिला है। नीचे की मंजिल पर जलाशय जिसके ऊपर झूलती हुई सीढियां बनी हुई हैं।
भूमितल एक अत्याधुनिक स्थान है। यहां राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन होते हैं। एक वर्गाकार प्रांगण के चारों ओर एक मुख्य समिति कक्ष तथा चार लघु समिति कक्षों का समूह है। इस प्रांगण के बीच में एक अष्टकोणीय जलाशय है। प्रांगण में ऊपर की ओर पच्चीकारी युक्त जाली का पर्दा है। वहां पौधे लगाकर एक प्राकृतिक दृश्य तैयार किया गया है। इसमें पत्थर की टुकड़ियों तथा छोटे पत्थरों के खंड बनाए गए हैं। पांचों के पांचों समिति कक्षों में संसद भवन में लोक सभा तथा राज्य सभा कक्षों की भांति साथ साथ भाषांतर की व्यवस्था है। प्रत्येक कक्ष के साथ संसदीय समितियों के सभापतियों के कार्यालयों के लिए एक कमरा है।
दर्शकों के लिए भ्रमण की व्यवस्था
अधिवेशन के बीच की अवधियों में पर्यटकों, छात्रों और रूचि रखने वाले अन्य व्यक्तियों को तय समय के दौरान संसद की इमारतें घुमाने की व्यवस्था है। दर्शकों के साथ स्टाफ का एक सदस्य जाता है। जो उनको इमारतों के बारे में बताता है। दर्शक हर आधे घंटे बाद मोटे तौर पर 40-50 व्यक्तियों के सुविधाजनक समूहों में स्वागत कक्ष से भ्रमण के लिए प्रस्थान करते हैं। छात्रों तथा संसदीय संस्थाओं के कार्यकरण के बारे में जानकारी प्राप्त करने में विशेष रूप से रूचि रखने वाले अन्य लोगों के समूहों के लिए विशेष भ्रमण की व्यवस्था भी की जाती है। ऐसी स्थतियों में, संसदीय अध्ययन तथा प्रशिक्षण केंद्र भ्रमण शुरू करने से पहले दर्शकों को संक्षिप्त परिचय देने की व्यवस्था करता है। पिछले दस वर्षों के दौरान हर वर्ष संसद भवन की इमारतों को देखने के लिए आने वाले दर्शकों की कुल संख्या 3,000 से लगभग 90,000 के बीच रही है।
संसद में सेवा-सुविधाएं
संसद में दोनों सदनों से संबंधित सारे काम के समुचित संचालन के लिए, लोक सभा सचिवालय और राज्यसभा सचिवालय बनाए गए हैं। दोनों सचिवालयों में सबसे शीर्ष पर एक महासचिव होता है। प्रत्येक सचिवालय अपने पीठासीन अधिकारियों और सभी सदस्यों को आवश्यक सलाह, सहायता और सुविधाएं प्रदान करता है। सचिवालय के अलग अलग भाग-अनुभाग हैं। जैसे विधायी कार्य, प्रश्नकाल, समिति प्रशासन, ग्रंथालय और सूचना सेवा, रिपोर्टिंग, भाषांतर और अनुवाद मुद्रण और प्रकाशन, सुरक्षा और सफाई।
संसद ग्रंथालय तथा सूचना-सेवा
भारतीय संसद के पास बहुत ही कुशल सूचना सेवा केंद्र है। साथ ही एक उत्तम संसदीय पुस्तकालय भी है। इसे संसद ग्रंथालय तथा संदर्भ, अनुसंधान, प्रलेखन और सूचना सेवा कहा जाता है। इसका पहला उद्देश्य संसद सदस्यों को देश विदेश के दैनिक घटनाक्रम की पूरी जानकारी उपलब्ध कराना है।
इस समय इस पुस्तकालय में 15 लाख से अधिक पुस्तकें हैं। अंग्रेजी तथा भारतीय भाषाओं के लगभग 300 भारतीय तथा विदेशी समाचारपत्र यहां आते हैं। 1100 के करीब पत्र-पत्रिकाओं, कला पुस्तकों आदि का विशाल संग्रह है। सबसे पुरानी छपी हुई पुस्तक 1871 की है। किंतु, पुस्तकालय की सर्वाधिक मूंल्यवान धरोहर संविधान सभा द्वारा यथा स्वीकृत तथा इसके सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित भारत के संविधान की हिंदी तथा अंग्रेजी में मूल सुलिखित प्रति है।
समय समय पर संसद ग्रंथालय रूचि के विषयों पर पुस्तक प्रदर्शनियों का आयोजन करता है। अनुसंधान तथा सूचना प्रभाग संसद सदस्यों की सूचना संबंधी अपेक्षाओं का पहले से अनुमान लगा लेता है। िफर उचित समय पर वस्तुनिष्ठ सूचना सामग्री जैसे विवरणिकांएं सूचना बुलेटिन, पृष्ठभूमि टिप्पण, तथ्य-पत्र आदि जारी करता है। इससे सदस्यों को अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रों में वर्तमान घटनाक्रम की जानकारी मिलतीरहती है।
प्रेस तथा लोक संपर्क प्रभाग लोक सभा सचिवालय के प्रेस तथा लोक संपर्क से संबंधित सारे कार्य की देखभाल करता है। जिसमें, मुख्य रूप से, प्रेस, सरकारी प्रचार संगठनों और जन प्रचार माध्यमों (मीडिया) के साथ निरंतर संपर्क बनाए रखना सम्मिलित होता है।
1987 में कंप्यूटर केंद्र की स्थापना की गई। संसदीय ग्रंथालय सूचना प्रणाली नेशनल इन्फार्मेशन सेंटर नेटवर्क से जुड़ी हुई है। इस प्रणाली द्वारा समूचे देश में जिला सूचना केंद्रों के साथ सूचनाओं का आदान प्रदान किया जा सकता है।
प्रलेखन सेवा का मुख्य कार्य पुस्तकालय में उपलब्ध पुस्तकों, रिपोर्टों, पत्र-पत्रिकाओं, समाचारपत्रों की कतरनों और प्रलेखों को ठीक स्थान पर रखना, उनका संग्रह करना है। इनका विषयगत वर्गीकरण अथवा सूचीकरण किया जाता है। फिर संसद सदस्यों को उनके दिन प्रतिदिन के संसदीय कार्य में प्रयोग के लिए संबंधित सामग्री का सारांश उपलब्ध कराया जाता है।