प्राकृत में लिखे नाटकों को सट्टक कहा गया है। प्राकृत भाषा में पाँच सट्टकों की प्रसिद्धि है:

  1. विलासवती,
  2. चंदलेहा,
  3. आनंदसुंदरी,
  4. सिंगारमंजरी और
  5. कर्पूरमंजरी

इनमें विलासवती के अतिरिक्त सभी उपलब्ध हैं। इन सबमें कर्पूरमंजरी सर्वोत्कृष्ट और प्रौढ़ रचना है।

भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में 'सट्टक' की परिभाषा नहीं की है। नाट्यशास्त्र के टीकाकार अभिनवगुप्त ने सबसे पहले सट्टक की परिभाषा की और इसे 'नाटिका' के निकट रखा। हेमचन्द्राचार्य ने अपने काव्यानुशासन में लिखा है कि सट्टक एकभाषीय होता है। प्रायः सट्टकों का नाम उनकी नायिकाओं के नाम पर दिया गया है।