गाड़ियों के चलने के उद्देश्य से बनायी गयी या पैदल चलने के बनी किसी मार्ग के सतह पर बिछाए सतह को कुट्टिम (pavement) कहते हैं। पूर्वकाल में बजरी (ग्रेवेल), फर्शी पत्थर (cobblestone) और ग्रेनाइट सेटों का बहुधा प्रयोग होता था। किन्तु अब इनकी जगह अधिकांशतः ऐस्फ़ाल्ट और कांक्रीट ने ले लिया है।

पत्थर की छोटी फर्शियों से बनी सड़क की सतह
एक सड़क जिसकी ऊपरी स्तह ऐस्फाल्ट की बनी है।

किसी सड़क का काम केवल यही नहीं है कि वह गाड़ियाँ चलाने के लिए पर्याप्त पुष्ट हो, बल्कि वह गाड़ियों के भार और मौसम के प्रभाव से होनेवाली टूट फूट भी सहे। स्थानीय मिट्टी में ये सब उद्देश्य भली भाँति पूरा करने की सामर्थ्य संभवतः न हो, अत: संरचना की दृष्टि से उपयुक्त सतह की व्यवस्था करने का बड़ा महत्व है। संरचनात्मक दृष्टिकोण से उपयुक्त होने के अतिरिक्त सड़क की सतह में सर्वाधिक अपेक्षित गुण ये हैं :

अशोषकता, उत्तम जल निकास और चलने के लिए चिकना पृष्ठ, जो इतना चिकना न हो कि गाड़ियों के पहिए फिसलने की नौबत आए।

स्थिरीकृत मिट्टीवाली निकृष्ट कोटि से लेकर, सीमेंट ओर ऐस्फाल्टी कंक्रीट की उत्कृष्ट कोटि तक की विभिन्न प्रकार की सतहें होती हैं। इनके बीच बजरी की, पानीकुटौ मैकेडम और हलके बिटूमेनी आवरणवाली सड़कें होती हैं। किसी सड़क के लिए किस प्रकार की सतह उपयुक्त होगी, इसका चुनाव करने में यातायात की प्रगाढ़ता एवं प्रकार, सड़क का महत्व और धन की उपलब्धता सरीखे घटक ध्यान में रखने चाहिए। आरंभ में सोच विचारकर व्यय किया हुआ धन बाद में घटी हुई अनुरक्षण लागत के रूप में भली भाँति वसूल हो सकता है। निवारक उपाय उपचार से उत्तम होता है। यह सड़क के लिए उपयुक्त सतह चुनने के क्षेत्र में भी भली भाँति लागू होता है।

स्थिरीकृत मिट्टी, स्थानीय मिट्टी में बाहर से लाई हुई किसी दूसरी श्रेणी की मिट्टी, अथवा चूना, सीमेंट मिलाकर किसी रसायन से उसका उपचार करके तैयार की जाती है। इसके फलस्वरूप एक स्थिर मिश्रण प्राप्त होता है। इसका उद्देश्य मिट्टी का सामर्थ्य संबंधी गुण सुधारना है। किंतु इस प्रकार प्राप्त सामर्थ्य बहुधा भारी बोझ वहन करने के लिए अपर्याप्त होती है। इसलिए स्थिरीकृत मिट्टी की सिफारिश केवल गाँवों की, अथवा हलके यातायात वाली सड़कों के लिए ही की जाती है।

बजरी डालकर कच्ची सड़क सुधारना और उसे औसत दर्जे के यातायात के योग्य बनाना, कम खर्च का एक तरीका है। इसमें बजरी या मूरम का प्रयोग होता है, जो सड़क की सतह पर तीन से छह इंच मोटी बिछा दी जाती है। ऐसा प्रति वर्ष, अथवा कुछ अधिक कालांतर से किया जाता है। इस प्रकार करते करते काफी स्थिर सतह बन जाती है।

पानी कुटी मैकेडम भारत में सड़कों की परंपरागत सतह रही है। इसमें तोड़े हुए पत्थर या कंकड़ की भली भाँति जमी हुई दो या अधिक तहें होती हैं। निचली तह से लगभग छह छह इंच के पत्थर, या कंकड, या श्इंच मोटी ईटें सावधानीपूर्वक हाथ से जमा दी जाती हैं। ऊपरी तह श्इंच से 2 इंच माप के पत्थर या कंकड़ की गिट्टी की होती है। रिक्त स्थान मूरम, बजरी, या अन्य ऐसे ही पदार्थ से भर दिए जाते है; तदनंतर पहले सूखी और फिर पानी डालकर कुटाई की जाती है। हलका और मंदगामी यातायात हो तो पानीकुटी मैकेडम की सतह अच्छा काम देती है, किंतु हवा भरे पहियों वाली तेज गाड़ियों के लिए यह बहुत अच्छी नहीं होती।

जैसे जैसे सड़कों पर तेज चाल का यातायात बढ़ता गया, चलने के लिए धूलरहित, चिकनी सतह वाली सड़कों की आवश्यकता अधिकाधिक अनुभव हुई। बिटूमेनी सतहें इस समस्या का एक हल हैं। यातायात के अनुरूप ये विभिन्न प्रकार की होती हैं। सब में साधारण इकहरे या दोहरे आवरणवाली सतह होती है। इकहरे आवरणवाली सतह, झाड़कर भली भाँति साफ की हुई सूखी पानीकुटी मैकेडम पर बिटुमेन छिड़ककर, उसपर पत्थर का जीरा फैलाकर, रोलर से कूटकर तैयार की जाती है। इस प्रकार बिटुमेन ऊपर की ओर चढ़कर जीरे को भली भाँति बाँध देता है। पहले की काली सतह पर बाद के आवरण भी इसी प्रकार चढ़ाए जाते हैं।

बिटुमेनी गच, सड़क पर कुटी हुई गिट्टी के ऊपर पिघला हुआ बिटुमेन फैलाकर तैयार की जाती है। इस प्रकार बिटुमेन गिट्टी के अंतरालों में घुस जाता है।

यद्यपि ऐसी सतहें औसत से लेकर भारी यातायात तक वहन कर सकती हैं, फिर भी इनसे एक अंतर्निहित दोष यह होता है कि इनमें बिटुमेन का फैलाव एक सा नहीं होता। यदि सड़क पर फैलाने और कूटने के पहले ही पत्थर का जीरा और बिटुमेन परस्पर मिला लिए जाएँ, तो यह दोष दूर हो सकता है। इस प्रकार पूर्वमिश्रण से प्रयोग के लिए अच्छी सतह प्राप्त होती है। भारत में सड़कों के लंबे लंबे भाग इसी प्रकार तैयार हुए हैं।

यदि पत्थर का जीरा और विटुमेन के साथ बालू और अत्यंत बारीक भरत भी उचित अनुपात में मिला ली जाती है, तो मिश्रण सघन मिश्रण या 'डामरी' कंक्रीट कहलाता है। डामरी कंक्रीट से उत्कृष्टतम कोटि की बिटुमेनी सतह तैयार होती है, जो भारी यातायात में भी 20-25 वर्ष तक कोई कष्ट नहीं देती। यह सतह महँगी होती है, अत: इसका औचित्य भारी यातायातवाली सड़कों में या बड़े शहरों में ही हो सकता है।

ऊपर वर्णित सभी प्रकार की सतहें नम्य फर्शो की कोटि में आती हैं। दूसरी कोटि अनम्य फर्शों की होती है, जिसके अंतर्गत सीमेंट कंक्रीट की सड़कें आती हैं। सीमेंट कंक्रीट से, मुख्यतया उसकी कठोरता ओर टिकाऊपन के कारण, सड़क की बहुत अच्छी सतह प्राप्त होती है। अपनी उच्च प्रत्यास्थता के कारण सीमेंट कंक्रीट अपने ऊपर आनेवाला भार अपेक्षाकृत बड़े आधारक्षेत्र पर वितरित कर सकती हैं, फलत: इसके लिए विशेष मजबूत आधार तैयार करना आवश्यक नहीं होता। भली भाँति आकल्पित और निर्मित सीमेंट कंक्रीट की सतह भारी यातायात वहन करते हुए भी 20-25 वर्ष तक टिक सकती है।

इन्हें भी देखें

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