सडाको ससाकी
यह लेख अथवा अनुभाग अधूरा है तथा इसे विस्तार अथवा साफ-सफाई की आवश्यकता है।
कृपया लेख/अनुभाग को पूर्ण करने में सहायता करें या विषय की चर्चा वार्ता पृष्ठ पर करें । |
सन् 1945 में जापान के हिरोशिमा पर अमरीका एक एटम बम गिराया। इसकी वजह से सडाको ससाकि ल्यूकेमिया का शिकार हो गई[1]। उसने काग़ज़ के हज़ार सारस बनाने की कोशिश की क्योंकि जापान में कहते हैं कि अगर आप हज़ार सारस बनाये, आपकी एक ख़्वाहिश सच होगी। उसके पास बहुत काग़ज़ नहीं था, तो जो मिल सकी उस काग़ज़ का इस्तेमाल किया। उसकी दोस्त चिज़ूको हामामोतो भी उसको काग़ज़ लाया। सडाको ने हज़ार सारस बनाये मगर बेहतर नहीं हुई और मरी। वह बस बारह साल की थी।
सडाको ससाकी 佐々木 禎子 | |
---|---|
![]() सडाको ससाकी की याद में हिरोशिमा, जापान में बनायी गई प्रतिमा | |
जन्म |
७ जनवरी १९४३ हिरोशिमा, जापान |
मृत्यु |
अक्टूबर 25, 1955 हिरोशिमा, जापान | (उम्र 12)
मृत्यु का कारण | ल्यूकेमिया |
राष्ट्रीयता | जापानी |
शिक्षा | नोबोरी-को एलिमेंट्री स्कूल |
माता-पिता |
Shigeo ससाकी (पिता) Fujiko ससाकी (माँ) |
एलानॉर कॉर ने सडाको के बारे में एक किताब "सडाको और हज़ार काग़ज़ के सारस" लिखी। इस किताब में सडाको ने बस ६४४ सारस बनाये, फिर मरी। उसके दोस्त दूसरे ३५६ सारस बनाये और उसके साथ सारे हज़ार सारस रखे।
सन्दर्भसंपादित करें
- ↑ "Sadako's 4,675 Days of Life". मूल से 10 सितंबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 सितंबर 2012.