भ्रम सम्बन्धी विचार को ख्याति विचार कहते है।

सतख्यातिवाद रामानुज का भ्रम विचार इस नाम से जाना जाता है इनके अनुसार स्मस्त जगत सत है उसकी स्त्ता वास्त्विक है
उनके अनुसार कोई भी ज्ञान मिथ्या नहीं होता है, ज्ञान तथा ज्ञेय सदैव सत है,
रज्जु सर्प उदाहरण में पंचीकरण सिद्धांत के अनुसार रज्जु में सांप का अशं भी मौजूद है,
किंतु रज्जु में सांप के अंश की तुलना मे अप्ना अंश ही अधिका होत है इसी कारण इस को रस्सी कहा तथा देखा जाता है अतः यदि रज्जु मे सांप की प्रतीति हुई है तो यह भ्रम अपूर्ण पर्ंतु सत्य ज्ञा नहै

  1. रामानुज भ्रम को सत्य ज्ञान कहते है पर्ंतु रज्जु सर्प के अल्प गुणों की समानता के आधार पर रज्जु को सर्प कहना तथा उस्के अनुसार आचरण करना उचित नही है
  2. भ्रम निराकरण प्रक्रिया में कुछ तथ्यॉ \पक्षों का विनाश अवश्य होता है यहाँ आंशिक ज्ञान की समग्र ज्ञान मे परिणिति नही होता है बल्कि मिथ्या ज्ञान का पूर्ण निराकरण होता है जो चीजें यथार्थ ज्ञान में नष्ट होती है उन्हे सत नही माना जा सकता है