सत्ता का विकेन्द्रिकरन
सत्ता का विकेंद्रीकरण
प्यारे देशवासियों सादर नमन । आजादी के सत्तर साल बाद भी हम सही मायने में आजाद नहीं हैं । कहने को हमारे देश में लोकतंत्र है लेकिन वास्तव में वो राजतंत्र ही है ।हमारे पांच वर्षों में जनप्रतिनिधि नहीं राजा चुनते हैं और उनका आचरण भी राजाओं से कम नहीं होता ।कई जनप्रतिनिधियों ने अकूत संपत्ति जमा कर ली है ।अभी तक हम यह तय नहीं कर पाये हैं कि जनप्रतिनिधि
एक स्वयं सेवक हैं अथवा सरकारी नौकर । वे वेतनभत्ते लेते हैं तो सरकारी नौकर हुए ।दूसरी अन्य सरकारी नौकरी से तुलना करने पर बहुत अधिक विरोधाभास दिखाई देता है ।जहां एक ओर सबसे जूनियर पद की भर्ती में भी उच्चतम शिक्षा प्राप्त आवेदन करते हैं जनप्रतिनिधियों के लिए कोई योग्यता निर्धारित नहीं है ।अधिकाधिक राजनेताओं ने इसे व्यापार बना लिया है ।
अब समय आ गया है आम जनता को लोकतंत्र में अपनी ताकत पहचाननी होगी । सत्ता में भागीदारी के लिए संघर्ष करना होगा । सत्ता का तीसरा बराबर हिस्सा ग्राम अथवा वार्ड सरकारों के रूप में हासिल करना होगा । निम्नानुसार
1 इक्कीस सदस्यीय सरकार एक या दो वर्षों के लिए ।
2 देश में वसूल करों का तीसरा हिस्सा मिले ।
3 स्थानीय सरकारी विभाग अब जन सेवा केंद्र ।
4 सरकारी सेवकों को अनिवार्य सेवा निवृत्ति ।
5स्थानीय दरों पर जनसेवकों को नियुक्ति ।
6 सभी सदस्यों को रोस्टर अनुसार अध्यक्षता ।
7 सर्वसम्मति से विकास कार्य पर व्यय ।
8 कोई ऊपरी ऑडिट आदि न थोपा जावे ।
9 दस वर्षों की जन सेवा पूरी करने वाले ही केंद्र एवं राज्यों की नौकरी के लिए आवेदन कर सकें ।
इसे मेरा निवेदन समझें और आप अपनी राय से अवगत कराने का कष्ट करें । मुकेश चौबे, राजनांदगाँव, छत्तीसगढ़ ़्््््