सत्य सूक्त यह सूक्त अतिप्राचीन व वेदों का पूरा सार माना जाता है। यह गुप्त सूक्त है, इस सूक्त में निराकर व साकार दोनो ईश्वर का वर्णन है। इसमें ५ अध्याय है। १०० श्लोकों के साथ यह पूर्ण होता है। इस सूक्त का अधिक वर्णन बृहदारण्यक उपनिषद में २ बार और स्कंद पुराण में ४ बार है। इस सूक्त के विलुप्त होना का कारण उच्च ब्राह्मण जो वेदों के ज्ञाता थे किसी कारण से अधिक आर्यों में निराकर ईश्वर के प्रति अधिक विश्वास हो गया और क्योंकि यह वेदों का रूप है इसी कारण से उन्होंने इसका नाश कर दिया। हिंदू फाउंडेशन ऑफ हेल्प ने अनेक पुरातीन ग्रंथो व शंकराचार्य,वेद ज्ञाता, इतिहासकार द्वारा प्राप्त किया। जिस - जिस स्थान पर यह सूक्त का नाम आता है तब भास्यकार द्वारा अर्थ परमात्मा लिया जाता है, इसलिए अधिक लोग इसके बारे में नही जानते

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विवरण संपादित करें

प्रथम अध्याय - ईश्वर स्वरूपता इसमें गुरु और शिष्य संवाद है। इसमें २० श्लोक है। २ शिष्य के १८ गुरु के इसमें प्रथम ७ श्लोकों में गुरु ईश्वर को साकार प्रकट करता है। द्वितीय ७ श्लोकों में निराकर स्पष्ट कर अनुभव करता है।

स ईश्वरः चतुर्भुजरूपेण विश्वं सृजति पोषयति च दुष्टान् द्विभुजीरूपेण नाशयति।

अर्थ : वह ईश्वर चतुर्भुज के रूप में ब्रह्मांड का निर्माण और पोषण करता है और दो भुजाओं के रूप में दुष्टों का नाश करता है।

सत्य सूक्त अ १ श्लाे ६

सचिदानंद नमामि निराकारम ब्रह्माम् ज्ञानरूपम्

सत्य सूक्त अ १ श्लो १५

अर्थ : मैं निराकार ब्रह्म, ज्ञान के रूप, चेतना के आनंद को नमन करता हूं

वेदेन पूजितं यत् ब्रह्म निराकारव साकार शरीररूपेण युक्तम्, प्रकाशः तस्य निराकारः रूपः सूर्यः तस्य शरीररूपः, उभयम् अपि मानवजीवनाय आवश्यकौ, उभयप्रकारौ वेदैः ऋषिभिः च पूज्यते।

अर्थ : वेद पूजा करते हैं कि ब्रह्म एक निराकार और सन्निहित शरीर के रूप में है, प्रकाश उनका निराकार रूप है और सूर्य उनका शरीर रूप है, दोनों मानव जीवन के लिए आवश्यक हैं, दोनों प्रकार की पूजा वेदों और ऋषियों द्वारा की जाती है।

सत्य सूक्त अ १ श्लों २०

द्वितीय अध्याय : विदुषी संवाद, परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग

इसमें एक महर्षि अपनी अर्धांगिनी(पत्नी) जो वेदों का नितिदीन पठन किया करती थी वह ऋषि से परमात्मा की प्राप्ति के मार्गो पर प्रश्न करती है गुरु कहते हे, उसकी प्राप्ति के अनेक मार्ग है परंतु दो सर्वोच्च है। अमूर्त व मूर्त मार्ग इनमे अमूर्त वह मार्ग है जो ऋषियों व वेदों ज्ञाताओं द्वारा अधिक प्रिय है। द्वितीय मार्ग गृहस्थ आश्रम,भक्त,ईश्वर प्रेमी व अनेक ऋषियों द्वारा पूज्य है और वह इसका अनुसरण करते है। इसमें भी २० श्लोक है ५ विदुषी के १२ ऋषि के ३ अज्ञात है।

अमूर्तमार्गः कठिनः किन्तु सत्यप्राप्तेः मार्गः एव, अस्मिन् ऋषिः ईश्वरम् अनुभवति तस्मिन् च विलीयते।

अर्थ : अमूर्त मार्ग कठिन है पर सत्य की प्राप्ति का मार्ग है, इसमें साधक ईश्वर को अनुभव करता है और उसी में विलीन हो जाता है।

सत्य सूक्त अ २ श्लों १४

मूर्तमार्गः प्रेमविरहस्य, त्वमपि समानं मार्गं अनुसृत्य हरिहरं भजसे, दर्शनकामना च अस्वरूपे विलीनतां प्राप्तुम् इच्छामि।

अर्थ : मूर्त मार्ग प्रेम और वियोग का है, तुम भी उसी मार्ग का अनुसरण करो और हरिहर की पूजा करो, और देखने की इच्छा करो और मैं निराकार में विलीन होना चाहता हूं। (इस श्लोक में ऋषि निराकार तथा विदुषी साकार की उपासना करती है और दोनो सुखी और चिंतित है। ऋषि विलीन का विदुषी दर्शन की, ऋषि विदुषी व उसके मार्ग का सदेव सम्मान करते है क्योंकि दोनो सत्य है) सत्य सूक्त अ २ श्लो ९

तृतीय अध्याय : वर्ण व्यवस्था का अनुगाम

इस अध्याय में एक परिवार में चारो वर्ण का ज्ञान है। पिता ब्राह्मण है, पुत्र वैश्य है, मां शुद्र है और बड़ा पुत्र क्षत्रिय है। यह कथा ब्राह्मण द्वारा अयोध्या के राजा दशरथ जी को सुनाई जा रही है।इसमें १ श्लोक मंथला का २ श्लोक दशरथ जी के बाकी सब ब्राह्मण के है।

मंथला ने कहा : इदं मूर्खता, शूद्रः निम्नवर्गस्य, मुखं पश्यन् अपि महत् पापम्। चत्वारः अपि पात्राः कदापि एकस्मिन् कुले न भवितुम् अर्हन्ति, एतत् असत्यम् एव।

अर्थ : यह मूर्खता है, शूद्र निम्न वर्ण का होता है, और उसका मुख देखना भी महापाप है। चारों वर्ण एक ही परिवार में कभी नहीं हो सकते, यह झूठ है।

सत्य सूक्त अ ३ श्लोक ३

पिता वेदान् पठित्वा शृणोति, अतः सः ब्राह्मणः, माता सर्वं अधम-उच्चं कार्यं गृहे करोति, अतः सः शूद्रः, ज्येष्ठः पुत्रः सेनापतिः, अतः सः क्षत्रियः, कनिष्ठः पुत्रः पटव्यापारी, अतः वैश्यः। वेदेषु च माता सर्वोच्चः स च शूद्रः, द्वितीयः पिता ब्राह्मणः, तृतीयः ज्येष्ठः पुत्रः क्षत्रियः, चतुर्थः पदः वैश्यः, चतुर्थः अपि समानरूपेण आदरणीयाः वेदाः ।

अर्थ : पिता वेदों को पढ़ता और सुनता है, इसलिए वह एक ब्राह्मण है, माँ घर के सभी नीच और उच्च काम करती है, इसलिए वह एक शूद्र है, सबसे बड़ा पुत्र सेना का सेनापति है, इसलिए वह क्षत्रिय है, सबसे छोटा बेटा कपड़ा व्यापारी है, इसलिए वैश्य है। और वेदों में माता सर्वोच्च है और वह शूद्र है, दूसरा पिता ब्राह्मण है, तीसरा सबसे बड़ा पुत्र क्षत्रिय है, चौथा पद वैश्य है, और चौथा समान रूप से पूजनीय वेद है।

सत्य सूक्त अ ३ श्लोक २०