जय वाल्मीकि

"बाबू चुन्नीलाल थापर वाल्मीकि

'बाबू चुन्नी लाल थापर' जिन्होंने आजीवन 'वाल्मीकि कौम' ही नही बल्कि समस्त अछूतों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया | लेकिन आज अछूतों के महापुरुषों के बीच से गायब हैं। बाबू चुन्नी लाल थापर जी का जन्म बस्ती शेख जिला जालंधर में हुआ था। उनके पिता का नाम गनेशा राम तथा माता का नाम नानकी था ।

आर. सी. संगर जी ने 'बाबू बालमुकंद सहोता जी' एवं चुन्नी लाल थापर जी को संयुक्त पंजाब में डा.अम्बेडकर के अग्रदूत नेताओं के रूप में स्वीकार किया हैै। चुन्नी लाल थापर अपने समय में वाल्मीकि कौम में राजनैतिक चेतना भरने वाली एक अहम शख्सीयत के रुप में उभरे थे, जिसके चलते चुन्नी लाल थापर जी को वाल्मीकि सभा का प्रधान बनाया गया | 1926 में वे वाल्मीकि सभा के कार्यकर्ताओं को लेकर अछुतोउद्धार के लिए 'अादधर्म मंडल' में शामिल हो गए जहां उन्हें आदधर्म मंडल का उपाध्यक्ष बनाया गया । बाबू चुन्नी लाल थापर अच्छे कवि तथा शायर थे जिस कारण वे इतने प्रभावशाली ढंग से भाषण देते थे कि वे 'आदधर्म मंडल' के उपाध्यक्ष होने पर भी सबसे प्रभावशाली नेता बन गए थे। दिन प्रति-दिन बढती उनकी लोक प्रियता के कारण मंडल में टकराव की स्थिति पैदा हो गई जिस कारण वाल्मीकि कौम के जितने भी लोग चुन्नी लाल थापर जी के साथ 'आदधर्म मंडल' में शामिल हुए थे, सभी आदधर्म मंडल से अलग हो गए । 1930 में बस्ती शेख में कान्फ्रेंस हुई जिसमें वाल्मीकि नेता चौधरी बंसी लाल(लाहोर वाले) भी आए, कान्फ्रेंस में 'वाल्मीकि आदधर्म मंडल' बनाया गया जिसका प्रधान चौधरी बंसी लाल जी को तथा चुन्नी लाल थापर जी को जनरल सैक्रेटरी बनाया गया | आदधर्म आंदोलन के दौरान विरोधीयों द्वारा उनके दो साथी शहीद कर दिए गए और बाबू बालमुकंद सहोता व चुन्नी लाल थापर जी को ज़िंदा जलाकर मारने की कोशिश की गई । गोलमेज़ कान्फ्रेंस के दौरान जब डा.अंबेडकर व गांधी के बीच अछूत समुदाय के नेतृत्व को लेकर विवाद हुआ था तब 'वाल्मीकि आदधर्म' मंडल ने तार व खून से हस्ताक्षर करके पत्र भेजकर डा.अंबेडकर को अपना नेता स्वीकार करके उनका समर्थन किया था । 1932 में जब गांधी द्वारा अछूतों के अधिकारों के विरोध में मरन व्रत रखा गया तब शिमला की 'वाल्मीकि सभा' ने रायल होटल शिमला में अछूतों की एक कान्फ्रेंस बुलाई, जिसमें फैसला लिया गया कि गांधी के मरन व्रत के मुकाबले पंजाब के किसी बड़े अछूत नेता की तरफ से भी मरन व्रत रखा जाए | फैसला लिया गया कि गांधी के विरोध में चुन्नी लाल थापर मरन व्रत रखेंगे । इस तरह चुन्नी लाल थापर जी द्वारा गांधी के विरोध में शिमला में मरन व्रत रखा गया जोकि डा.अम्बेडकर तथा गांधी के बीच समझौते के बाद खत्म हुआ । चुन्नी लाल थापर जी डा.अम्बेडकर के शैड्युल्ड कास्ट फैडरेशन के सदस्य भी रहे जिसका जिक्र एडवोकेट भगवानदास ने अपनी किताब 'बाबा साहब और भंगी जातियां' में किया है।

वाल्मीकि कौम सहित समस्त अछूतों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते हुए चुन्नी लाल थापर जी ने आज के दिन 17 फरवरी 1964 को अपनी सांसारिक यात्रा संपूर्ण की थी । फकीर चंद नाहर जी हर साल बाबू चुन्नी लाल थापर जी की बरसी मनाया करते थे | एसे ही महापुरुषों के निरंतर संघर्षों-बलिदानों के कारण ही करोड़ों अछूत आज पहले से बेहतर हालातों तक पहुंचे हैं।


मनिन्दर टांक

आदि साहित्य संघ (वाल्मीकि आंदोलन)