प्रेममूर्ति प्रेमभूषण जी


भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है। भारत जननी समय-समय पर अपनी गोद में अनेक लालों को जन्म दिया करती है। इसी माँ ने भारत वर्ष के उत्तर-प्रदेश की पावन माटी में तीनों लोकों और चौदहों भुवनों के तीर्थों के राजा महर्षि भरद्वाज जी की तपस्थली तीर्थराज प्रयाग में सन् 1969 की 21 जनवरी दिन मंगलवार को पूजनीय माता दुर्गावती देवी जी के अंक से श्रीरामचरितमानस को पूज्यपाद् तुलसीदास जी महाराज की भावान्जली में प्रस्तुत करने हेतु प्रेममूर्ति प्रेमभूषण जी महाराज को जन्म दिया। नियति क्या करानी चाहती है उसे ही पता है और वैसी ही रचना बनती चली जाती है। पूज्य श्री का बचपन ननिहाल में नितान्त अभावों में बीता। प्रारंभिक शिक्षा ननिहाल में पूर्ण कर महाराज श्री स्नातक की पढ़ाई करने कानपुर आ गये। स्नातक के बाद परास्नातक की पढ़ाई भी कानपुर से ही पूर्ण की। स्वभाव से परिपूर्ण पूज्यश्री 1989 में श्रीअवध आ गये। यहीं से अनेक संत महापुरुषों के संपर्क में आये और सत्संगति मिलने पर धुन के पक्के पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज के रूप में सनातन जगत को एक रामकथाकार की प्राप्ति हई।