सदस्य:डॉ इन्दु शेखर उपाध्याय/प्रयोगपृष्ठ

‘‘ माघ मकर गति रवि जब होई ’

का प्राकृतिक एवं पर्यावरणीय विवेचन

डॉ0 इन्दुशेखर उपाध्याय

रीडर एवं अध्यक्ष, भूगोल विभाग

सन्त तुलसीदास पी0जी0 कालेज

कादीपुर, सुलतानपुर

भारतीय संस्कृति प्रकृति प्रेम की उदात्त अवधारणा की प्रतिपालिका है। राष्ट्र का समुचित

विकास तभी हो सकता है, जब राष्ट्र के हित में प्राकृतिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक गठन सबलता

से अग्रसर हो। समाज को संगठित करने में सांस्कृतिक एकता के मधु के सम्प्रसारण में कुंभ पर्व

का बहुमूल्य योगदान है। उत्तर दक्षिण पूरब एवं पश्चिम के सुदूर अंचलों से आये हुए नाना भाषा

भाषी अनेक वर्णी एवं अनेक मनानुयायी कुम्भ पव र् पर एक रूप हो जाते हं,ै उनका सांस्कृतिक

चिन्तन समान हा जाता है जिससे राष्ट्र मे ं प्रकृति के सम्बल से सास्ं कृतिक एकता परिपुष्ट होती है।

कुम्भ पर्व धम र् एव ं पक्रृति में सामजं स्य स्थापित करने, विभिन्न संस्कृतियो ं का समागम कराने,

पारस्परिक एकता एवं वैचारिक आदान-प्रदान कराने का महत्वपूर्ण संगम है।

भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता प्रकृति का एक दर्पण है, जिसमें धर्म-कर्म, राजनीति,

व्यवसाय, रहन-सहन, विचार विवाद के साथ-साथ शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक बल सभी

प्राकृतिक शक्ति से ही नियन्त्रित होते हैं। अर्थात् संस्कृति का बहाव जीवन से और जीवन का

बहाव प्रकृति से है। प्रकृति सौर्यिक शक्ति का दूसरा नाम और ताप सौर्यिक शक्ति का पर्याय है।

पृथ्वी पर ताप का श्रोत सूर्य है। सूर्य ही सौर परिवार का मुखिया है, जिसके धरातल का तापमान

लगभग 1030000 फारेनहाइट तथा केन्द्रीय भाग का तापमान 50,000,0000 फारेनहाइट माना जाता

है। सूर्य का आयतन पृथ्वीसे 10 लाख गुना एवं व्यास 100 गुना है। सूर्य से पृथ्वी 93000000 मील

दूर स्थित है। सूर्य का ताप प्रति सेकण्ड 186000 मील की गति से चारों तरफ फैलता है। परन्तु

सम्पूर्ण सूर्य ताप पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाता है। दूरी की अधिकता के कारण अधिकांश ताप

वायुमण्डल में पहंचु ने के पहले नष्ट हो जाता है। सौर्यिक शक्ति का केवल 1/2 अरबवा ं अंश ही

पृथ्वी तक पहंचु पाता है। सम्पूर्ण जैव जगत इसी अल्पतम् सौर्यिक शक्ति का परिणाम है। विद्वानों

की मान्यता है कि अगर सम्पूर्ण सूर्य ताप पृथ्वी पर पहुंच जाय तो सम्पूर्ण पृथ्वी मात्र 8 मिनट मे ं ही

गैसीय अवस्था में परिवर्तित हो जायेगी। परन्तु उत्पत्ति से ही पृथ्वी 66)0 झुकी सूर्य की परिक्रमा

कर रही है, जिसे इसकी वार्षिक गति कहते हैं। इसी गति के कारण ही ऋतु परिवर्तन होता है।

सम्पूर्ण भ-ू मण्डल का केवल भारत खण्ड ऐसा देश है जहां छः ऋतुओ ं का उपहार प्रकृति

ने प्रदान किया है। 16 मार्च से मध्य जून तक ग्रीष्म ऋतु, मध्य जून से 15 सितम्बर तक वर्षा

ऋतु, 16 सितम्बर से 15 नवम्बर तक हेमन्त ऋतु, 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक शरद् ऋतु 16

दिसम्बर से 15 फरवरी तक शीत ऋतु और 16 फरवरी से 15 मार्च तक बसन्त ऋतु रहती है।

प्रकृति के इसी भू-मण्डलीय रहस्य को समझने के लिए सम्पूर्ण भू-मण्डल को 3600 देशान्तर तथा

1800 अक्षाश्ांं में विभक्त किया गया है। 00 अक्षांश या भूमध्य रेखा अर्थात् विषुवत रेखा के माध्यम

से भूमण्डल को उत्तरी एवं दक्षिणी दो गोलार्धों में विभक्त किया है। सूर्य वर्ष में लगभग 187 दिन

उत्तरी गोलार्द्ध (उत्तरायण) एवं 178 दिन दक्षिणी गोलार्द्ध (दक्षिणायन) में रहती है। अर्थात् सम्पूर्ण

वर्ष भर सूर्य की किरणे ं किसी स्थान पर समान रूप से नहीं पड़ती। किसी स्थान की महत्ता

उसका प्रभाव वहां के जलवायु एवं ताप संचरण के द्वारा ही निर्धारित किया जाता है। गोस्वामी जी

युग दृष्टा के साथ-साथ बहुत बड़े विज्ञानी भी थे। जलवायु एव ं सौर्य प्रभाव का ज्ञान गास्े वामी जी

को बहुत निकट से था। मानस की सार्वभौतिकता एवं वैज्ञानिकता को धरती का प्रत्येक कोना बड़ी

सहजता एवं गभ्ांरता से स्वीकार करता है। रामचरित मानस सम्पूर्ण जीवन दर्शन है चिं क जीवन

का प्रवाह एवं अस्तित्व प्रकृति से है, इसलिए गोस्वामी जी ने प्रकृति के स्थानिक महत्व पर

वैज्ञानिक एवं भौगोलिक दृष्टि से प्रकाश डाला है। मानस की एक चौपाई के अनेक अर्थ हैं जो अर्थ

या भाव समझने में सुख मिलता है वहीं अर्थ जनमानस ग्रहण कर लेता है। इसलिए प्रारम्भ में ही

लिखा है-

स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाता ............।

मानस के अनन्त एवं असीम गूढ़ तत्व को रेखांकित करना सामान्य बुद्धि के परे हैं क्योंकि-

निगम नेति शिव पार न पावहिं ...................।

फिर भी गोस्वामी के भौगोलिक एवं खगोलीय चिन्तन पर सूक्ष्म प्रकाश डालने का प्रयास किया जा

रहा है। मानस के बालकाण्ड में तीरथराज प्रयाग की महिमा का वर्णन करते हुए लिखा है कि-

भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा, तिन्हहिं राम पद अति अनुरागा।

तहां होई मुनि रिषिय समाजा जाहि जे मज्जन तीरथराजा।।

माघ मकर गति रवि जब होई, तीरथ पति आवहिं सब कोई।।

माघ माह के ‘मकर गति‘ रवि पर गोस्वामी जी ने विशेष बल दिया है। इससमय प्रयाग

परिक्षेत्र का महत्व अतुलनीय हो जाता है। भगवान राम ने स्वयं इसके महत्व की महिमा का गान

करते हुए कहा है कि -

‘चारि पदारथ भरांभंडारू, पुन्य प्रदेश देश अति चारू।

चंवर जमुन अरू गंग तिरंगा, देखिहों ह दुख दरिदभंगा।।

प्रयाग के दर्शन मात्र से ही सम्पूर्ण दरिद्र दूर हो जाता है।

अस तीरथ पति देख सुहावा, सुख सागर रघुपति सुखपावा।।

और अन्त मे ं मर्यादा परू षोत्तम का यह कहना कि-

‘‘को कहि सकई प्रयाग प्रभाऊ, कलुष पुंज कुजर भृंगराऊ।।

प्रयाग क्षेत्र के स्थानिक महत्व को पूर्णता प्रदान कर देता है। तीरथराज प्रयाग में माघ मास

के प्रवास का शास्त्रीय एवं आध्यात्मिक महत्व का वर्णन अनेक धर्म ग्रन्थों मे ं मिलता है। लेकिन

इसका भौगोलिक पक्ष इसके महत्व को श्री सम्पन्न बनाता है। 1800 अक्षाशां में विभाजित पृथ्वी को

भूगोल वेत्ताओं ने तीन ताप कटिबन्धो में बांटा है जिसके विभाजन में 23)0. अक्षांश एवं 66)0. अक्षांश

रेखा सर्वाधिक महत्व रखती है। गास्े वामी जी वस्तुतः एक अच्छे भगूलविद् भी थे। उन्हे ं मकर राशि

में सूर्य के प्रभाव का जलवायविक ज्ञान था। 23)0. उत्तरी अक्षांश को कर्क देखा और 23

0 दक्षिणी

अक्षांश को मकर रेखा कहते हैं। पृथ्वी अपनी धुरी पर 23)0. झुकी हुई दैनिक गति करती है और

66)0. कोणीय झुकाव के परिक्रमा पथ पर वर्ष भर मे ं सूर्य की एक परिक्रमा करती है जिसे पृथ्वी की

वार्षिक गति कहते हैं जिसके कारण ही 22 दिसम्बर का पृथ्ी सूर्य के सबसे निकट रहती है और

मकर रेखा पर उसकी किरणें लम्बत चमकती हैं। मकर रेखा से 70 से 100 उत्तरी और दक्षिणी

भाग को मकर परिमण्डल या मकर वृत्त के नाम से जाना जाता है। इस परिमण्डल में सूर्य का

प्रवेश एवं निवास 16 दिसम्बर से प्रारम्भ होकर 14 जनवरी तक माना जाता है। इस प्रकार सूर्य

लगभग 1 माह वृत्त में रहता है। मकर वृत्त में सूर्य के निवास को ही गोस्वामी ने संभवतः ‘‘भरी

मकर नहाए’’ करके वर्णित किया है। अर्थात् जब तक सूर्य इस मकर वृत्त मे ं लम्बत चमकता है।

तब तक उत्तरी गालेर्द्ध में प्राप्त होने वाली सूर्य की किरणो ं से अमृत जैसा लाभ मिलता है। जिसे

अमृत कुम्भ भी कहते हैं। इसी समय वैज्ञानिक ने सूर्य की किरणो ं का विटामिन डी के रूप में सेवन

करने की सलाह दिया है परन्तु इसका सबसे बड़ा भौगोलिक कारण यह है कि जिस समय सूर्य

मकर वृत्त में विद्यमान रहता है उस समय उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित भू-क्षेत्रों पर अधिक दूरी के

कारण सूर्य की हानिकारक पैराबैगनी किरणो ं का दुष्प्रभाव सबसे कम पाया जाता है। अतः इस

समय उपलब्ध सूर्य ताप मानव के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए सबसे हितकारी माना

जाता है। मानस मे ं लिखा है कि-

‘प्रति सम्बत् अति होई अनन्दा, मकर मज्जि जनवहि मुनि वृन्दा।।

दूसरी बात, जलवायु वेत्ताओं का मानना है कि 170 से 180 सेटींग्रेड या 600 फारेनहाइट

तापमान पर ही किसी व्यक्ति की शारीरिक या मानसिक कार्य करने की क्षमता सबसे अधिक पायी

जाती है और मानव मस्तिष्क एवं बुद्धि के विकास का सर्वोत्तम भौगोलिक ऋतु भी यही मानी जाती

है। यही कारण है कि इसी तापमान में निवास करने वाले ब्रिटेन आदि पश्चिम यूरापे के देशां के

निवासियों ने प्रत्येक महाद्वीप में अपना उपनिवेश बना लिया था, और आज भी इसी भौगोलिक

अनुकूलता के कारण इन देशां की गणना विकसित राष्ट्रों में की जाती है।

अतः भगूले की दृष्टि से माघ के महीने में जब सूर्य मकर वृत्त मे ं स्थापित हाते है तो उस

समय भारत देश के प्रयाग परिमण्डल की भौगोलिक परिस्थितियां सर्वोत्तम रहती हं।ै इसके उत्तर

दक्षिण पूरब तथा पश्चिम जाने के साथ-साथ तापमान में कमी या वृद्धि हो जाने के कारण यह

भौगोलिक अनुकूलता क्रमशः कम होती जाती है। इसीलिए प्रयाग को ही तीर्थपति माना गया है।

ज्ञानार्जन के लिए इसे भारत भू-खंड का सर्वाधिक उपयुक्त क्षेत्र माना जाता है।

ब्रह्म निरूपन धर्म विधि, बरनहि तत्व विभाग।

कहहिं भगत भगवन्ति के, संपुट ज्ञान विराग।।

तुलसीदास जी ने यह स्पष्ट किया कि अनुकूल भौगोलिक परिवेश में ही ऋषियों मुनियो ं

द्वारा प्रयाग क्षेत्र में ब्रह्म निरूपण तथा तत्व विश्लेषण किया जाता था।

माघ माह में तीरथपति प्रयाग का एक और भौगोलिक पक्ष है कि शीत ऋतु में संगम प्रयाग

में मिलने वाली गगां यमुना तथा सरस्वती नदियो ं का पानी सबसे स्वच्छ आरै प्रदष्ूण रहित हो

जाता है। साथ ही साथ इन नदियों की गहराई भी कम हो जाती है। अतः संगम के अमृत तुल्य

जल में स्नान और उसके बाद निविर्कार सूर्य ताप के सेवन का संयोग वर्ष में केवल कुछ ही दिनो ं

के लिए हो पाता है। जिसका प्राप्त करने के लिए भारत की नहीं अपितु विश्व के सभी क्षत्रे ं से

जनसमुदाय अपने दैहिक मानसिक, भौतिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक सुचिता हेतु माघ माह में प्रयाग

में कल्पवास करता है। वैदिक मान्यताओ ं के अनुसार इसी भौगोलिक परिक्षत्रे में पुण्य लाभ एव ं

मुक्ति के लिए मानव के अतिरिक्त देवता एवं किन्नर भी त्रिवेणी में डुबकी लगाने हेतु लालायित

रहते हैं।

गोस्वामी जी ने लिखा है कि -

देव दनुज किन्नर नर श्रेणी, सादर भज्जहिं सकल त्रिवेणी।

पूजहिं माधव पद जल जाता, परस अक्षयवट हर्षतिगाता ।।

परन्तु यह सुखदायी परिवेश सीमित अवधि तक ही रहता है। पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती

रहती है। फलतः धीरे-धीरे सूर्य मकर वृत्त से बाहर होकर कर्क वृत्त मे ं प्रवेश करने लगता है।

जिसके कारण उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य की कर्कश किरणें प्रभावी होने लगती है। परिणामतः दक्षिणी

गोलार्द्ध के मकर वृत्त के प्रभाव से उत्तरी गोलार्द्ध का अनुकूल भौगोलिक पुण्य परिवेश क्षीण होने

लगता है। अतः शास्त्रीय, आध्यात्मिक तथा भौगोलिक सब विधि मूल्यांकन करने पर स्पष्ट होता है

कि माघ महीने मे ं मकर रेखा पर सूर्य सौर्यिक प्रभाव आरै त्रिवण्ेी का संगम ही प्रयाग का तीर्थराज

की उपाधि से अलंकृत करवाता है। इसलिए-

जब यहि भांति बने संयोगू।

अवसि देखिये देखन जोगू।।

(डॉ0 इन्दुशेखर उपाध्याय)