सदस्य:दिवेश चंद्रा/प्रयोगपृष्ठ
'आधा पति' आज मैं ऐसी बात लिखने जा रहा हूं मुझे तो लग रहा था विकिपीडिया या अपने ब्लॉग पर ना लिखूं, लेकिन वर्तमान समय के हालात को देखते हुए युवाओं को देखते हुए एवं युवतियों को देखते हुए मुझे लगा है कि लिखना आवश्यक है। साहित्य समाज का दर्पण है। हर एक साहित्यकार का कर्तव्य है कि वह समाज के हर एक बात को साहित्य में डालें साहित्य के माध्यम से हर व्यक्ति के पास पहुंच सके। कॉडवेल का कथन है कि साहित्य समाज की सीपी में जन्म लेता है।
प्रेमचंद के गोदान में पढ़ते हैं और जानते हैं की विवाह से पूर्व लड़के एवं लड़कियां साथ में रह सकते हैं। सन 1936 में प्रेमचंद अपने गोदान में लिखते हैं। यह बात वर्तमान समय में 2020 चल रहा है और ऐसे अपने शहरों में देख रहे हैं और पा रहे हैं और कुछ युवा दोस्त इसका फायदे और नुकसान भुगत रहे वैसे माता-पिता का क्या जो एक अच्छे ख्वाब देख कर अपने बेटा बेटी को अच्छे यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए भेजते हैं लेकिन वह उनकी इरादों पर खरे नहीं उतर रहे हैं इसमें युवाओं का काफी ज्यादा दोष है। प्यार तो सभी करते हैं निभाते तो बहुत कम लोग हैं, एक समय ऐसा था कि लड़के ज्यादा धोखा देते थे नहीं वर्तमान समय में लड़कियां जैसे-जैसे हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है वैसे ही इस क्षेत्र में भी आगे निकल रही है जिसे वह बोलती हैं। जैसे तुम मजे लिए जिंदगी के वैसे मैं भी मजे ले जिंदगी के हम दोनों के रास्ते अलग हैं 4 दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात है लड़कियां कह कर निकल जाती है लड़के बेचारा प्यार मोहब्बत में पढ़ कर आंसू बहाते रह जाते हैं अगर ज्यादा कुछ हो तो लड़कियां 420, 376 अन्य धाराएं लगाकर जेल भेज देती है यह है वर्तमान समय का प्रेम। मुझे गुलजार की एक पंक्ति याद आ रही है, अगर मर्द करे तो उसे हवस कहते हैं अगर महिलाएं करे तो उसे मोहब्बत कहते हैं।
वर्तमान समय में विवाह से पूर्व एक लड़के कितनी लड़कियां बदलते हैं और 1 लड़कियां कितने लड़के बदलती हैं जो कि दोस्ती करने से पहले एग्रीमेंट करते हैं हम दोनों साथ में रहेंगे सब कुछ करेंगे लेकिन विवाह नहीं करेंगे इसे आधा विवाह मैंने नाम दिया है और आधा पति इसे नाम दिया है। आधा पति वही है जो आधे समय के लिए ही साथ दें आधे -आधे कर लड़कियां पता नहीं एक पूर्णता की तलाश में जिंदगी भर भटकती रहती है। जो कभी हासिल नहीं होता है जैसे हम मोहन राकेश की आधे अधूरे नाटक को देख सकते हैं एक पूर्णता की तलाश में एक ही स्त्री कितने पुरुष को बदलती है लेकिन उसे कहीं पूर्ण पुरुष नहीं मिलता है हम देख सकते हैं। अपने समाज में की सभी स्त्री को एक पूर्ण पुरुष चाहिए। एक अपूर्ण पुरुष को पूर्ण नहीं बना सकती है उसे एक सांचे में सजाया हुआ पूर्ण पुरुष चाहिए उसका हर ख्वाहिश पूरा करें हर मनोकामना पूर्ण करें लेकिन स्त्री को झुकना पसंद नहीं करती है भले पुरुष सदियों से झुकता आया है झुकता रहेगा स्त्री के प्रेम में लेकिन एक स्त्री एक पुरुष को नहीं समझ सकती है ना एक पुरुष के प्रेम को समझ सकती है हमारे समाज में प्रत्येक दिन ऐसे नए-नए केस मुकदमे दिखाई दे रहे हैं। इन सभी से समाज के युवक युवतियों को समझना चाहिए कि वो किस आधे मार्ग पर भटक रहे हैं एक अधूरी पूर्णताः की तलाश में। क्रमशः...।दिवेश चंद्रा (वार्ता) 19:36, 13 सितंबर 2020 (UTC)== ==