सदस्य:श्रीकृष्ण मित्तल/प्रयोगपृष्ठ
'गाय और इंसान - गौशास्त्र
संपादित करें==== १. महिमा खंड'
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गौवंश का अर्थ और महिमा
संपादित करें'त्वं यज्ञस्य त्वं माता सर्वदेवानां कारणम | त्वं सर्वतीर्थानां नमस्तुतेअस्तु सदानघे |, शशि सूर्यरूणा यस्या ललाटे वृषभ ध्वज:| सरस्वती च हुंकारे सर्वेनागास्च कम्बले || क्षुर पृष्टे च गन्धर्वा वेदाश्चत्वार एव च | मुखाग्रे सर्वतीर्थानि स्थावारानि चराणि च ||'
“ हे निष्पापे तुम सब देवताओं की माँ,यज्ञ की कारण रूपा और सम्पूर्ण तीर्थों की तीर्थ रूपा हो. हम तुम्हे सदा नमस्कार करते हैं. तूम्हारे ललाट में चंद्रमा, सूर्य, अरूण और वर्षभध्वज शंकर विराजमान हैं. हुंकार में सरस्वती, गल कम्बल में नागगण, खुरों में गन्धर्व और चारो वेद तथा मुखाग्र में चर-अचर सम्पूर्ण तीर्थों का वास है”. गोवंश भारतीय जीवन, संस्कृति, ईतिहास का अटूट अंग है यानि जबसे सृष्टि की रचना हुयी तभी से गौ इतहास का भी प्रारम्भ होता है. आदिकाल में देव और दानवों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया था. प्रभु ने कच्छप अवतार लेकर सुमेरु पर्वत को धारण किया और वासुकी नाग को रज्जू के तौर पर प्रयोग में लाकर मंथन किया गया जिसमे पृथम हलाहल विष की ज्वाला से तारने के लिए रत्नस्वरूपा कामधेनु का प्रागट्य हुआ जो सभी मनोकामना, संकल्प और आवश्यकता पूर्ण करने में सक्षम थी. कामधेनु को पालन हेतु देवताओं ने महाऋषि वशिष्ट को प्रदान किया जिन्होंने गौलोक की रचना की सर्वसुख प्रदायनी गौ के विषय में एक और कथा आती है. जब सृष्टि का प्रारम्भ हुआ तो ब्रह्मा जी ने मनु को सृष्टि रचना का आदेश दिया जिसके कारण हम मानव कहलाते है. मनु जिनका नाम पर्थु था उन्होंने गोमाता की स्तुति की और गोकृपा अनुसार गौदोहन किया और पुथ्वी पर कृषि का प्रारंभ किया पर्थु मनु के नाम से यह धरा पृथ्वी कहलाई. मानव संरक्षण, कृषि और अन्न उत्पादन में गोवंश का अटूट सहयोग और साथ रहा है. इसही कारण हमारे शास्त्र वेद-पुराण गो महिमा से भरे है. रघुवंश के राजा दिलीप गोसेवा के पर्याय और रामजन्म सुरभि गाय के दुग्ध द्वारा तैयार खीर से माना गया है . कृष्ण, जो गोपाल के नाम से जाने गए ने पूर्ण यादव क्षेत्र की रक्षा गोवर्धन पर्वत उठा कर की और माखन चोर भी कहलाये. औषधियोके स्वामी धन्वन्तरी ने गौभक्ति और गौसेवा कर आरोग्य प्रदायनी गौ दुग्ध, गौ घी, गौदधि, गौमूत्र और गौबर के मिश्रण से पंचगव्य की रचना की यहां तक कि गाय (गोबर) का मलमूत्र एक पर्यावरण रक्षक के रूप में माना जाता था और फर्श और घरों की दीवारों रसोई में इस्तेमाल किया गया था. शुद्ध रहने के लिए हर घर और मानव शरीर पर गोमूत्र छिड़काव एक आम बात थी. गोधन धन के रूप में और धन के एक उपाय के रूप में माना जाता था. गोकुल यानी जहाँ १०,००० से अधिक गौवंश हो और नन्द जो की हजारों गौवंश का अधिपत्ति हो जाना जाता था. सनातन धर्म में कन्या को दुहिता का नाम दिया है यानी दुग्ध को दोहन करने वाली यानि दुहिता गाय का दान एक सबसे महान के रूप में कार्य के रूप में माना जाता था.
गाय' शब्द का अर्थ
संपादित करेंवेद और स्मृति में गौ"cow", 'गाय' का बड़ा व्यापक अर्थ है. इसमें केवल गाय, बैल और बछडे ही नही बल्कि दूध, गौमूत्र और गोबर भी शामिल है. मानव इन्द्रियों को भी गौ और गौभक्षण को इंद्री,अर्थात: काम, क्रोध, मोह, दर्शन, श्रवण, स्वाद आदि दमन का सम्बोधन दिया गया है. आक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के विख्यात प्राध्यापक डॉ॰ मोनियार विलियम ने अपने शब्दकोश में गौ के ७२ समानांतर अर्थ दिए है कुछ इस प्रकार है १.गौ २.श्रिंगने 3.तम्चा ४.महा ५.पुरारी ६.सुरभि ७.उसरा ८.अर्जुनी ९.अग्र१०. रोहिणी ११.धेनुधेनुका १२.अमृत १३.गौधेनु १४.स्त्रिगावी १५.दुग्धि १६.पिनोघनी१७.प्रियारुपणी १८.धेनुषा १९.गोवृन्दवारा २०.गोमुतालिका २१.गोप्रकंड २२.वत्सकामा २३. वत्सला २४.वसुंधरा २५.वसुधा २६.धरित्री २७.धारिणी २८.मेधिनी २९.वत्सिया आदि गावो विश्वस्य मातर: गोएँ विश्व की माँ हैं यजुर्वेद: गो:मात्रा न विद्यते अर्थात: गौ अनुपमेय है ब्रह्मांड पुराण में भगवान व्यास ने गौ-सावित्री स्तोत्र में समस्त गौवंश को साक्षात् विष्णु का रूप माना और इसके सम्पूर्ण अंगो में भगवान् केशव का वास कहा पदम् पुराण का कथन है – गौमुख में षढढ्ग और पदक्रम सहित चारो वेद रहते है स्कन्द पूराण के अनुसार गौ सर्वदेवमयी और वेद सर्व गोमय हैं. जिस घर में गौ नही वह बन्धु शून्य है गौ को आदिकाल से पवित्र और करुणा का द्योतक माना गया है. मान्यतानुसार इस की सेवा और अर्चना से मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है. “ गाओ विश्वश्य जगत: प्रतिष्ठा” अर्थात गाय विश्व में सबसे प्रतिष्ठित है जिसे भगवती के रूप में पूजा गया है “ पश्वे तोकाय शं गवे”८.५.२० युगे गावो मेद्यया कृशं चिद्श्रीरं चित्कुणुथा सुप्रितकम . वेद ऋचाओं में प्रभु से गौवंश को पूर्ण सुरक्षा और दीघ्र आयु की प्रार्थना की गयी है भद्रं ग्रहँ कृणुय भद्रवाचो ब्रहदो वय उच्च्यते सभासु”(अर्थववेद ४.२१.६) हे गौ तुम्हारी पवित्र ध्वनि हर एक को प्रसन्न करती है “ऐतद्रे विश्वरूपं सर्वरूपं गोरूपं” (अर्थववेद ९.७.1.२६ ) हे गौ तुम विश्व रूप हो रूपं अघ्न्ये ते नम: अघ्ने ते रूपाय नम: अर्थववेद १०,१०.1) हे अवध्या मै तुम्हे नमन करता हूँ हिंदुओं में धर्मग्रंथों की विशाल श्रृंखला है और ये तमाम धर्मग्रंथ बतातें हैं कि मनुष्य और जीव-जंतुओं के बीच प्राचीन काल से ही अन्योन्याश्रय संबंध रहा है। इनग्रंथों का संदेश है कि तमाम जीव-जंतुओं की रचना ईश्वर ने मनुष्यों की भलाई के लिए ही की है और गाय इन जीव-जंतुओं में सबसे श्रेष्ठ है। इसलिए सृष्टि के इस आदि धर्म में जो भी ग्रंथ मान्य हैं उन सबों में बिना अपवाद गाय की महिमा का बृहद् बखान है, जिसके केवल उदाहरण दिये जाये तो भी एक ग्रंथ बन जायेगा। वेद से ले कर पुराणों तक में और रामायण से ले कर महाभारत जैसे इतिहास ग्रंथों में गायों को अहन्या माना गया है और उसे माँ का स्थान दिया गया है। हिंदू गृन्थ गाय की महिमा के बखान से ओत-प्रोत हैं।इसके कुछ उदाहरण हैं- अर्थववेद में कहा गया है- मित्र ईक्षमाण आवृत आनंदः। युज्यमानों वैश्वदेवोयुक्तः प्रजापति विर्मुक्तः सर्पम्।। एतद्वैविश्वरुपं सर्वरुपं गोरुपम्।। उपैनंविश्वरुपाः सर्वरुपाः पशवस्तिष्ठन्ति य एवम् वेद।। (अर्थववेद) अर्थात् -देखते समय गो मित्रदेवता है पीठ फेरते समय आनंद है। हल तथा गाड़ी में जोते जाते समय (बैल) विश्वदेव, जाने पर प्रजापति, तथा जब खुला हो तो सबकुछ बन जाता है। यही विश्वरुप अथवा सर्वरुप है, यही गोरुप है। जिसे इस विश्वरुप का यर्थाथ ज्ञान होता है, उसके पास विविध प्रकार के पशु रहतें हैं। अर्थववेद में ही कहा गया है ब्राह्मण तथा क्षत्रिय विश्वरुप गो के नितंब है। गंधर्व पिंडलियां तथा अप्सरायें छोटी हड्डियां हैं। देवता इसके गुदा हैं,मनुष्य आंते तथा अन्य प्राणी अमाशय है। राक्षस रक्त तथा इतर मानव पैर हैं। गाय के संबंध में एक जगह कहा गया है- प्रत्यंग तिष्ठन् धातोदङ तिष्ठनन्रसविता।। तृणाणि प्राप्तः सोमो राजा।। अर्थात् पश्चिमाभिमुख खड़े होते समय गाय विधाता उत्तराभिमुख खड़े होते समय सविता तथा घास चरते समय चंद्रमा है। विभिन्न ग्रंथों में कहा गया है कि गाय के अंगों में ईश्वर का वास है।उदाहरणार्थ-बृहत्पराशरस्मृतिपद्मपुराण(सृष्टिखंड अथर्ववेद में गायों को संपतियों का भंडार कहा गया है-(अर्थववेद धेनुः सदनम् रयीणम अर्थात् गाय संपदाओें का भंडार है। एक जगह आता है गावो विश्वस्य मातरः। अर्थात् गाय संसार की माता है। वेदों में तो गाय को टेढ़ी आंख से देखना तथा लात मारने को भी बड़ा अपराध माना गया है- यच्च गां पदा स्फुरति प्रत्यड़् सूर्यं च मेहति। तस्य वृश्चामि तेमूलं च्छायां करवोपरम्।। अर्थववेद 13 अर्थात् जो गाय को पैर से ठुकराता है और जो सूर्य की ओर मुँह करके मूत्रोत्सर्ग करता है मैं उस पुरुष का मूल ही काट देता हूँ संसार में फिर उसे छाया मिलनी कठिन है। प्रभु राम के वनवास गमन के पश्चात् जब भरत जब उनसे मिलने वन में गये तो प्रभु का पहला प्रश्न भरत से यही था कि तुम्हारे राज्य में गाएं तो ठीक से है न स्कंदपुराण (आवंत्यखंड रेखाखंड अध्याय-13 ब्रह्मांडपुराण (गोसावित्रीस्त्रोत) भबिष्यपुराण (उतरपर्व बह्मवैर्वापुराण के श्रीकृष्णजन्म कांड आदि में गाय की महिमा का वर्णन है। गोवध का निषेध करते हुये वेद में कहा गया है- माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यनाममृत्स्य नाभिः। प्रश्नु वोचं चिकितुषे जनायमा गामनागादितिं वधिष्ट।। अर्थात् गो रुद्रों की माता वसुओं की पुत्री अदितिपुत्रों की बहन तथा धृतरुप अमृत का खजाना है | प्रत्येक विचारशील मनुष्य को मैनें यही कहा है कि निरपराध व अवध्य गो का कोई वध न करे।
शिव का वाहन - धर्म का अवतार नंदी
संपादित करेंवृषभ 'संस्कृत अंग्रेजी शब्द' बैल 'के बराबर है| नंदी बैल भगवान शिव का वाहन है. वैदिक साहित्य में शिव शब्द 'जनता के कल्याण' (लोक कल्याण) का पर्याय है| और बैल लोक कल्याण कर्ता का वाहक है|हमारी कृषि और ग्रामीण परिवहन की 90% अभी भी हमारे बैलों पर निर्भर हैं| बैल इस प्रकार हमारे धर्म के अवतार हैं. वस्तुतः बैल मानव जाति का एक भाई है| 3 वर्ष की आयु के बाद बछड़ा, बछिया, और बैल, जो अपने जीवन प्रर्यंत मानव जाति का कार्य करता है| प्रत्येक शिव मंदिर में हमेशा एक नंदी की प्रतिमा भगवान शिव की प्रतिमा शिव दरबार में मिल जाएगी| यही नही,भारत के राष्ट्रिय चिन्ह में बैल को स्थान दिया गया है|कितने ही सम्प्रदायों जैसे लिंगायत सम्प्रदाय में नंदिश्वरकी आराधना की जाती है|
गौपूजन
संपादित करेंगौ का स्थान हमारे समाज में इतना उच्च था कि वार्षिक पंचांग में गौपूजा के लिए विशेष पर्व और दिन निर्धारित कर दिए गए थे जैसे दीपवाली से 3 दिन पृथम बछ्वारस औषधि के देव धन्वन्तरी के साथ, दीपावली से अगलेदिन बलिप्रतिपदा – गोवर्धन पर गौपुजन किया जाना निश्चित था. ना केवल गौ बल्कि नंदी भी पूजे जाते हैं जैसे श्रावन मॉस का अंतिम दिन पोला जिसमे बैल को सजा कर घर घर ले जाया जाता है जहाँ उनकी पूजा की जाती है गौदान सबसे पवित्र और महान माना गया है| मकर संक्रांति में गौ-नंदी की विभिन्न रूपों में पूजा अर्चना की जाती है| गौपदम व्रत आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक नित्य, गौवत्स व्द्वादशीव्रत, गौवर्धनपूजा गौपास्टमीव्रत, पयोव्रत, वैतरणी एकादशी व्रत आदि गौवंश पूजा से सम्बन्धित हैं| गृहप्रवेश, पानिगृहण, आदि संस्कार गौपूजा, गौदर्शन, गौदान से ही पूर्ण माने जाते हैं | गौदुग्ध, दधि, घृत, गौमूत्र, पंचगव्य आदि हर पूजा, हवन के अटूट अंग देखे जाते हैं |
गाय - देवी रूप माता
संपादित करेंवेदों और वैदिक काल में गाय को सर्वोच्च उत्पत्ति का पर्याय माना गया| गाय भूमि, गाय देवमाता, गाय मेघ गाय प्राकृतिक जीवन जल, मानी गयी| गाय या गौवंश पुरातन काल में विशेष सम्पत्ति मानी गयी और युद्ध में विशेष प्राप्त सम्पत्ति मानी गयी| इसके मुकाबले में किसी और प्राणी को स्थान नहीं दिया जाता था| एक विशिष्ट अनुवेष्ण में पाया गया की जैन सम्प्रदाय ने वृध और असहाय गौवंश के लिए गृह –पिंजरापोल बनाये| नन्द यानि जिसके गौकोष्ट में गायो का समूह हो| ब्रज यानि जहां एक लाख से अधिक गौवंश हो, कन्या को दुहिता कहा गया|
गौवंश के विभिन्नप्रकार
संपादित करेंहमारे लिए, 'गाय' मूल रूप से हमारे स्वदेशी नस्लों की गाय, जिसमे कुछ निहित दिव्य और प्रमाणित गुण है, 50 से अधिक स्वदेशी नस्लों, जिनमें से कुछ के नाम नीचे का उल्लेख कर रहे हैं 1.गीर 2. काकरेज 3. हरियाणा 4. नागौरी 5. अमृतमहल 6. हल्लीकर, 7.मलावी 8. निमरी 9. दाज्जल 10. अलाम्हादी 11. बरगुर 12. कृष्णवल्ली 13. लालसिन्धी 14. थारपारकर 15. गंगातीरी 16. राठी 17. ओंगोल 18. धन्नी 19. पंवार 20. खेरिगढ़ 21. मेवाती 22. डांगी 23. खिल्लार 24. बछौर 25. गोलो 26. सिरी कांगयम यह नस्लें अपने उत्तम दुग्ध, शक्ति और पर्यावरण रक्षक के रूप में पूर्ण विश्व में जानी जाती हैं. १. आकृति –प्रकृति गुण-दोष एवं रूप रंग के आधार पर अगर बांटे तो मैसूर की लम्बे सींगों वाली अमृतमहल, हल्लिकार, कान्ग्यम, खिल्लार, कृष्णवल्ली, बरगुर, आलमवादी आदि २. काठियावाड़ की लम्बे कान वाली गीर, देवानी, डांगी, मेवाती, निमाड़, आदि ३. उत्तरी भारत की चौड़े मुख तथा मुड़े हुए सींग वाली सफेद रास, कांकरेज, मालवी,नागौरी, थारपारकर,बचौर,पंवार,केनवारिया आदि ४. मध्य भारत की संकरे मुख और छोटे सींग वाली भगनारी. गावलाव, हरियाणवी, हांसी-हिसार, अंगोल, राठ आदि साहिवाल, धन्नी,पहाड़ी सीरी, लोहानी, आदि यह प्रजातियां अपने दुग्ध क्षमता, गुणवता, शक्ति के लिए विश्व विख्यात है| आज ब्राजील, आस्ट्रेलिया, इस्रायल और योरप के कितने ही देशों में इन को अर्थ व्यवस्था की रीढ़ माना जाता है. गिन्नी विश्व रिकार्ड में गीर और अंगोल को शामिल किया गया है|
विदेशी प्रवासियों की नजर में गाय
संपादित करेंमाक्रोपोलो में भारत आया और लिखा कि यहाँ हाथी के समान नंदी जिन की पीठ पर व्यापारी माल लाद कर लेजाया जाता है घरो में गोबर से घर लीपा जाता है और उस पर बैठ कर प्रभु आराधना होती है में रहा तथा मुगल दरबार को नजदीक से उसने अपने यात्रा वर्णन में लिखा है कि हिन्दुस्तान में गोवध मनुष्य के वध के समान दण्डनीय था।उसने तत्कालीन बादशाहों के भोज्य पदार्थों की सूची दी है जिसमें कहीं भी गो मांस का उल्लेख नही है। ईटालियन यात्री पीटर डिलाब्रेल ने 1963 में लिखा है कि खम्बात में गो बछड़े और बैल मारने की सख्त मनाही थी| कोई मुसलमान भी यदि गोहत्या करता तो उसे मृत्युदण्ड जैसा कठोर दण्ड मिलता था। एक अन्य यूरोपीय टेवनियर लिखता है कि मुगल काल में व्यापारी माल लश्कर की सामग्री ढोने का कार्य बैलों से किया जाता था इसके लिए बंजारा जमात बहुत महत्वपूर्ण थी उनके पास दक्षिण भारत की अमृतमहल महाराष्ट्र की जैवारी (खिलार) काठीयावाड़ की तलवड़ा बुंदेलखण्ड की गोरना इत्यादि नस्लों के बैल थे ये बैल रोज 50-60 कि.मी. पीठ पर माल लेकर चलते थे। कहा जाता है कि विदेशीयात्री भारत से कामधेनु और कल्पतरु यानी गाय और गन्ना लेकर गया था जिस से योरप में समृधि बढ़ी और “सोने की चिड़िया” भारत लुट गया |
गाय कामधेनु
संपादित करेंविकराल राष्ट्रिय समस्याओं का परिहार गौवंश है| माननीय शंकरलाल जी जी के शब्दों में भारत के विकास और सम्पन्न भारत के स्वप्न को यह कामधेनु ही पूर्ण कर सकती है यानि :
रोग मुक्त भारत, कर्जमुक्त भारत, अपराध मुक्त भारत, प्रदूषण मुक्त भारत, कुपोषण मुक्त भारत, अन्नयुक्त भारत, उर्जा उक्त भारत, रोजगारमय भारत, स्वालम्बी भारत सम्पन्न-भारत संकल्प पूरा करने में गौवंश सक्षम है इसलिए इसकी रक्षा करनी होगी| जल, जमीन, जंगल, जीवात्मा, पर्यावरण, स्वास्थ्य और संस्कार की रक्षा करनी हो तो पृथम गौवंश को बचाना होगा अंग्रेजी में इसे COW MOTHER कहा जाता है इसमें एक एक अक्षर अपने में महिमा संजोये हुए है| माननीय श्री राधेश्याम गुप्ता जी के शब्दों में देखिये :- C – Capital Formation सम्पति प्रदायनी O –Organic farming प्राकृतिक जीरो बजट खेती W – Weather, Wealth मौसम नियंत्रक, सम्पति M – Money, Milk, Medicine,पैसा, दुग्धशाला, माँ O- -- Organic Manure प्राकृतिक खाद का खजाना T- Trade – Transport व्यापार,उद्योग,परिवहन H- Health स्वास्थ्य प्रदायक, सर्व रोगनिवारक. E-EnergyEconomy,Ecologyशक्ति,अर्थव्यवस्था,पृदूषणनिवारक R - Rural Development ग्राम विकास की धुरी
गौशाला, पिंजरापोल, प्राणीदया संस्थाएं और भा.ज.पा प्रकोष्ट
संपादित करेंजबसे मानवता का प्रारम्भ हुआ प्रानिदया और इस संस्थाओं का प्रादुर्भाव हुआ| राज्यों का विषय होने के कारण कोई प्रामाणिक आंकड़े तो नही है परन्तु भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड के साथ आज ३२०० संस्था पंजीकृत हैं जिनमे १५०० से अधिक गौशालाएं हैं. जिन राज्यों में गौसेवा आयोग बने और साकारी अनुदान मिले वहां तो गौशालाओं की बाढ़ आ गयी| मध्यप्रदेश गौसेवा योग के अध्यक्ष श्री शिवजी चौबे का कथन की उनके यहाँ तो चार मंजिल पर भी गौशालाएं पकड़ी गयी, सत्य स्थापित करता है| अनुमानत: देश में १५,००० के आसपास विभिन्न नामों में गौशालाएं कार्यरत हैं जिनमे ५० से ५००० तक यानी २०-२५ लाख कुल गौ,बैल, भेंस बछड़े, कटड़े आदि भी प्राणियों का पालन होता है | इन प्राणीदया संस्थाओं में मुख्यत: गुजराती, मारवाड़ी, जैन, अग्रवाल, ब्राह्मण अहिंसक समाज का वार्षिक अनुदान १५०० से २००० करोड़ के बीच में आंका जा सकता है| विशाल नगरीकरण के कारण शहरो में गौशालाएं और गौपालन समाप्त प्राय: है जबकि ६ लाख ग्रामों के इस देश में हर गाव, हर तहसील, हर जिले में गौशाला की आवश्यकता है मुझे देश की विभिन्न प्राणीसंस्थाओं को देखने का अवसर मिला है| नागपुर देवलापार, कानपूर, कलकत्ता, गौहाटी, जयपुर, हिसार, बवाना दिल्ली,मथुरा की महाजनी,अहमदाबादकीस्वामीनारायण,बंसीगोपालआदि गौशालाएं गौबरगौमूत्र से वस्तु-उत्पादन, नस्ल सुधार आदि कार्यो में रतहै| १९३८ से कार्यरत दक्षिण भारत की विशालतम संस्था ४००० से अधिक प्राणियों का जीवनयापन कर रही है| मै मैसूर पिंजरापोल में गत २० वर्षो से सेवा दे रहा हूँ|आज ३०० किलोमीटर क्षेत्र में कहीं भी प्राणी पुलिस द्वारा बचाए जाते हैं तो उन्हें विश्वास है कि मैसूर पिंजरापोल इन्हें सम्भालेगी, अदालत में केस लड़ेगी| राजनीति में जनकल्याण कार्यों का मुख्य समावेश होता है| इस तथ्य को स्वीकार कर भा.ज.पा ने गौसेवा आयोगों की स्थापना की और केंद्र में अध्यक्ष श्री राजनाथसिंह जी ने सभी राजनीतिक दलों को पीछे छोड़ते हुए भा.ज.पा गौवंश विकास प्रकोष्ट की २००८ में माननीय श्री राधेश्याम गुप्त जी को संयोजक मनोनित करते हुए रचना की और माननीय नितिन गडकरी जी ने कृषि, ग्रामीण स्वालंबन, महिला शक्ति, युवा रोजगार आदि कार्यो को प्रकोष्ट माध्यम से को बढ़ाने की प्रेरणा दी| मुझे राष्ट्रिय सह संयोजक के नाते पूर्ण देश में कार्य का और प्रकोष्ट विस्तार का अवसर मिला| आज अधिकतर राज्यों में प्रकोष्ट गौवंश, गौशालाओं, गौभक्तों की आवाज बन चुका है |
अनुचित शब्दावली और परिणाम
संपादित करेंCattle न कह कर गौवंश कहा जाये :गाय और गौवंश को अंग्रेजी में Cow & its progeny कहा गया है. भारतीय संविधान में भी इन शब्दों का प्रयोग किया गया है लेकिन ना जाने कब, किस साजिश में इसे पशु, मवेशी Cattle कहा जाने लगा| आज पृथम इस में सुधार की आवश्यकता है | बीफ शब्द में से भैंस आदि के मांस को अलग करा जाये गौमांस यानि BEEF जिसे प्रसिद्ध Oxford शब्दकोश में भी “flesh of a cow, bull, or ox, used as food " यानि गाय या बैल से मिला भोज्य मांस | ना जाने किस षड्यंत्र में इस में भैंस का नाम जोड़ दिया गया जबकि उसे भैंस मांस के रूप में प्रचारित किया जाना चाहिए | बैलशक्ति : अश्व अपनी गति के लिए पहिचाना जाता है ना कि शक्ति के लिए और गति कार्यो के आलावा और किसी कार्य में उपयोग में नही आता है जबकि बैल अपनी शक्ति के लिए जाना जाता है फिर भी शब्द अश्वशक्ति को प्रचारित किया जाता है| इसे बैल शक्ति जो की अश्व से ८ गुना से भी ज्यादा आंकी गयी है के रूप में लिखा जाना चाहिए गौवंश को अनुपयोगी कहना सही नही,यह तो सर्वकार्य प्रदायिनि कामधेनु है| राष्ट्रिय झंडा, राष्ट्रिय गान, राष्ट्रिय चिन्ह का दुरूपयोग, अपमान जघन्य अपराधों की श्रेणी में आता है | और बैल को राष्ट्रिय चिन्ह में स्थान प्राप्त है | परन्तु देश की स्वंत्रता के पश्चात् इस विषय पर संज्ञान लिया नही गया है और बैलों सांडो बछड़ो का निर्मम क्रूर यातायात और कत्ल पुरे देश में पैसे के लालच में किया जा रहा है | परिणाम कृषक की आत्महत्या, कृषि लागत में असहनीय वृधि, पर्यावरण क्षरण आदि दृष्टी गोचर है|