एक अन्य सन्दर्भ जिसमें उभर के आता है, वह है दो अल्प द्रव्यमान के नाभिकों का संलयन| इस घटना का प्रौद्योगिक दृष्टि से नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में विशेष महत्व है| तारों का आंतरिक तापमान कुछ K के करीब होता है| उदाहरण के लिए, सूर्य का भीतरी तापमान X है| इतने अधिक मान का कारण गुरुत्वाकर्षण संकुचन है|संपादित करें
जब तापमान इतने ऊंचे स्तर पर पहुँच जाता है, तब विभिन्न नाभिक, उच्च दाब की आयनीकृत गैस (प्लाज़्मा) में रहते हुए अपना अस्तित्व खो देते हैं, तथा उनके भीतर उपस्थित प्रोटॉन्स स्वतंत्र हो जाते हैं| इस तापमान पर एक प्रोटॉन की गतिज ऊर्जा ( काइनेटिक एनर्जी) का मान KT यानि keV के बराबर होता है| इसी दौरान इन प्रोटॉन्स का संलयन होता है जो कि इस प्रकार है-संपादित करें
पर इस प्रक्रिया में एक बाधा आती है जो है दो प्रोटॉन्स का आपसी विद्दुत विकर्षण| अतः यह प्रतिक्रिया तभी संभव है जब निम्नलिखित दो घटनाओं का संयोग हो: कूलम्ब रुकावट को बनाकर पार करना, तथा आयनीकृत प्रोटॉन्स के तापमान को बढ़ाना, जिससे कि उनकी गतिज ऊर्जा में बढ़ौतरी हो| इससे प्रोटॉन स्थितिज ऊर्जा (पोटेंशियल एनर्जी) की रुकावट के ऊंचे और संकीर्ण भाग में पहुँच सकेगा जहाँ उसके लिए बनाकर दूसरी ओर पहुँचने की सम्भावना बढ़ जाये|संपादित करें
मान लेते हैं कि दो प्रोटॉन्स एक दूसरे की ओर अग्रसर हैं, जो कि उनका संलयन होने के लिए सबसे अनुकूल परिस्थिति है| उनकी कुल गतिज ऊर्जा E=() keV=keV≈keV है, जबकि उनकी स्थितिज ऊर्जा keV निकल करके आती है, जब r का मान fm हो| यह वह दूरी है जिसमें नाभिकीय आकर्षण क्रियाशील हो जाता है जो कि स्थितिज ऊर्जा से कई गुणा अधिक बलशाली होता है| यदि उन प्रोटॉन्स के बीच की दूरी किसी भी प्रकार से यहाँ तक पहुँच जाये तो फिर उनके संलयन का कार्य बिना किसी बाधा के संपूर्ण हो जाता है| यह महत्वपूर्ण कार्य के फलस्वरूप ही संभव हो पाता है| अंततः दो प्रोटॉन्स का मेल स्थापित होता है तथा हमें उसके अनुक्रम में होने वाली अन्य प्रक्रियाओं के अंतिम चरण में वह He नाभिक (अल्फा कण) मिलता है जिसके साथ निकलने वाली ऊर्जा तारों को उनके जन्म से (सूर्य के लिए X वर्ष) निरंतर जलते रहने के लिए मिलती आ रही है|संपादित करें