हिन्दी कवि अंकित चक्रवर्ती
झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के बारे में आप सबने सुना ही होगा जिन्होंने कभी अंग्रेजी सत्ता के अधीन रहना स्वीकार नही किया आइये नमन करते है आज उनके बलिदान दिवस पर कवि अंकित चक्रवर्ती की पंक्तियों के साथ
मैंने सुना है लक्ष्मी बाई घोड़े पर चढ़ कर आती थी।
हाथों में तलवार पकड़कर रणचंडी बन जाती थी ।
बनी छविली आंखों के जब डोरे लाल दिखाती थी।
बिना लड़े अंग्रेजी सेना, घबराकर मर जाती थी।
झाँसी का वो किला गवाह है जिसने देखा काली को।
सब पूज रहे परब्रह्म, पर वह पूज रहा मतबाली को।
बांध पीठ पर दिल का टुकड़ा पवन वेग से आती थी
दुष्ट फिरंगी का लहू बहाकर, उनको ही नहलाती थी।
तोपों बन्दूकों की ध्वनि में, शोर सुनाई देता था।
युद्ध क्षेत्र में केवल और केवल पवन दिखाई देता था।
वह पवन था जो पवन वेग से दुश्मन ऊपर चलता था
जिसके आगे अंग्रेजी सत्ता का मालिक पानी भरता था
रानी का प्रचण्ड रूप देख ब्रम्हा विष्णु मौन हो गए थे।
काली का अवतार हुआ, कह शिव शंकर सो गए थे।
देव बोल उठे मां काली का विकराल रूप दिखेगा अब।
इस मतबाली के आगे कोई दुश्मन नही टिकेगा अब।
काट काट कर अंग्रेजी सेना युद्ध भूमि में पाटी थी।
जाकर देखो अपने भारत में, झांसी की माटी थी ।।
जब रानी घायल हो जाती है काँधे पर संगीन लगने के कारण और सिर पर तलवार के वार से घायल होने पर रानी अचानक घोड़े से गिरने लगती है तभी रानी के अंगरक्षक आस पास आ जाते है तब रानी के सैनिकों का उत्साह देखिये कुछ इस तरह से
घोड़े से फिर गिरी मर्दानी उठ ना पायी थी कभी।
बोली रानी अंग्रेज छू ना पाए ले चलो मुझे अभी।
रानी के एक सैनिक ने विकराल रूप धार लिया था।
सच पूंछो इस धरती पर शंकर ने अवतार लिया था।
रानी के सैनिक एक एक दुश्मन के सिर काट रहे थे।
रानी को ले स्वयं महादेव आगे बढ़ते जा रहे थे।
रानी के सैनिक कम थे तब भी अंग्रेजों के आगे झुके नही।
जब तक महादेव पहुंच ना गए मन्दिर सर कटे धड़ रुके नही।
एक सैनिक को दामोदर देकर रानी ने प्राण त्यागे थे।
काली के दर्शन किये महादेव ने वाकी सारे देव अभागे थे।
देखो जाकर के जहां रानी बन काली ने रक्त पिया।
हो गयी धन्य धरा जब जब वीरों ने इसे रक्त दिया।
जितना पावन अयोध्या,मथुरा, व्रन्दावन, काशी है।
उससे ज्यादा कही अधिक रानी की प्यारी झांसी है
हिन्दी कवि अंकित चक्रवर्ती
पीलीभीत 8954702290
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