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विफलता और दिवाला कानून: भारतीय दिवाला और ऋणशोधन संहिता (IBC)
संपादित करेंदिवाला और ऋणशोधन (Insolvency and Bankruptcy) वह स्थिति है जब कोई व्यक्ति या संस्था अपनी देनदारियों का भुगतान करने में असमर्थ होता है। इस प्रकार की स्थिति से निपटने के लिए भारतीय दिवाला और ऋणशोधन संहिता (IBC) 2016 को लागू किया गया। इस संहिता का उद्देश्य दिवालिया व्यक्तियों और कंपनियों के मामलों को समयबद्ध, पारदर्शी और प्रभावी तरीके से हल करना है।
दिवाला क्या है?
संपादित करेंदिवाला वह स्थिति होती है जब कोई व्यक्ति या संस्था अपनी ऋणों को चुकता करने में असमर्थ होता है। इसे "अवस्थापना" भी कहा जाता है। यह एक गंभीर वित्तीय संकट है, जिसमें उधारी के मुकाबले किसी के पास पर्याप्त धन या संपत्ति नहीं होती। दिवाला प्रक्रिया का उद्देश्य इस स्थिति का समाधान करना और ऋणदाताओं के हितों की रक्षा करना है।
भारतीय दिवाला और ऋणशोधन संहिता (IBC)
संपादित करेंभारत में दिवाला और ऋणशोधन के मामलों को सुलझाने के लिए 2016 में भारतीय दिवाला और ऋणशोधन संहिता (IBC) लागू की गई। यह संहिता दिवालिया मामलों के समाधान के लिए एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया प्रदान करती है। IBC का मुख्य उद्देश्य समयबद्ध और पारदर्शी तरीके से दिवालिया कंपनियों और व्यक्तियों के मामलों को हल करना है। इस प्रक्रिया में दिवालिया व्यक्तियों और कंपनियों को अपने ऋणों का समाधान करने के लिए एक निश्चित समय सीमा दी जाती है।
IBC की प्रक्रिया
संपादित करें- दिवाला आवेदन: जब कोई व्यक्ति या कंपनी अपनी ऋणों का भुगतान नहीं कर पाता, तो वह दिवाला आवेदन दाखिल कर सकता है। इस आवेदन को ऋणदाता या उधारी द्वारा भी दाखिल किया जा सकता है।
- न्यायिक अनुमोदन: आवेदन के बाद, इसे राष्ट्रीय कंपनी न्यायाधिकरण (NCLT) में प्रस्तुत किया जाता है। न्यायाधिकरण मामले की जांच करता है और फिर निर्णय पारित करता है।
- समाधान योजना: यदि किसी कंपनी को दिवालिया घोषित किया जाता है, तो उसे समाधान योजना तैयार करने का मौका मिलता है। इस योजना में कंपनी और ऋणदाता मिलकर ऋणों का समाधान ढूंढने की कोशिश करते हैं।
- समाधान या निपटान: समाधान योजना के तहत, ऋणों को निपटाया जाता है या कंपनी का पुनर्निर्माण किया जाता है। यदि समाधान सफल नहीं होता, तो कंपनी को दिवालिया घोषित कर उसकी संपत्तियों का निपटान किया जाता है।
IBC के लाभ
संपादित करें- पारदर्शिता और निष्पक्षता: IBC की प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहती है और सभी पक्षों को निष्पक्ष अवसर मिलता है।
- समयबद्ध समाधान: इस प्रक्रिया के तहत दिवालिया मामलों का समाधान शीघ्र किया जाता है, जिससे व्यापारियों और निवेशकों को जल्दी राहत मिलती है।
- निवेशकों की सुरक्षा: IBC निवेशकों के हितों की रक्षा करता है और उनके धन का उचित तरीके से निपटान करता है।
निष्कर्ष
संपादित करेंभारतीय दिवाला और ऋणशोधन संहिता (IBC) दिवालिया मामलों के समाधान में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह समयबद्ध, पारदर्शी और न्यायपूर्ण प्रक्रिया के माध्यम से कंपनियों और व्यक्तियों को अपने ऋणों का समाधान करने का अवसर देती है। IBC के लागू होने से व्यापारिक जगत में स्थिरता आई है और यह भारतीय अर्थव्यवस्था को सुधारने में मदद कर रहा है। यह कानून न केवल कंपनियों को पुनः संजीवित करने का अवसर प्रदान करता है, बल्कि यह निवेशकों और ऋणदाताओं के अधिकारों की भी रक्षा करता है।