सदस्य:2320582 Yash Kumar 2005/प्रयोगपृष्ठ

झारखंड और बिहार की विलुप्त होती जनजातीय भाषाएँ

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प्रस्तावना
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झारखंड और बिहार भारत के ऐसे राज्य हैं, जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विविधता और जनजातीय धरोहर के लिए जाने जाते हैं। इन राज्यों में बोली जाने वाली जनजातीय भाषाएँ यहाँ की पहचान और परंपराओं का अभिन्न हिस्सा हैं। हालाँकि, आधुनिकता और सामाजिक बदलावों के कारण ये भाषाएँ तेजी से विलुप्त हो रही हैं। इन भाषाओं का संरक्षण केवल भाषाई विविधता को बचाने के लिए नहीं, बल्कि जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक पहचान और पारंपरिक ज्ञान को सुरक्षित रखने के लिए भी आवश्यक है।

झारखंड और बिहार की प्रमुख जनजातीय भाषाएँ
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झारखंड और बिहार में कई जनजातीय भाषाएँ बोली जाती हैं, जिनमें से कुछ हजारों वर्षों पुरानी हैं। ये भाषाएँ इन जनजातीय समुदायों की संस्कृति, परंपराओं और इतिहास का जीवंत दस्तावेज़ हैं।

1.असुरी भाषा (Asuri Language): असुरी भाषा झारखंड की असुर जनजाति द्वारा बोली जाती है। इसे भारत की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक माना जाता है और यह मुख्य रूप से मुंडा भाषा परिवार से संबंधित है। असुरी भाषा में अनेक पारंपरिक गीत और कथाएँ मौजूद हैं, जो इस जनजाति के इतिहास और उनकी जीवनशैली को दर्शाती हैं। लेकिन वर्तमान में इसे बोलने वालों की संख्या बहुत कम हो गई है।

2.बिरहोर भाषा (Birhor Language): बिरहोर जनजाति, जो जंगलों में अपने पारंपरिक जीवन के लिए जानी जाती है, बिरहोर भाषा बोलती है। यह भाषा उनके जीवन और प्रकृति के साथ उनके संबंध को व्यक्त करती है। बिरहोर भाषा का अधिकांश साहित्य मौखिक है, जिसमें लोककथाएँ और पारंपरिक ज्ञान समाहित हैं।

3.कुरुख भाषा (Kurukh Language): कुरुख भाषा उरांव जनजाति की मातृभाषा है। यह भाषा द्रविड़ भाषा परिवार से संबंधित है और इसे झारखंड, बिहार और छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों में बोला जाता है। कुरुख भाषा की लिपि, तोलॉन्ग सिकी, हाल के वर्षों में विकसित की गई है ताकि इसे संरक्षित किया जा सके।

4.मुण्डारी और हो भाषा (Mundari and Ho Languages): मुण्डारी और हो भाषाएँ मुण्डा जनजाति द्वारा बोली जाती हैं। इन भाषाओं में अनूठी ध्वन्यात्मकता और व्याकरणिक संरचना पाई जाती है। मुण्डारी भाषा में समृद्ध लोकगीत और नृत्य से संबंधित साहित्य है, जो इस जनजाति की सांस्कृतिक पहचान को परिभाषित करता है।

विलुप्ति के कारण
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जनजातीय भाषाओं के विलुप्त होने के पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं।

1.शहरीकरण और आधुनिक शिक्षा: शहरीकरण और आधुनिक शिक्षा प्रणाली ने पारंपरिक भाषाओं की जगह हिंदी और अंग्रेजी को प्राथमिकता दी है। इसके कारण युवा पीढ़ी अपनी मातृभाषा से दूर होती जा रही है।

2.आर्थिक और सामाजिक दबाव: बेहतर रोजगार और शिक्षा के अवसरों की तलाश में जनजातीय लोग बड़े शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में वे अपनी मातृभाषा और सांस्कृतिक जड़ों को पीछे छोड़ देते हैं।

3.सरकारी उपेक्षा: जनजातीय भाषाओं को शिक्षा, प्रशासन, और अन्य क्षेत्रों में समुचित स्थान नहीं मिल पाया है। इससे इन भाषाओं का उपयोग सीमित होता जा रहा है।

4.सामाजिक बदलाव: युवा पीढ़ी के बीच मुख्यधारा की भाषाओं को अपनाने का चलन बढ़ रहा है। वे अपनी पारंपरिक भाषाओं को प्राचीन या अप्रासंगिक मानने लगे हैं।

सांस्कृतिक महत्व
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जनजातीय भाषाएँ केवल संचार का माध्यम नहीं हैं, बल्कि यह जनजातीय समुदायों की संस्कृति, परंपराओं और मान्यताओं का आधार हैं। इन भाषाओं में लोककथाएँ, गीत, नृत्य, और पारंपरिक ज्ञान समाहित हैं। उदाहरण के लिए, असुरी भाषा में पर्यावरणीय संरक्षण और औषधीय पौधों से संबंधित ज्ञान मिलता है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप से संचारित होता रहा है।

'संरक्षण के प्रयास
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' 1.शैक्षिक पहल: झारखंड और बिहार में जनजातीय भाषाओं को स्कूल और कॉलेजों के पाठ्यक्रम में शामिल करने की पहल की जा रही है। इसके माध्यम से नई पीढ़ी को इन भाषाओं का ज्ञान दिया जा रहा है।

2.डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग: कई डिजिटल प्लेटफॉर्म और मोबाइल ऐप जनजातीय भाषाओं को सिखाने और संरक्षित करने के लिए बनाए गए हैं। इनमें शब्दकोश, भाषाई पाठ्यक्रम और ऑडियो-वीडियो सामग्री शामिल हैं।

3.सांस्कृतिक आयोजन: जनजातीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए सांस्कृतिक मेले, भाषाई कार्यशालाएँ, और संगीत कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।

4.सरकारी और गैर-सरकारी प्रयास: सरकार और एनजीओ मिलकर इन भाषाओं को संरक्षित करने के लिए योजनाएँ बना रहे हैं। इनमें भाषाई सर्वेक्षण, साहित्य का प्रकाशन, और भाषाई दस्तावेज़ीकरण शामिल हैं।

निष्कर्ष
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झारखंड और बिहार की जनजातीय भाषाएँ केवल भाषाएँ नहीं हैं, बल्कि ये उन समुदायों की आत्मा और उनकी सांस्कृतिक धरोहर हैं। इनका संरक्षण केवल इन राज्यों की नहीं, बल्कि पूरे देश की जिम्मेदारी है। यह आवश्यक है कि हम इन भाषाओं को विलुप्त होने से बचाने के लिए सामूहिक प्रयास करें। यदि इन भाषाओं को संरक्षित नहीं किया गया, तो हम न केवल भाषाई विविधता खो देंगे, बल्कि एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत भी समाप्त हो जाएगी।


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