सदस्य:2323355Ayushsingh/प्रयोगपृष्ठ

जय जवान, जय किसान


“अगर आज आप खा रहे, तो किसान को धन्यवाद करो,

यदि शांति से जी रहे, तो सैनिक को सलाम करो।“

भारत की आबादी लगभग एक सौ तीस करोड़ है, और भारत की सीमाएँ चीन, पाकिस्तान[1] और बां[2]ग्लादेश जैसे देशों के साथ जुड़ी हुई है । इन सभी देशों के भारत के साथ मतभेद चलते रहते हैं | ‘जय जवान जय किसान’, यह पंक्ति सुन कर अक्सर आपके दिमाग़ में यह सवाल आता होगा कि आखिर एक फ़ौजी जैसे ख़तरनाक और साहसी कार्य को एक किसान के साथ कै से तौला जा रहा है? मगर मेरा मानना है कि फ़ौज[3] में होने और खेती करने का महत्व एवं उनकी कठिनायियाँ काफ़ी मिलती-जुलती हैं। यह दोनों कार्य एक-दसरे के बीना नामुमकिन हैं। इन दोनो कार्यों का महत्व देखा जाए तो कभी कम नहीं हो सकता क्योंकि जितनी ज़रूरत हमें दो वक्‍त की रोटी की है उतनी ही सुरक्षा से प्राप्त होने वाली चैन की नींद की भी है।

मैं अपने परिवार के साथ मेरठ शहर में निवास करता हूँ जो की उत्तरी भारत में स्थित है। मेरे शहर से कुछ मील दर एक गाँव है ‘बिनोलि’। मेरा पिताजी के पैदा होने के पहले मेरा परिवार इसी गाँव में निवास करता था। इसी कारणवश, मेरे दादाजी आज भी बिनोलि में एक खेत के मालिक हैं और मेरे दादा जी को बिनोलि से बहुत लगाव है। तो जब वह अपने गाँव की सैर पर जाते हैं तब मैं भी उनके साथ चला जाता हूँ। अगर आप कभी भी किसी किसान को खेत में काम करते देख लेंगे तो आप की नज़र में उनके लिए सम्मान आ जाएगा और ऐसा ही मेरा साथ भी हुआ। जब भी मैं अपने खेत में जाता हूँ और किसानों को दिन-रात एक कर, पसीने से लथ-पथ होते हए, मीलों लम्बा खेत जोतते और फसल को सींचते हुए देखता हूँ, तब मुझे असल में एक किसान का मूल्य पता चलता है। एक कभी ना हटने वाली मुस्कान के साथ वह किसान महीनों की मेहनत के वल हमारा पेट भरने के लिए लगा देते हैं। अपनी फसल को अत्यंत खुशी से समाज को अर्पित कर देते हैं जिसे उन्होंने अपने बच्चों की तरह पाला है। मेरी माँ ने मुझे बचपन में एक बात बताई थी जो मुझे उन किसानों को देख के हमेशा याद आती है- “एक भूखे को खाना, और प्यासे को पानी पिलाने वाले व्यक्ति से बड़ा व्यक्ति कोई नहीं होता”।

भारत के जवान भी कुछ कम नहीं हैं। आज़ादी[4] के बाद भारत ने ५ बड़े युद्धों में भाग लिया है अब चाहे वह १९४७-४८ का कश्मीर युद्ध, १९६२ का भारत चीन युद्ध, १९६५ का भारत पाकिस्तान युद्ध, हमारे जवानों ने कभी तिरंगे का अपमान नहीं होने दिया। हमारे जवान दृढ़ निश्चय से अपने देश की सेवा करते हैं अब चाहे वह सियाचीन की जमा देने वाली ठंड हो या थार के उबलते हुए रेगितान । इतनी ज़्यादा कठिन परिस्थितियों में भी उनके चेहरे की मुस्कान नहीं हटती और न ही हटता है देश की सेवा करने का जोश। तिरंगे को दिल में बसा लेने वाले ये भारतीय जवान जनता के रखवाले होने साथ ही देश के गौरव और सम्मान के रखवाले भी हैं | अगर मैं आपको किसी दिन एक ऐसा काम करने भेज दँ जहाँ आपकी जान को हर वकत ख़तरा हो तो आप में से ९०% लोग मुँह फे र लेंगे, मगर वे १०% लोग ऐसे होंगे जो अपनी जान पर खेल कर इस देश और इसकी जनता की रखवाली करेंगे।

एक किसान और एक जवान दोनों ही ऐसे बलिदान[5] देते हैं। इसके बाद भी मैं देखता हूँ हमारा समाज एक किसान और एक जावन को वो इज़्ज़त, वो सम्मान नहीं प्रदान करता जिसके वे हक़दार हैं। कछ अमीर लोग किसानों को अपनी पैर की जूती की तरह देखते हैं और सारी सुख-सम्पत्ति होने के बावजूद एक बोरी आलू के दामों को लेकर लड़ाई करने लगते हैं। अगर इन व्यक्तियों को आधे घंटे के लिए खेत में खड़ा कर दिया जाए तो पसीने-पसीने होकर शायद वे बेहोश ही हो जाएँ । कुछ लोग ऐसे भी हैं जो जवानों की क़ुर्बानि यों को मामूली समझते हैं। मैंने एक आदमी को बोलते हए सुना था “जवान तो रोज़ मरते है, कछ नया बतायिए”। अपनी जान कुर्बान करने के बाद, सामज से यह सब कुछ सुनकर भी, ये लोग आज एवं अभी भी सीमाओं पर हमारी सुरक्षा के लिए खड़े है।

एक जवान और एक किसान का आत्मोसर्ग अतुलनीय है।

‘जय जवान, जय किसान’!

  1. "पाकिस्तान", विकिपीडिया, 2024-11-19, अभिगमन तिथि 2024-12-17
  2. "बांग्लादेश", विकिपीडिया, 2024-10-18, अभिगमन तिथि 2024-12-17
  3. "आज़ाद हिन्द फ़ौज", विकिपीडिया, 2024-12-09, अभिगमन तिथि 2024-12-17
  4. "स्वतन्त्रता", विकिपीडिया, 2023-07-25, अभिगमन तिथि 2024-12-17
  5. "बलिदान (1985 फ़िल्म)", विकिपीडिया, 2020-03-11, अभिगमन तिथि 2024-12-17