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संत कबीर दास
संपादित करेंकबीर का जीवन: सत्य की तलाश में [1]
संपादित करेंजब हम हिन्दी साहित्य के बारे में पड़ते हैं तो एक नाम हमारे मन में ज़रूर प्रस्तुत होता हैं, संत कबीर का नाम। संत कबीर का जन्म एक रहस्यमय दंतकथा के रूप में जाना गया हैं। आज तक साहित्यकार इस रहस्य की खोज में व्यक्त हैं। कबीर दास का जन्म 15वीं शताब्दी में काशी में हुआ। ऐसा माना जाता हैं कि कबीर का जन्म एक चमत्कार था। कबीर की माँ, एक ब्राह्मण विद्ध्वा, एक बार तीर्थयात्रा पर निकल पड़ी। उनकी निष्ठां से प्रभावित होकर, ऋषि ने उनको पुत्र की प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। किन्तु अविवाहित होने के कारण, अपमान से बचने के लिए कबीर दास की माँ ने उन्हें परित्याग करने का निर्णय लिया। ऐसा माना जाता हैं कि कबीर दास जी को नीमा नाम की औरत ने अपनाया और उनका पालन-पोषण किया।
कबीर दास का जीवन बहुत ही प्रेरणादायक और विचारोत्तेजक हैं। कबीर दास जी बहुत ही आध्यात्मिक इंसान थे। परन्तु उन्होंने कभी धर्म को सबसे अधिक महातदापूर्ण नहीं दिया। यह एक सुप्रसिद्ध भ्रह्म हैं। हालाँकि आधुनिक समय में कबीर को अक्सर हिंदू और मुस्लिम विश्वास और व्यवहार के सामंजस्यकर्ता के रूप में चित्रित किया जाता है, लेकिन यह कहना अधिक सटीक होगा कि वह दोनों के समान रूप से आलोचक थे, अक्सर उन्हें अपने ग़लत तरीकों से एक दूसरे के समानांतर मानते थे।[1] उनका मानना था कि एक भगवान के नाम का नामसमझ दोहराव का कोई मूल्य नहीं था। अपने पूरे जीवन को उन्होंने जीवन के अमर सत्य की खोज में अर्पित कर दिया। अपनी इस आध्यात्मिक खोज को पूरा करने के लिए, वह वाराणसी के प्रसिद्ध संत रामानंद का शिष्य बन गए। वह इस रामानंद की सेवा में विलीन हो गए।
कबीर राम के भक्त थे। लेकिन कबीर के लिए राम किसी मज़हब के प्रतीक नहीं थे। राम किसी व्यक्तिगत रूप के परे हैं। कबीर के इश्वर समय और स्थान, दोनों से भी परे हैं। उनका कोई एक रूप नहीं था। कबीर के इश्वर ज्ञान और विद्या थी। वह आजीवन इसी खोज में खो गए। और कबीर के इस ज्ञान के संचार के प्रमुख माध्यम गीत, पद और दोहे थे। कबीर की कविताए उनके व्यक्तिगत जीवन दर्शन को दर्शाती है। उनकी रचना शैली मर्मस्पर्शी और सारगर्भित थी, जिसमें कल्पना और आश्चर्य का समावेश था। वही दूसरी और उनकी रचनाए स्वच्छ, शुद्ध और सुरुचिपूर्ण थी।
कबीर दास जी की मृत्यु की चर्चा भी प्रसिद्ध हैं। एक किंवदंती के अनुसार, उनकी मृत्यु के बाद, हिंदुओं और मुसलमानों के बीच संघर्ष पैदा हो गया। हिन्दू उनके शरीर का दाह-संस्कार करना चाहते थे, वही दूसरी और मुसलमान उनके शरीर को दफ़नाना चाहते थे। चमत्कार के एक क्षण में, उनके कफन के नीचे फूल प्रकट हुए, जिनमें से आधे का काशी में अंतिम संस्कार किया गया और आधे को मगहर में दफनाया गया। उनके मृत्यु के इतने वर्षों बाद भी उनके दोहे अमर रहे और हिन्दी साहित्य इनके बिना अपूर्ण हैं।
कबीर के दोहे: सरल शब्दों में गहरा सत्य [2]
संपादित करें॥ सुखिया सब संसार है खाये और सोए। दुखिया दास कबीर है जागे और रोए॥ [2]
इन पंक्तियों में कबीर दास जी कहते हैं कि सारा संसार सुख से भरपूर हैं, वह खाने और सोने में व्यस्त हैं। संसार के लोग अज्ञानता के अंधकार में तल्लीन हुए हैं। उन्हें दुनिया की मोह माया का ही परवाह हैं। सांसारिकता से उनका मन विरक्त हो गया है। लेकिन कबीर दास जी ऐसी जीवन नहीं जीना चाहते। वेदना से व्यथित होकर कबीर जाग रहा है और ईश्वर को पाने के लिए करुण क्रंदन कर रहा है। उन्हें केवल इश्वर की खोज हैं, सत्य की खोज। इसलिए जब सारा संसार जाली शान्ति से सोते हैं, संत कबीर दास जागते हैं उस वास्तविक शांति की खोज में।
॥ कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढै बन माँहि। ऐसैं घटि-घटि राँम है, दुनियाँ देखै नाँहि॥ [3]
कबीर दास जी केहते हैं कि कस्तूरी मृग की नाभि में सुगंध होती है। इस बात से अनजान, हिरन सम्पूर्ण संसार में अपनी ख़ुशबू ढूँढता फिरता है। उसी तरह मनुष्य भी इश्वर को विभिन्न स्थलों पर खोजते हैं, मंदिर, मस्जिद, देवालयों, और तीर्थस्थानों में। लेकिन वह इस बात से अनजान हैं कि कस्तूरी की तरह ईश्वर भी हर मनुष्य के ह्रदय में निवास करते है क्योंकि संसार के कण-कण में ईश्वर विद्यमान है। कबीर दास जी कहते हैं कि इश्वर को पाने का रास्ता बहुत कठिन नहीं हैं, हमें बस अपने मन में ढूढ़ना हैं और साथ ही सत्य आचरण को अपनाकर जीना हैं। एक मानवोचित इंसान बनकर हम इश्वर के और करीब आ सकते हैं।
॥ जब मैं था तब हरी नहीं अब हरी है मैं नाहीं। सब अधियारा मिट गया जब दीपक देखा माहि॥ [4]
इन पंक्तियों में कबीर दस जी मानव की अज्ञानता को प्रकाशित करते हैं। कवी कहते हैं कि जब वह अज्ञानता से ओत प्रोत थे, उन्हें इश्वर की प्राप्ति नहीं हुई। जब उन्होंने अपने अहंकार को त्याग दिया तब वह इश्वर के और करीब आ गए। सब अज्ञानता मिट गया जब उन्हीने अँधेरे में ज्ञान रूपी प्रकाश देखा। माया, रिश्तों में मोह, जीवन के उद्देश्य से विमुख होना, आडंबर आदि सभी अंधकार हैं और इन्हें भगवान के दीपक के प्रकाश से ही समाप्त किया जा सकता है। यह दोहा कबीर दास जी के ज्ञान की तलाश को दर्शाता हैं।
॥ साँच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप। जाके हृदय साँच है ताके हृदय आप॥ [5]
साँच वह हैं जो न्यायसंगत, उचित और धर्म से सम्बंधित हो। इन पंक्तियों में कवी ने सच्चाई का विवरण किया हैं। संत कबीर दास जी कहते मैं कि सच्चाई के बराबर कोई तपस्या नहीं होती। और झूठ की तुलना पापी कर्म से किया गया हैं। जिसका हृदय साफ़ और सरल हैं, जो किसी भी छल-कपट के गुलाम नहीं होते, जिसके ह्रदय में सभी के प्रति सम दया और प्रेम है, उनमे भगवान् निवास करते हैं। कबीर ऐसा मानते हैं कि सभी को बिना जाति, वर्ग, धर्म का भेदभाव किये, एक दूसरे के प्रति सम्मान और प्रेम प्रदर्शन करना चाहिए।
॥ धीरे-धीरे रे मना धीरे सब कुछ होए। माली सींचे सौ घड़ा ऋतू आय फल होय॥ [6]
इस दोहे के माद्यम से कबीर दास जी धीरज के महत्त्वपूर्णता की और हमारी ध्यान आकर्षित करते हैं। वह कहते हैं कि धीरज से ही हमें अपने लक्ष्य की प्राप्ति होगी। अधीरता से आज तक किसी का भला नहीं हुआ हैं। जिस प्रकार माली पौधों को पानी देता हैं और भाग खोदता हैं, बिना फल की चिंता किये, उसी प्रकार हमें भक्ति की अभ्यास करते हुए फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। वसंत ऋतु में माली के कड़ी मेहनत के परिणामस्वरूप जैसे फल और फूल उगते हैं, उसी भाँति से, भक्त जब आंतरिक अभ्यास करते हैं तो फलतः उन्हें इश्वर की प्राप्ति ज़रूर होगी।
सारांश
संपादित करेंयह केवल कुछ उदहारण हैं संत कबीर के काम की अधिकता में। यह ज़िन्दगी की असली धन, ज्ञान की खोज की और हमारी उत्सुकता बढ़ाते हैं। कबीर दास के दोहे प्रेरणादायक और जीवन में सुख-सफलता पाने के लिए कई सूत्र बताते हैं। उनकी यह रचनाये निस्संदेह उनकी प्रेरणादायक और महान जीवन जे प्रतिनिधिक हैं। अतः इनकी जीवनशैली और सृजन, हिन्दी साहिथ्य के लिए ही नहीं बल्कि हमारे व्यक्तिगत विकास के लिए भी सबसे बड़ी प्रेरणा हैं।
ग्रंथ सूची
संपादित करें- ↑ "Kabir | Birth, Poetry, Religion, & Facts | Britannica". www.britannica.com (अंग्रेज़ी में). 2024-09-24. अभिगमन तिथि 2024-10-15.
- ↑ RAMAKUMAR, Dr A. C. V. "सुखिया सब संसार है, खाए अरु सोवै। दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै॥ (कबीरदास के दोहे - KABIRDAS KE DOHE)". अभिगमन तिथि 2024-10-15.
- ↑ RAMAKUMAR, Dr A. C. V. "कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि। ऐसे घटी घटी राम हैं दुनिया देखै नाँहि॥ (कबीर दास के दोहे - KABIR DAS KE DOHE)". अभिगमन तिथि 2024-10-15.
- ↑ RAMAKUMAR, Dr A. C. V. "जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाँहि। सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि॥ (संत कबीर दास के दोहे)". अभिगमन तिथि 2024-10-15.
- ↑ "साँच बराबरि तप नहीं | हिन्दवी". Hindwi. अभिगमन तिथि 2024-10-15.
- ↑ "Kabir Ke Dohe | संत कबीर दास जी के 50 दोहे Magic » कबीर साहेब" (अंग्रेज़ी में). 2023-08-23. अभिगमन तिथि 2024-10-15.