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बंगाल और घोटी: इतिहास में सांस्कृतिक विभाजन और पहचान की कहानी
संपादित करेंपरिचय
संपादित करेंबंगाल का हिस्सा पौराणिक समय से भारतीय उपमहाद्वीप का एक विशेष अंग रहा है और यह हम इस बात से प्रमाण कर सकते है की ब्रिटिश पूर्व भारतीय कम्पनी ने बंगाल को अपना राजधानी बनाया था। इसी कारणवश भारीय संस्कृति और समाज को समझने के लिए बंगाल समाज और उसके विभाजनो को समझना बेहद महत्वपूर्ण है।
विभाजन और शासन नीति
संपादित करेंभारत के इतिहास में ब्रिटिश साम्राज्य का आगमन एक महत्वपूर्ण मोड़ था, और उनके शासन की नीति ने देश की सामाजिक और राजनीतिक संरचना पर गहरा प्रभाव डाला। ब्रिटिशों की ‘विभाजन और शासन’ (Divide and Rule) की नीति बंगाल क्षेत्र में विशेष रूप से क्रूर और विघटनकारी साबित हुई। इस नीति का उद्देश्य भारतीय जनता को जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्रीय आधार पर विभाजित करके अपने उपनिवेशी शासन को मजबूत करना था। बंगाल, जो उस समय देश का सबसे समृद्ध और उन्नत क्षेत्र था, इस विभाजनकारी नीति का प्रमुख शिकार बना। ब्रिटिश सरकार ने 1905 में लॉर्ड कर्जन के नेतृत्व में बंगाल का विभाजन किया। इसका तात्कालिक उद्देश्य प्रशासनिक दृष्टिकोण से प्रांत को छोटा करना बताया गया, लेकिन इसके पीछे छिपा असली उद्देश्य हिंदुओं और मुसलमानों के बीच वैमनस्य पैदा करना था। विभाजन के बाद, पूर्वी बंगाल में मुसलमानों की बहुलता थी जबकि पश्चिमी बंगाल में हिंदुओं का प्रभुत्व था। ब्रिटिश सरकार ने इस विभाजन को धार्मिक आधार पर जायज ठहराया, ताकि हिंदू-मुस्लिम एकता को कमजोर किया जा सके और उनके शासन को आसान बनाया जा सके।
बंगाली समाज के उप-समूह
संपादित करेंबंगाल में घोती और बांग्ला समुदाय के लोग सांस्कृतिक और भाषाई दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं। "घोटी" शब्द आमतौर पर उन लोगों के लिए उपयोग किया जाता है जो पश्चिम बंगाल से आते हैं, विशेषकर कोलकाता और उसके आसपास के क्षेत्रों से। वहीं, "बांग्ल" शब्द उन लोगों के लिए प्रयोग होता है जो पूर्वी बंगाल, विशेष रूप से वर्तमान बांग्लादेश से संबंधित हैं। दोनों समुदायों की अपनी-अपनी पहचान, परंपराएं और सांस्कृतिक विरासत है। घोटी लोग आमतौर पर बंगाली साहित्य, कला और संगीत में गहरी रुचि रखते हैं, जबकि बांग्ला लोग अपने कृषि और पारंपरिक रीति-रिवाजों के लिए प्रसिद्ध हैं।
बंगाल उपसमूह
संपादित करेंबंगाल लोग भारत के पूर्वी क्षेत्र में बसा एक समृद्ध और विविधतापूर्ण समुदाय हैं, जिनका मुख्य निवास स्थान पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश है। इस समुदाय की सांस्कृतिक पहचान को उसकी भाषा, कला, संगीत और परंपराओं के माध्यम से पहचाना जा सकता है। बंगाली संस्कृति में साहित्य का विशेष महत्व है, और रवींद्रनाथ ठाकुर, बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जैसे महान साहित्यकारों ने इसे विश्व मंच पर पहचान दिलाई। इसके अलावा, बंगाल की खासियत उसके रंगीन त्योहार हैं, जैसे दुर्गा पूजा, छठ पूजा और पोइला बोइशाख, जो सामूहिक उत्सव के रूप में मनाए जाते हैं। बंगाली भोजन भी विश्व प्रसिद्ध है, जिसमें माछ भात, रसगुल्ला और मिठाईयों की विविधता शामिल है। यह समुदाय अपनी जीवंतता, गर्मजोशी और स्वागत की भावना के लिए जाना जाता है, जिससे बंगाल की सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने को और भी समृद्ध बनाया गया है।
घोटी उपसमूह
संपादित करेंबंगाल में "घोटी" समुदाय उन लोगों को संदर्भित करता है, जो मुख्यतः पश्चिम बंगाल के क्षेत्रों, विशेषकर कोलकाता और आसपास के इलाकों में निवास करते हैं। घोटी लोग अपनी सांस्कृतिक धरोहर, साहित्य और संगीत के प्रति गहरी रुचि रखते हैं। इस समुदाय की पहचान मुख्य रूप से उनके शहरी जीवन, व्यापारिक कौशल और शैक्षणिक उपलब्धियों से होती है। घोटी संस्कृति में विभिन्न त्योहारों और परंपराओं का एक महत्वपूर्ण स्थान है, जिसमें दुर्गा पूजा और पोइला बोइशाख प्रमुख हैं। इसके विपरीत, "बांग्ला" शब्द पूर्वी बंगाल से संबंधित लोगों के लिए प्रयोग होता है, जो अपने कृषि परंपराओं और ग्रामीण जीवन के लिए जाने जाते हैं।
बंगाल और घोटी में अंतर
संपादित करेंसांस्कृतिक अंतर
संपादित करेंभारत के पूर्वी राज्य पश्चिम बंगाल में सांस्कृतिक विविधता का अनूठा संगम देखा जाता है। यहां पर दो प्रमुख सांस्कृतिक उपसमूह माने जाते हैं - बंगाल (या बंगाली) और घोटी। यद्यपि दोनों समूह एक ही क्षेत्र में स्थित हैं और मुख्य रूप से बंगाली भाषा का प्रयोग करते हैं, उनके बीच सामाजिक, सांस्कृतिक, और व्यवहारगत दृष्टिकोण से कई महत्वपूर्ण अंतर हैं। इन अंतरों को समझने के लिए हमें उनके इतिहास, रीति-रिवाज, और जीवनशैली का विश्लेषण करना आवश्यक है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
संपादित करेंबंगालियों और घोटी समूहों के बीच सांस्कृतिक विभाजन का प्रमुख आधार ऐतिहासिक घटनाएं हैं। "बंगाल" शब्द का संबंध बंगाल के पूर्वी भाग से है, जिसे अब बांग्लादेश के रूप में जाना जाता है। बंटवारे से पहले, पूर्वी बंगाल के लोग अपने विशिष्ट रीति-रिवाज और संस्कृति के साथ भारत में आए। वहीं "घोटी" पश्चिम बंगाल के मूल निवासी माने जाते हैं, जो विभाजन से पूर्व भी बंगाल के पश्चिमी हिस्से में बसते थे।
भाषाई और लहजे का अंतर
संपादित करेंहालांकि बंगाल और घोटी दोनों ही बंगाली भाषा बोलते हैं, उनके उच्चारण और बोलने के लहजे में स्पष्ट अंतर पाया जाता है। पूर्वी बंगाल के लोगों की भाषा में "बांगाल" उच्चारण कहा जाता है, जिसमें विशेष रूप से 'र' ध्वनि को 'ह' से बदलने का प्रचलन होता है। इसके विपरीत, घोटी लोगों की भाषा में 'र' ध्वनि स्पष्ट और प्रमुख होती है, और उनका उच्चारण कोलकाता और उसके आसपास के क्षेत्रों के मानक बंगाली उच्चारण से मिलता-जुलता होता है।
खानपान का अंतर
संपादित करेंभोजन की बात करें तो, बंगालियों और घोटियों के बीच भोजन की आदतों में भी भिन्नता देखी जाती है। बंगालियों को मछली (विशेष रूप से इलिश मछली) बहुत प्रिय होती है। उनके भोजन में ज्यादा मसालेदार और तीखे स्वाद का समावेश होता है। इसके विपरीत, घोटी समुदाय के लोग मछली के रूप में रुई मछली को प्राथमिकता देते हैं और उनका भोजन तुलनात्मक रूप से कम मसालेदार और हल्का होता है। इसी कारण से, भोजन की पसंद और पकाने के तरीके सांस्कृतिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं।
त्योहारों में भिन्नता
संपादित करेंत्योहार बंगाली संस्कृति का अभिन्न हिस्सा होते हैं, लेकिन यहां भी बंगाल और घोटी समुदाय के बीच अंतर देखने को मिलता है। बंगालियों के बीच दुर्गा पूजा का बहुत महत्व होता है, और वे इस उत्सव को विशेष भव्यता से मनाते हैं। जबकि घोटी समुदाय भी दुर्गा पूजा मनाते हैं, उनके यहां काली पूजा का अधिक महत्त्व होता है। यह भिन्नता दोनों समुदायों के धार्मिक झुकाव और पारिवारिक परंपराओं को दर्शाती है।
सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण
संपादित करेंसामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी बंगाल और घोटी समुदायों के बीच अंतर देखा जा सकता है। बंगाली समुदाय अपने आप को ज्यादा प्रगतिशील और आधुनिक मानते हैं। वे शिक्षा, कला, साहित्य, और संगीत में अपनी रूचि और योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं। वहीं, घोटी समुदाय तुलनात्मक रूप से अधिक पारंपरिक और रूढ़िवादी माना जाता है, और उनके जीवन में धार्मिक और सामाजिक रीति-रिवाजों का अधिक प्रभाव देखा जाता है।
सामाजिक पहचान और पहचान संघर्ष
संपादित करेंबंगाल और घोटी समुदाय के बीच अक्सर सामाजिक पहचान को लेकर संघर्ष होता रहा है। विभाजन के बाद पूर्वी बंगाल से आए बंगालियों को कभी-कभी घोटी लोगों द्वारा "बाहरी" या "अप्रवासी" के रूप में देखा गया। इसने दोनों समुदायों के बीच सामाजिक दूरी बढ़ाई और कुछ हद तक आपसी प्रतिस्पर्धा की भावना को भी जन्म दिया।
मोहन बागान और ईस्ट बंगाल: एक ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्विता
संपादित करेंबोरो मैच
संपादित करेंभारतीय फुटबॉल की बात करें, तो दो नाम सबसे प्रमुखता से सामने आते हैं - मोहन बागान और ईस्ट बंगाल। ये दोनों क्लब न केवल भारतीय फुटबॉल के इतिहास में अमिट छाप छोड़ चुके हैं, बल्कि इनकी प्रतिद्वंद्विता ने फुटबॉल प्रेमियों के बीच अद्वितीय जुनून और उत्साह भरा है। कोलकाता, जो भारतीय फुटबॉल का गढ़ माना जाता है, इस प्रतिद्वंद्विता का मुख्य केंद्र है। मोहन बागान और ईस्ट बंगाल की लड़ाई केवल फुटबॉल के मैदान तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह बंगाल की सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना का भी प्रतीक बन गई है। इन दोनो दलों के बीच खेले जाने वाले मैच को अक्सर बोरो मैच भी बोला जाता है।
मोहन बागान: भारतीय फुटबॉल का गौरव
संपादित करेंमोहन बागान एथलेटिक क्लब की स्थापना 1889 में हुई थी, और यह भारत का सबसे पुराना फुटबॉल क्लब है। इसे भारतीय फुटबॉल में राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक माना जाता है, खासकर 1911 में, जब इसने ब्रिटिश सेना की टीम ईस्ट यॉर्कशायर रेजीमेंट को हराकर आईएफए शील्ड जीती थी। यह जीत भारतीयों के लिए गर्व की बात थी क्योंकि यह ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों की पहली बड़ी खेल जीत मानी गई थी। इस जीत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय देशवासियों में प्रेरणा का संचार किया।मोहन बागान की फुटबॉल शैली हमेशा से आक्रामक और रणनीतिक रही है। क्लब ने समय-समय पर कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में भाग लिया और शानदार प्रदर्शन किया है। इसके समर्थक इसे "नेशनल क्लब ऑफ इंडिया" कहते हैं और इसका समर्थन पूरी तरह से जुनूनी और प्रतिबद्ध है।
ईस्ट बंगाल: पूर्वी बंगालियों की पहचान
संपादित करेंईस्ट बंगाल क्लब की स्थापना 1920 में हुई थी और यह क्लब मुख्य रूप से उन लोगों का प्रतिनिधित्व करता है जो विभाजन के बाद पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) से कोलकाता आए थे। इन प्रवासियों ने अपना एक अलग पहचान बनाने के लिए ईस्ट बंगाल क्लब को एक प्रतीक के रूप में अपनाया। यह क्लब उनके संघर्ष, मेहनत, और कोलकाता में अपने लिए एक नई पहचान बनाने की कहानी है। ईस्ट बंगाल के समर्थक इसे अपनी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान के साथ जोड़ते हैं, और इसका समर्थन करने में उनका जुनून बेजोड़ है।
बंगाल और घोटी का इस मैच से संबंध
संपादित करेंबंगाल और ईस्ट बंगाल का समर्थन:
संपादित करेंबंगाल पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) से आए प्रवासी हैं, जो विभाजन के बाद पश्चिम बंगाल में बसे। ये लोग ईस्ट बंगाल फुटबॉल क्लब का समर्थन करते हैं। उनके लिए ईस्ट बंगाल क्लब उनकी सांस्कृतिक पहचान और संघर्ष का प्रतीक है। क्लब की जीत उनके लिए गर्व और पहचान का अहसास कराती है, खासकर उनकी ऐतिहासिक पहचान के संदर्भ में।
भोजन:
ईस्ट बंगाल की जीत के बाद समर्थक आमतौर पर इलिश मछली (हिलसा) खाते हैं, जो उनके भोजन और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। इलिश मछली बांग्लादेश की प्रमुख पहचान में से एक है और इस मछली को खाने का रिवाज बंगालियों के बीच उनकी जीत के अवसरों पर प्रचलित है। इसके साथ ही मिठाइयों में रसगुल्ला और मिष्ठी दोई का प्रचलन होता है।
जश्न:
जीत के बाद लाल-पीले झंडों के साथ सड़कों पर जुलूस निकलता है। समर्थक ढोल-ताशों के साथ नाचते-गाते हैं और पटाखे जलाते हैं। मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है, और पूरा माहौल उत्सव जैसा होता है।
प्रतीक और चिन्ह:
रंग: ईस्ट बंगाल क्लब के रंग लाल और पीला हैं, जो बांग्लादेश और बंगाल की पहचान को दर्शाते हैं। लाल साहस और बलिदान का प्रतीक है, जबकि पीला समृद्धि और ऊर्जा का।
झंडा: लाल और पीला झंडा ईस्ट बंगाल के समर्थकों का मुख्य प्रतीक है, जिसे वे गर्व से हर मैच और जीत के मौके पर लहराते हैं।
घोटी और मोहन बागान का समर्थन:
संपादित करेंघोटी पश्चिम बंगाल के मूल निवासी होते हैं, जो लंबे समय से वहां बसे हुए हैं। ये लोग मोहन बागान फुटबॉल क्लब का समर्थन करते हैं। मोहन बागान उनके बंगाली स्वाभिमान और परंपरा का प्रतीक है, खासकर 1911 में ब्रिटिश क्लब को हराने के बाद से।
भोजन:
मोहन बागान के समर्थक जीत के बाद चिंगड़ी मछली (झींगा) का सेवन करते हैं, जो उनकी पहचान से जुड़ी है। चिंगड़ी को पश्चिम बंगाल के पारंपरिक व्यंजनों में से एक माना जाता है। इसके अलावा, संदेश और चमचम जैसी मिठाइयां भी जीत के अवसर पर बांटी जाती हैं।
जश्न:
जीत के बाद समर्थक हरे और मैरून रंग के झंडे लेकर सड़कों पर उतरते हैं, ढोल-ताशों के साथ जश्न मनाते हैं। पटाखे फोड़ते हैं और घरों में मिठाइयां बांटी जाती हैं। मोहन बागान के समर्थक मंदिरों में जीत के लिए धन्यवाद अर्पित करते हैं और अपने खिलाड़ियों की तारीफ करते हैं।
प्रतीक और चिन्ह:
रंग: मोहन बागान क्लब के रंग हरा और मैरून हैं, जो उनकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाते हैं। हरा रंग समृद्धि और शक्ति का प्रतीक है, जबकि मैरून बलिदान और संघर्ष का।
झंडा: हरे और मैरून रंग का झंडा मोहन बागान का प्रतीक है। यह झंडा मोहन बागान के समर्थकों के लिए गर्व का प्रतीक होता है और उनकी हर जीत के बाद लहराया जाता है।
चप्पल: मोहन बागान के समर्थक अक्सर एक विशेष प्रतीक के रूप में 'चप्पल' का इस्तेमाल करते हैं, खासकर अगर ईस्ट बंगाल से जीत होती है। 1975 की 5-0 हार के बाद मोहन बागान के समर्थकों ने विरोधस्वरूप इसे प्रतीक के रूप में चुना।
प्रसिद्ध मुकाबले और परिणाम
संपादित करें1. 1975 - ईस्ट बंगाल 5-0 मोहन बागान:
ईस्ट बंगाल ने इस ऐतिहासिक मैच में मोहन बागान को 5-0 से हराया था। यह दोनों क्लबों के बीच सबसे बड़ी जीत थी, और आज भी ईस्ट बंगाल समर्थकों के लिए गर्व का विषय है। इस मैच के बाद पूरे कोलकाता में ईस्ट बंगाल के समर्थकों ने इलिश मछली और मिठाइयों के साथ जश्न मनाया था।
2. 1997 फेडरेशन कप सेमी-फाइनल - मोहन बागान 2-1 ईस्ट बंगाल:
1,31,000 दर्शकों की उपस्थिति में खेले गए इस मुकाबले में मोहन बागान ने 2-1 से जीत दर्ज की थी। मोहन बागान की जीत के बाद समर्थकों ने चिंगड़ी मछली खाकर और हरे-मैरून झंडों के साथ सड़कों पर विजय का जश्न मनाया था। इस मैच को मोहन बागान की एक महान विजय के रूप में याद किया जाता है।
3. 2009 आई-लीग - मोहन बागान 0-3 ईस्ट बंगाल:
ईस्ट बंगाल ने इस मैच में मोहन बागान को 3-0 से हराया था। यह हार मोहन बागान के लिए एक बड़ा झटका थी, जबकि ईस्ट बंगाल के समर्थकों के लिए यह एक बड़ी जीत थी। इस जीत के बाद ईस्ट बंगाल के समर्थकों ने इलिश मछली का सेवन करते हुए पूरे शहर में जश्न मनाया।
4. 2020 - आईएसएल का पहला डर्बी: एटीके मोहन बागान 2-0 ईस्ट बंगाल:
आईएसएल में मोहन बागान और ईस्ट बंगाल की पहली भिड़ंत में मोहन बागान ने 2-0 से जीत दर्ज की। यह जीत मोहन बागान समर्थकों के लिए बेहद खास थी, और उन्होंने जीत का जश्न चिंगड़ी मछली और मिठाइयों के साथ मनाया।
निष्कर्ष
संपादित करेंबंगाल और घोटी समुदाय के बीच सांस्कृतिक अंतर का आधार उनके ऐतिहासिक, भाषाई, धार्मिक, और सामाजिक अनुभवों में निहित है। यद्यपि दोनों ही बंगाली संस्कृति का हिस्सा हैं, उनके रीति-रिवाज, खानपान, भाषा और सामाजिक दृष्टिकोण में स्पष्ट भिन्नताएं हैं। यह विविधता न केवल बंगाली समाज की जटिलताओं को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि किस प्रकार इतिहास और भौगोलिक विभाजन ने सांस्कृतिक पहचान को आकार दिया है
- ↑ Bose, Sugata. The Nation as Mother and Other Visions of Nationhood. Penguin Books India, 2017.
- ↑ Roy, Tathagata. My People, Uprooted: A Saga of the Hindus of Eastern Bengal. Ratna Prakashan, 2009
- ↑ Lahiri, Nayanjot. Partition: The Long Shadow. Penguin Books, 2013.
- ↑ Ghosh, Partha. Migrants, Refugees, and the Stateless in South Asia. SAGE Publications, 2016.
- ↑ Sengupta, Nitish K. History of the Bengali-Speaking People. UBS Publishers' Distributors Pvt. Ltd., 2001.