सदस्य:88shalini/बडते लघु व कुटीर उघोग
लघु एवं कुटीर उघोग
संपादित करेंलघु एंव कुटीर उघोग वे उघोग है जिनमे काम करनेवालों की संख्या एक सीमा से कम होती है तथा उनका वार्षिक उत्पादन भी बड़े उघोग की तुलना में काफी कम होता है| कुटीर उद्योग वह होते है जिनमे उत्पाद एंव सेवाओं का सर्जन घर में ही किया जाता है नाकी कोई कारखाने में| हर देश के विकास में इनका महत्वपूर्ण स्थान रहा है| यह शेत्र में कम पूंजी का उपयोग कर ज्यादा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है और साथ हे रोजगारी प्रदान की जाती है|
भारत में लघु एवं कुटीर उघोग की भूमिका एवं प्रदर्शन
संपादित करेंभारत में प्राचीन काल से ही लघु उघोग की मौजूदगी रही है| आज से दो हजार वर्ष पहले भी भारत का वस्त्र एवं इस्पात उघोग प्रसिद्ध था| १९४८ से लेकर आज तक भारत सरकार का विशेष जोर लघु एवं कुटीर उघोग पर दिया जा रहा है| इनकी संख्या १९९३-९४ में २३.९ लाख से २०००-०१ में ३३.७ हुई है| इस शेत्र का उत्पादन १९९३-९४ में २,४१,६४८ करोड़ रुपयों से बढकर २०००-०१ में ४,५०,४५० करोड़ रूपए हो गया| १९८०-९४ के दोरान लघु उघोग के श्रम उत्पादकता एवं मूलधन उत्पादकता दोनों हे बडे उघोग की तुलना में तेज गति से बढते गए और ज्यादा कुशल साबित हो गए| यह उघोग में कच्चा माल पाने मुश्किल होता है यदि प्राप्त हो भी जाता है तो उसके लिए ऊँचे मूल्य चुकाने पड़ते है| दूसरी प्रमुख बाधा वितीय सुविधा का अभाव है|लघु एंव कुटीर उघोग की उपयोगिता को बनाए रखने के लिए यह अत्यनत आवश्यक है की उत्पादन तकनीकी का आधुनिकरण किया जाए| लघु एवं कुटीर उघोग अपनी वस्तुओ का उत्पादन कर राष्ट्रिय उत्पादन में योगदान करते है|भारतीय अर्थशास्त्र में इस उघोगों के महत्त्व का अनुमान उनकी उपयोगिता से लगाया जा सकता है| लघु एवं कुटीर उघोग में छोटी मशीनों एवं विधुत शक्ति का उपयोग करे बिना भी श्रमिक अपनी प्रतिभा और कला का प्रदर्शन कर सकता है| देश की आज़ादी के बाद से ही लघु एवं कुटीर उघोग के विकास व प्रसार के लिए अनेक प्रकार के सरकारी उपाए लागु किये गए है जिसके कारण अब भारतीय अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो गइ है| यह क्षेत्र का विकास हमारे देश की आर्थिक व्यवस्था को सुधारने के साथ-साथ बेरोजगारी की समस्या को भी दूर कर सकता है|
निर्यात में योगदान
संपादित करेंभारत में लघु एवं कुटीर उघोगों द्वारा उत्पधित वस्तुओं का निर्यात उतरोतर बढ़ रहा है| अनेक ऐसी कलात्मक वस्तुए है जो मशीनों से उत्पधित नही की जा सकती है| विदेश में भेजे जाने वाले लघु उघोग के उत्पादन की कीमत १९७१-७२ में १५० करोड़ रुपय थी (भारत के निर्यात में ९.६% का योगदान), जो तेज रफ़्तार से बढकर १९९८-९९ में ४८,९७९ करोड़ रुपय होगई (भारत के निर्यात ३४.९% का योगदान)|
रोजगार सर्जन
संपादित करेंभारत में रोजगार की समस्या विकट है|पढे-लिखे बेरोजगार युवक बेकारी एवं अर्ध्बेकारी की समस्या से परेशान है| १९९१-९२ में १२९.८ लाख लोग लघु उघोग से नियोजित थे जिनकी संख्या २०००-०१ में १८५.६ लाख हो गई| भारत में रोजगार सर्जन लघु एवं कुटीर उघोग पर बहुत निर्भर करता है| इतनी विशाल जनसंक्या को रोजगार प्रदान करने के लिए देश में लघु एवं कुटीर उघोग का विकास करना आवश्यक है|