पर्यावरण रासायन विज्ञान 
Canjuers poubelles 2521
Runoff of soil & fertilizer
OLENTANGY RIVER WAS POLLUTED JUNE 20, 1974, WHEN FIRE AND EXPLOSIONS DESTROYED A PENNWALT CORPORATION CHEMICAL... - NARA - 555549
                                              पर्यावरणीय रासायन विज्ञान   से हमारे सामाजिक, जैविक,आर्थिक,भौतिक तथा रासायनिक अन्तर्सबन्ध को दर्शाता है। पर्यावरण रासायन परिवहन, अभिक्रियो, प्रभावों, तथ्यों, आदि पर्यावरणीय रासायनिक स्पीशीज़ से सम्बन्धित है। पर्यावरणीय रासायनशात्र पर्यावरण मे मुख्य भूमिका निभाता है।परयावरण मे उपस्थित रसायन स्पीशीज़ कुछ प्राकृतिक है तथा मनुष्यों के कार्यकल्पों से जनित पर्यावरण प्रदूषण वातावरण मे अनचाहे परिवर्तन का प्रभाव है,जो पौधों,जानवरों तथा मानव के लिए हानिकारक है। 

पर्यावरण प्रदूषण

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पर्यावरण-प्रदूषण हमारे परिवेश मे अवाछंनीय परिवर्तन (जो पैधा,जतुंवों,तथा मनुष्यों पर हानिकारिक प्रभाव डालते है) का परिणाम है। वह पदार्थ, जो प्रदूषण उत्पन्न करता है, प्रदूषक कहलाता है।प्रदूषक टोस,द्रव अथवा गैसिय पदार्थ हो सकता है।भोजन मे प्रदूषक की अति अल्प मात्रा वायु मे उपस्थित समान मात्रा की तुलना मे महत्वपूर्ण है।प्रदूषक को निम्नीकृत किया जा सकता है। उदाहरणार्थ- सब्जियों के त्याज्य भाग प्राकृतिक विधियों द्वारा निम्नीकृत एवं अपघटित हो जाते है। इसके विपरीत कुछ प्रदूषक, जो धीरे-धीरे निम्नीकृत होते है, कई दशकों तक पर्यावराण मे अपरिवर्तित रूप मे बने रहते है। उदाहरणार्थ- डी.डी.टी,प्लास्टिक-निर्मित अनेक पदार्थ,भारी धातुएँ अनेक रासायन तथा नाभिकीय अपशिष्ट आदि यदि एक बार पर्यावरण मे निर्गमित हो जाते, तो इन्हें पृथक करना कठीन होता है।ये प्रदूषक प्राकृतिक विधियों द्वार निम्नीकृत नहीं होते है तथा जीवित प्राणियों के लिए हानिकारिक होते है।परयावरणीय प्रदूषण में प्रदूषक विभिन्न स्त्रोतों से उत्पन्न होते है तथा वायु या जल मनुष्य द्वारा अथवा मृदा नमे गाडने पर अभिगमित होते है।

वायु प्रदूषण

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वायुमंडल ,जो पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए है, की मोटाई हर ऊँचाई पर समान नहीं होती है,की विभीन्न संकेंद्री परत अथवा ,होते हैं प्रत्येक परत का घनत्व भिन्न-भिन्न होता है।वायुमडल का सबसे निचला जिसमें मनुष्य तथा अन्य प्राणी रहते है, को 'कहते है। यह समुद्र तल से १० किमी,की ऊँचाई तक होते है। उसके ऊपर समतापमंडल होते है।क्षोभमंडल धूलकणों से युक्त क्षेत्र है,जिस्में वायु,अधिक जलवाष्प तथा बादल का निर्माण होता है, जबकि समतापमंडल मे डाइनाइट्रोजन,डाइआँक्सीजन,ओजन तथा सूक्ष्म मात्रा मे जलवाष्प होता है।वायुमडल प्रदूषण मे मुख्यतः क्षोभमंडलीय तथा समतापमडलीय प्रदूषण का अध्यन किया जाता है।सूर्य की हानिकारक पराबैगनी किरणों के ९९% भाग को समतापमंडल से उपस्थित ओजोन पृथ्वी को सतह पर पहुँचाने से रोकता है तथा इसके प्रभाव मानव तथा अन्य जीवों की र करता है।वातावरण में उपस्थित अवांछनीय ठोस अथवा गैस कणों के कारण क्षोभमंडल प्रदूषण होता है।क्षोभमडल मे निम्नलिखित मुख्यतः गैसीय तथा कणिकीय प्रदूषक उपस्थित होते हैं-

गैसीय प्रदूषण

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गैसीय वायुप्रदूषक-ये सल्कर,नाइर्टोजन तथा कार्बन के आँक्साइड,हाइड्रोजन सल्फाइड,ओजन तथा अन्य आँक्सीकारक है।

कणकीय प्रदूषण

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ये धूल, धूम्र, कोहरा, फुहारा, धूआँ आदि है। कणिकीय पदार्थ वायु में निलर्बित सू,, ठोस कण अथवा द्रवीय बूँद होते है। यह मोटरवाहनों के के उत्सर्जन,अग्नि के धूम्र,धूलकण तथा उध्योगों की राख होते है।वायुमंडल मे कणिकाएँ जीवित तथा अजीवित दोनों प्रकार हो सकती है।जीवित कणिकाओं मे जीवाणु,कवक,फफूदं,शैवाल,आदि सम्मेलित है।हवा मे जानेवाले कुछ कवक मनुष्य मे एलर्जी उत्पन्न करते है।ये पौधों के रोग भी उत्पन्न कर सकते है। 

जल प्रदूषण

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जीवन केलिए जल अनिवार्य है।हम जल को साधारण्तया शुद्ध मानते है,परंतु जल की गुणवत्ता सुनिशिचत करनी चाहिए। जल का प्रदूषण मानवीय क्रियाकलापों से शुरू होता है।प्रदूषण के सुन्जात स्त्रोत अथवा स्थान को 'बिंदु- स्त्रोत' कहा जाता है।उदाहरण नगरपालिक पाइप या औध्योगिक अपशिष्ट विसर्जन पाइप, जहाँ से प्रदूषक जल स्त्रोत मे प्रवेश करता है।प्रदूषण का अबिन्दु स्त्रोत वे है,जहाँ वसे प्रदूषण का स्त्रोत आसानी से पहचाना न सके। उदाहरणार्थ - कृषि अपशिष्ट,अम्लवर्ष,तीव्र जल निकासी आदि।

जल प्रदूषण के कारण

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रोगजनक -सबसे ज़्यादा गंभीर जल प्रदूषक रोगों के कारकों को 'रोगजनक' कहा जाता है।रोगजनकों मे जीवाणु एवं अन्य जीव है,जो घरेलू सीवेज एवं पशु अपशिष्ट द्वारा जल मे प्रवेशन करते है।मानव अपशिष्ट मे एशरिकिआ कोली,स्ट्रेप्ट्रोकाँकस फंकंलिस आदि जीवाणु होते है। कार्बनिक अपशिष्ट - अन्य मुख्य जल प्रदूषक कार्बनिय पदार्थ है।वे जल को प्रदूषित करते है।जल मे पादप प्लवकों की अधिक बढोतरी भी जल प्रदूषण का एक कारण है। बैक्टिरिआया का बृह्त संख्या जल मे कार्बनिक पदार्थों का अपघटन करती है।जल-विलयन मे धूलित आँक्सिजन सीमित होती है।ठंडे जल मे धूलित आँक्सीजन की सान्द्र्ता १० पीपीएम तक हो सकती है,जबकि वायु मे यह २,००,००० पीपीएम है।यदि जल मे बहूत अधिक कार्बन पदार्थ मिलाए जाएँ,तो उपल्बध सारी आँक्सीजन उपभोगित हो जाएग।इसका परिणाम आँक्सिजन साअस्रित जलीय जीवन की मृत्यु है।इस प्रकार अवायु जीवाणु,जिन्हें आक्सिजन की आवश्यकता नहीं होती है,कार्बनिक अपविष्ट का विखंडन आरभं कर देता हैं एवं इसके दूषित गंध वाले रसायन उत्पन्न होते हैं,जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।वायु जीवाणु इन कार्बनिक अपविष्टों का विघटन करके जल को आँक्सिजनरहित कर देता है।

मृदा-प्रदूषण

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  कीटनाशी,पीडकनाशी तथा शाकनाशी मृदा प्रदूषण के कारण है।पीडकनाशी मूल रूप से विषैले रसायन है,जो पारिस्थितिकी प्रतिघाति भी है।समान पीडकनाशकों के प्रयोग से कीटों मे पीडकनाशकों के प्रति प्रतिरोध क्षमता मता उत्पन्न हो जाति है,जो किडकनाशि प्रभावहीन बनाती है।उच्च स्थायित्व वाले क्लोरिनीकृत कार्बनिक जीववीष के प्रत्युत्तर में निम्न स्थायित्व  अथवा अधिक जैव निम्नीकरणीय उत्पादों,जैसे आर्गेनो फाँस्फेट्स तथा कार्बामोट्स को बाज़ार मे लाया गया ,परंतु ये रासायन गभींर स्नायु जीव विष है।अतः ये मानव केलिए अधिक हानिकारक है।परिणामस्वरूप ऐसी पटनाएँ दर्ज हुई है,जिसमे खेत मे काम करनेवाले मज़दूरों की मृत्यु का कारण कुछ पीडकनाशी रहें है।कीट भी इन कीटनाशकों के कारण प्रतिरोध हो चुके है।इन दिनों मे पीडकनाशी उद्योग ने अपने ध्यान शाकनाशी, की ओर मोडा है।गत शताब्दी के पूर्वाद्ध मे यात्रिक से रासायनिक अपतृण नियंत्रण की ओर के लिए विस्थापन के कारण उध्योग को समृद्ध आर्थिक बाज़ार उपलब्ध हुआ है,परंतु हमें यह ध्यान रखना पडेंगा कि यह भी पर्यावरण के लिए अनुकूल नहीं हैं।अधिकाँश शाकनाशी स्थनकारियों केलिए विषैलि होते है।पीडकनाशी तथा शाकनाशी व्यापक रूप से फैले रासायनिक प्रदूषण के छोटे से भाग का प्रतिनिधित्व करते है।विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन के औध्योगिक एवं रासायिनिक प्रक्रमों में निरतंर प्रयुक्त होनेवाले अनेक योगिक अततः किसी न किसी रूप मे वायुमडल मे मुक्त होते रहते है।

भारी धातु संदूषण

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अधिकतर धातुऐं भू-पर्पटी मे सूक्ष्ममात्राओं मे मिलते है।इनमे से कुछ धातुऐं जैसे कि लेड,ज़िग और कुछ अन्य भारी धातुऐं है।जीवों केलिए कुछ धातुऐं आंशीक मात्राओं मे लाभकारी होती है। भारी धातूओं में काडमियम,लेड,मरकरी,आर्सिलनिक साथ ही आबरन,काँपर,मँगेनीज़,सेलेनियम,ज़िंक आदि सम्मलित है।इन सभी धातुओं का परमाणु क्रमाकं २० से अधिक होता है। इनमें से आयरन,र्कीपर तथा कुछ अन्य की निम्न सांद्रतायें जीवों केलिए आवश्य्क है।ये "सूक्ष्म मात्रिक धातुऐं" कहलाती है।भारी धातुओं से पर्यावरण में भारी धातुऐं प्राकृतिक अथवा मानव गतिविधियों द्वारा प्रविष्ट होते है।प्रकृति में सूक्ष्म मात्रिक धातु की अतिमात्राऐं भू-भौगोलिक परिषटनाओ द्वारा मिल सकती है।प्राचीन समय मे भारी धातुओं की लघु मात्रायें खुदाई के समय अधवा खुली भट्टी में भारी धातुओं की बडी मात्राओं के अनिवंत्रित प्रगलन के समय पर्यावरण मे माचित हो जाती थी।औद्योगिक क्रांति के साथ धातुओ को प्राकृतिक स्त्रोतों मे निष्कर्षित किया गया और कारखानों मे परिष्कृत किया गया जहां से भारी धातुओं का वातावरण मे रिसाव हुआ।इसी प्रकार भारी धातुओं की सूक्ष्म मात्राऐं घरेलू और कृषि अपशिष्ट निकलने तथा कहनों के धूऐं द्वारा पर्यावरण मे एकत्रित हुई। अनंक आविपालु कार्बैनिक यौगिक और भारी धातुऐं जिनके स्त्रोत उपर बतायें गए है मृदा अथवा जल मे एकत्रित होते और दफन हो जाते है। मृद से बहकर ये जलराशियों तक भी पहुँच जाते है।हयूमस जो मृदा नमे उपस्थित कार्बनिक पदार्थ है ओर मृदा को हरा भी बनाता है,मे भारी धातुओं के घनायनों के प्रति बंधुता होती है और उन्हें वह मृदा होकर जानेवाले जल से खींच लंता है।फसलों तथा अन्य पौधों की जडे इन यौगिको को जल के साथ खींच लेती हैं।

रेडियोएक्टिव अपशिष्ट

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कुछ भारी परमाणुओं के नाभिक अस्थिर होते है।इनमे स्कतः परिवर्तन होते है जिनके अंतर्गत वे तेज़ गति करते अधिक ऊर्ज वैधुत चुम्बकिय विकरण को उत्सर्जित करते है।यह प्रक्रम रेड्योऐक्टिक्ता कहलाता है।ऐसे विकरणों को आयनकारी विकरण कहलाता है। आयनकारी विकरण दो प्रकार के होते है:अल्फ कण और बीटा कण।रेडियोऐक्टिव पदार्थ से निकलनेवाला सबसे सामान्य आयनकारी वैद्युत चुम्बकीय विकरण उच्च-उर्जा गामा किरणों है।ये किरणों एक्स किरणों से भी अधिक प्रदेशी होती है।रेडियोऐक्टिव नाभिक स्वतः उच्च उर्जा वैध्युतचुम्बकीय विकरणों अथवा दोनों को ही उत्सर्जित करते है और शनैः दूसरे रेडियोऐक्टिव न्यूक्लाइड अथवा साधारण तत्व मे परिषर्तित हो जाते है।

http://www.buzzardsbay.org/glossary.htm

http://amsglossary.allenpress.com/glossary/browse?s=c&p=84

http://www.access.gpo.gov/nara/cfr/waisidx_08/40cfr136_08.html